फैजान खान / आगरा
कल गंगा दशहरा है. लोगों ने पतंग उड़ाने की तैयारी कर दी है. आगरा की पतंगें देश के कई राज्यों के आसमान परवाज करेंगी. मगर, यहां के कारीगरों की माली हालात लगातार गिरती जा रही है. देश में सबसे ज्यादा पन्नी की पतंग आगरा ही बनती है. आगरा के हजारों कारीगर मिलकर छह लाख से अधिक पतंग का निर्माण कर देते हैं. इनमें सबसे ज्यादा 90फीसदी से ज्यादा औरतें अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ पतंग बनाने का काम करती हैं.
आगरा में बनने वाली पतंगों की सप्लाई सबसे ज्यादा गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, बिहार, उत्तराखंड छत्तीसगढ़ और झारखंड में होती है.
पतंग बनाने वाली कारीगर दिन भर की मेहनत करने के बाद एक हजार पतंगें बना पाती हैं. इन एक हजार पतंग को बनाने पर महज दो सौ रुपये लेकर 220रुपये तक ही मजदूरी मिलती है.
माल का बाजार की निवासी निशा कहतीं हैं कि ऐसी महंगाई में घर का खर्चा एक आदमी की कमाई से नहीं चलता. इसलिए घर पर बच्चों के साथ पतंग बना लेते हैं. कभी 700तो कभी एक हजार पतंग बना लेते हैं. हर रोज 150से 200रुपये तक कमा लेते हैं.
पतंग निर्माण
फरीन बेगम बताती हैं कि लगातार बढ़ रही महंगाई में घर का खर्च चलाना बेहद मुश्किल हो रहा है. ऐसे में हम पतंग बनाकर कुछ हद तक घर के खर्च को पूरा करने की कोशिश कहते हैं. मैं और मेरे बच्चे पूरा दिन लगे रहते हैं, तब जाकर 200रुपये कमा पाते हैं. एक हजार पतंग बनाने की मजदरी बहुत कम है, लेकिन मजबूरी में काम करते हैं.
पतंग व्यवसायी नौशाद खान कहते हैं कि पतंग का काम सीजनल है. पतंग के कच्चे माल के पैसे लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन पतंग की रेट वहीं हैं. दो साल से तो लॉकडाउन ने पूरे व्यापार को ही खत्म करके रख दिया. सरकार से भी इस व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कोई योजना नहीं.
सीजन के हिसाब से सप्लाई होती है पतंगः
उत्तर प्रदेशः मार्च से गंगा दशहरा तक
दिल्लीः जून से अगस्त तक
मध्य प्रदेशः अगस्त से दीवाली तक
राजस्थानः दीवाली से मकर संक्रांति तक
पंजाबः मकर संक्रांति से लोहड़ी तक
गुजरातः मकर संक्रांति से लोहड़ी तक
फैक्ट फाइल
- पन्नी का सबसे बड़ा हब है आगरा
- करीब पांच हजार मुस्लिम कारीगर हैं इस पेशे में
- हर दिन करीब चार लाख से ज्यादा पंतगों का निर्माण