अपने अनोखे अंदाज में इस्लाम का उपदेश देने वाले कौन हैं मौलाना ?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 21-10-2022
मौलाना नुरुल अमीन कासिमी
मौलाना नुरुल अमीन कासिमी

 

अरिफुल इस्लाम / गुवाहाटी

जब समाज में इस्लाम को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां हैं, ऐसे समय में एक मौलाना ने इस्लाम के सिद्धांतों और आदर्शों को स्पष्ट रूप से समझकर उन भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास किया है. मौलाना नूरुल अमीन कासिमी एक मौलवी हैं, जो असाधारण विचारों के साथ सही रूप में इस्लाम का प्रचार करते हैं.

हाल ही में मौलाना नुरुल अमीन कासिमी के एक वीडियो ने सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोरी थीं. वीडियो में मौलवी सोनितपुर जिले के सूतिया की एक मस्जिद में ग्रामीणों को शिक्षा का महत्व समझा रहे थे. उन्हें ग्रामीणों को समझाते हुए देखा गया कि कुरान और हदीस शिक्षा पर जोर देते हैं.

आवाज-द वॉयस के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, मौलाना नूरुल अमीन कासिमी ने कहा, ‘‘हम असमिया मुसलमान हैं और हम असमिया मुसलमानों के रूप में रहते हैं. इस्लाम के बारे में कभी-कभी भ्रम होता है और यह कुछ मुस्लिम लोगों के कारण होता है, जिनकी वजह से लोग इस्लाम को गलत समझते हैं. इस्लाम के कुछ अनुयायी ज्ञान की कमी के कारण धर्म की गलत व्याख्या करते हैं.

मुझे पवित्र कुरान और पैगंबर मोहम्मद के सच्चे शब्दों के बारे में लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता महसूस हुई. यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्थानीय भाषा में इस्लाम को उसके वास्तविक रूप में प्रस्तुत करें, इसलिए मैं यह प्रयास कर रहा हूं.

पवित्र ग्रंथ अरबी में हैं. इसलिए यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे अपनी भाषा में सभी को समझाएं.’’

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/166637218210_Who_is_this_Maulana_who_preaches_Islam_in_his_unique_style_2.jpg

जुम्मा नमाज (शुक्रवार की नमाज) के लिए मुसलमान इकट्ठा होते हैं. शुक्रवार की नमाज से पहले एक खुतबा (इस्लामी उपदेश) पढ़ा जाता है. यह खुतबा इस्लाम के सिद्धांतों के बारे में है.

समाज के प्रति कर्तव्य, अच्छे कर्मों का आह्वान, अन्य धर्मों के प्रति सम्मान आदि सभी पर प्रकाश डाला गया है. चूंकि कई मस्जिदों में अरबी में खुतबा पढ़ा जाता है, इसलिए असमिया लोगों के लिए इन आयतों को समझना मुश्किल है.

इमाम ने कहा, ‘‘मैंने सोचा था कि अगर शांति, मानवता या खुतबा में बयानों को सरल स्थानीय भाषा में समझाया जाए, जिसे लोग समझ सकें, तो लोगों को निश्चित रूप से लाभ होगा और इस्लाम के बारे में गलत धारणाएं दूर हो जाएंगी.

अरबी में खुतबा पढ़ने पर वैचारिक मतभेद हैं. कुछ लोग कहते हैं कि इसे मातृभाषा में समझाया जाना चाहिए लेकिन हमारे इस्लामी कानून के अनुसार अरबी में खुतबा पढ़ने की परंपरा पैगंबर के समय से चली आ रही है, कुछ जगहों पर यह नहीं बदली है.’’

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/166637221010_Who_is_this_Maulana_who_preaches_Islam_in_his_unique_style_3.jpg

मौलाना नूरुल अमीन कासिमी ने इस्लामी शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक सामान्य शिक्षा पर जोर देते हुए भाषण दिया. उन्होंने कहा, ‘‘मुस्लिम समाज शिक्षा में काफी पिछड़ा हुआ है.

मुस्लिम समाज में मौलाना या उलेमाओं का सम्मान किया जाता है और उन्हें धार्मिक नेता माना जाता है. इसलिए, अगर उलेमा शिक्षा में सलाह देते हैं, तो मुझे लगता है कि हर कोई अनुकरण करेगा और लाभ प्राप्त करेगा. हमारे धार्मिक नेताओं के पास करने के लिए इस संबंध में बहुत कुछ है.

इन मामलों को धार्मिक सभाओं में महत्व मिलता है, इसलिए ये मामले आजकल काफी प्रासंगिक हैं. इस्लाम की बुनियादी शिक्षा लेना अनिवार्य है, लेकिन हमें भविष्य में एक अच्छे नागरिक या अच्छे व्यक्ति बनने के लिए भी शिक्षित होना चाहिए.’’

गौरतलब है कि मौलाना नूरुल अमीन कासिमी जितने भी धार्मिक समारोहों में शामिल होते हैं, धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा पर भी काफी ध्यान देते रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पैगंबर मोहम्मद ने हमें शिक्षा के लिए चीन जाने की आज्ञा दी थी. पवित्र कुरान का पहला शब्द इकरा (पढ़ें) है. चूंकि हमारे पैगंबर ने हमें शिक्षा के लिए चीन तक जाने की इजाजत दी है.

हालांकि इस्लामी शिक्षा के लिए कोई चीन में गुंजाइश नहीं है. इसलिए, इस्लामी शिक्षा के अलावा आईटी और आधुनिक शिक्षा पर विशेष जोर दिया जा रहा है.

अब केवल 4 प्रतिशत मुस्लिम बच्चे मदरसों में पढ़ते हैं. सभी मुस्लिम बच्चे मदरसे में नहीं पढ़ते हैं और सभी को पढ़ने की आवश्यकता नहीं है. ये 4 प्रतिशत बच्चे मौलाना या हाफिज बनें, क्योंकि उन्हें भविष्य में धर्म की रक्षा करनी होगी. हमें शेष 96 प्रतिशत छात्रों को आधुनिक शिक्षा के साथ शिक्षित करना चाहिए और उन्हें समाज में अच्छे लोगों के रूप में स्थापित करना चाहिए.’’

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/166637223310_Who_is_this_Maulana_who_preaches_Islam_in_his_unique_style_4.jpg

मौलाना ने कहा कि मदरसों में पढ़ने वाले या आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों के अलावा उन बच्चों के बारे में भी सोचना जरूरी है, जो बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं और समाज पर बोझ बन जाते हैं. उन्होंने कहा कि शिक्षा के माध्यम से ही मुस्लिम समुदाय को उसकी वर्तमान विकट दुर्दशा से बचाया जा सकता है.