उत्तर प्रदेश में अब नीली क्रांति

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 02-03-2021
उत्तर प्रदेश में अब नीली क्रांति को बढ़ावा
उत्तर प्रदेश में अब नीली क्रांति को बढ़ावा

 

लखनऊ. उत्तर प्रदेश सरकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा के अनुसार नीली क्रांति (मत्स्य उत्पादन) को बढ़ावा देने के लिए अग्रसर है. इन्हीं प्रयासों के चलते ही यहां अब मछली उत्पादन का कारोबार तेजी से फैलने लगा है. गांव-गांव में युवा इस करोबार से जुड़ रहे हैं। राज्य वित्तीय वर्ष (2019-2020) के दौरान रिकॉर्ड 6.9 लाख मीट्रिक टन मछली का उत्पादन इसका सबूत है.

इससे उत्साहित, इस क्षेत्र की संभावनाओं और मछली के पौष्टिक गुणों के मद्देनजर सरकार इसके उत्पादन को बढ़ावा देगी. साथ ही इस कारोबार से जुड़े मछुआ समुदाय को सुरक्षा भी. इस क्रम में सरकार ने मौजूदा वित्तीय वर्ष में 300 करोड़ मत्स्य बीज उत्पादन-वितरण का लक्ष्य रखा है. अंतरदेशीय मछली पालन (इनलैंड फिशरीज) के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ग्राम पंचायतों के स्वामित्व वाले तलाबों को 10 साल के लिए पट्टे पर देगी.

इन सभी तालाबों का रकबा करीब 3000 हेक्टयर होगा. केंद्र सरकार की ओर से शुरू प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के लिए सरकार ने बजट में 243 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. मछुआरा समुदाय को आर्थिक सुरक्षा देने के लिए वित्तीय वर्ष 20121-2022 में दो लाख मछुआरों को नि:शुल्क बीमा दिया जाएगा. मत्स्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार, प्रदेश ने पिछले तीन साल में मछली पालन में कई उपलब्धियां हासिल की है, वो चाहे मछली उत्पादन की हो या फिर सरकारी योजनाओं को लाभ दिलाने की.

जिसके चलते ही बीते वर्ष मछली पालन के लिए राज्य में चल रही योजनाओं के सफल संचालन और मछली उत्पादन के लिए यूपी को उत्तर भारत का सर्वश्रेष्ठ राज्य चुना गया. इतना ही नहीं, बाराबंकी जिले के मछली पालक के रिसर्कुलर एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) को देश भर में लागू कर दिया गया है. अब नई पीढ़ी भी मछली उत्पादन की तरफ आ रही है.

मालूम हो कि प्रदेश में बड़े पैमाने पर ताल-पोखरे हैं। व्यवस्थित और वैज्ञानिक तरीके से मछली पालन के जरिए इसका उत्पादन बढ़ाने की भरपूर संभावना है. रही बात बाजार की तो सर्वाधिक आबादी वाला राज्य होने के नाते बाजार की कोई चिंता नहीं. आज भी राज्य में मछली की जितनी खपत होती है, उसका अधिकांश हिस्सा आंध्र प्रदेश से आता है.

आय और स्वास्थ्य के बारे में बढ़ती जागरूकता के कारण आने वाले समय में पौष्टिक होने के कारण मछलियों की मांग और बढ़ेगी. लिहाजा इस क्षेत्र में अब भी भरपूर संभावना है. मछली उत्पादन में प्रदेश स्तर पर कई पुरस्कार पाने वाले डॉक्टर संजय श्रीवास्तव के मुताबिक वैसे तो सिर्फ मछली उत्पादन में ही रोजी-रोजगार की ढेरों संभावनाएं हैं.

अगर इसका विविधीकरण कर दिया जाए तो इसकी संभावना बढ़ जाती है. मसलन अगर मछली के साथ बत्तख पालन किया जाय तो दोहरा लाभ होगा. पूर्व पशु चिकित्साधिकारी डा. विद्यासागर श्रीवास्तव के एक हेक्टेयर तालाब में मछली के साथ पलने वाली 200-300 बतखों की बीट ही मछलियों के लिए भरपूर भोजन है.

अलग से आहार न देने के नाते मत्स्य पालक की करीब 60 फीसद लागत बचती है. डा. विद्यासागर के अनुसार, मच्छरों का लार्वा बतखों का स्वाभाविक आहार है. ये तालाब, आबादी के आसपास या धान के खेत में मौजूद मच्छरों के लार्वा को सफाचट कर जाती हैं. इस लिहाज से तराई के वो क्षेत्र जहां मच्छर जनित रोग अधिक हैं वहां मछली के साथ बत्तख पालन का दोहरा लाभ है.