उत्तर प्रदेश: मदरसों में पढ़ाने वाले मॉर्डन टीचर मजदूरी करने को मजबूर

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 21-05-2024
Uttar Pradesh: Modern teachers teaching in madrassas forced to work as laborers
Uttar Pradesh: Modern teachers teaching in madrassas forced to work as laborers

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 
 
आपको दर-दर की ठोकरे नसीब न हों इसिलए एक शिक्षक आपको तालीम दिया करते हैं मगर उसी शिक्षक को जब उसकी नेकी की तनख्वा न मिले तो ये हमारे समाज और सरकार की नाकामी ही है. उत्तर प्रदेश से ऐसा ही एक ताजा मामला सामने आया है जहां लखनऊ से लगभग 28 किलोमीटर दूर बाराबंकी शहर में रहने वाले मोहम्मद अकरम अंसारी एक मदरसा में आधुनिक व‍िषयों के टीचर हैं. लेकिन उन्‍हें काफी लम्बे समय से वेतन नहीं प्राप्त हुई है. ऐसी अकरम अब ठेलिया चलाकर परिवार चला रहे.
 
उत्तर प्रदेश के सारे मदरसों में हजारों आधुनिक शिक्षक अवैतनिक वेतन के कारण गंभीर वित्तीय कठिनाई का सामना कर रहे हैं. यह स्थिति मदरसा आधुनिकीकरण योजना की चुनौतियों को उजागर करती है, जिसका उद्देश्य समकालीन शिक्षा को पारंपरिक इस्लामी स्कूलों में एकीकृत करना था, लेकिन यह फंडिंग के मुद्दों से ग्रस्त है.
 
 
राज्य की राजधानी लखनऊ से लगभग 28 किलोमीटर दूर, बाराबंकी के निवासी मोहम्मद अकरम अंसारी 2012 से एक मदरसे में गणित, विज्ञान और अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं. जिन्होनें एक साक्षात्कार के दौरान कहा कि “मुझे केंद्र सरकार से प्रति माह 12,000 रुपये मिलते थे.” “जब अखिलेश यादव (समाजवादी पार्टी) सत्ता में थे, तो मुझे राज्य सरकार से 3,000 रुपये मिलने लगे, इस तरह मुझे 15,000 रुपये प्रति माह मिलने लगे. लेकिन अब, मुझे कुछ नहीं मिल रहा है.”
 
 
क्लेरियन इंडिया के रिपोर्टर मोहम्मद अलामुल्लाह की रिपोर्ट के अनुसार अकरम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दावे पर सवाल उठाया कि वह चाहते हैं कि मदरसे के छात्रों के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में लैपटॉप हो. उन्होंने कहा “हमें लगता है कि अब कटोरा हाथ में आ जाएगा. अब हम गाड़ी चला रहे हैं. एक चक्कर के 20 रुपये मिलते हैं और एक दिन में 150 रुपये का काम हो जाता है. हमें 2012 से केंद्र सरकार से केवल तीन साल का मानदेय मिला है.”
 
उन्होंने आगे कहा “हमारा लॉट नंबर 273 था, और इसमें शिक्षकों का बहुत सारा पैसा बकाया था. इस सत्र के लिए हमें अप्रैल और मई के लिए राज्य सरकार से पैसा मिला है. यहाँ परिवार में पाँच मैम्बर हैं; खर्चों को पूरा करने के लिए 3,000 रुपये पर्याप्त नहीं हैं."
 
 
अकरम की कहानी उत्तर प्रदेश के कई आधुनिक शिक्षकों द्वारा दोहराई गई है. उनका दावा है कि उन्हें कई वर्षों से केंद्र सरकार का वेतन नहीं मिला है, और उत्तर प्रदेश सरकार से अतिरिक्त भुगतान जनवरी 2024 में बंद हो गया. उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. इफ्तिखार जावेद अहमद इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं, “पैसा राज्य सरकार से पिछले एक साल से पैसा नहीं मिला है, जबकि केंद्र सरकार द्वारा इसे बंद किये हुए छह साल हो गये हैं.'
 
इंडियास्पेंड पर प्रकाशित वीडियो के अनुसार मदरसों में हिंदी, अंग्रेजी, विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान और अन्य भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा 1993-94 में मदरसा आधुनिकीकरण योजना शुरू की गई थी. बाद में इस मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया. योजना के तहत स्नातकों को 6,000 रुपये प्रति माह और स्नातकोत्तरों को 12,000 रुपये का भुगतान किया जाता था. इसके अलावा, उत्तर प्रदेश सरकार ने अतिरिक्त धनराशि प्रदान की: स्नातक शिक्षकों के लिए 2,000 रुपये और स्नातकोत्तर शिक्षकों के लिए 3,000 रुपये, 2014 में घोषित एक नीति.
 
 
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के अनुसार, राज्य भर में 7,442 पंजीकृत मदरसों में 21,000 से अधिक आधुनिक शिक्षक तैनात हैं. वे हर समुदाय से हैं और लगभग 10 लाख छात्रों को हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान जैसे विषय पढ़ाते हैं. पंजीकृत मदरसों में से 560 सरकारी सहायता प्राप्त हैं.
 
इन शिक्षकों का आर्थिक संघर्ष गंभीर है. बाराबंकी के सहादतगंज कस्बे के मोहम्मद सुफ़ियान अंसारी कहते हैं: “मैं पिछले 12 वर्षों से पढ़ा रहा हूँ. हमें केंद्र सरकार से 12,000 रुपये और राज्य सरकार से 3,000 रुपये मिलते थे. लेकिन, हमें पिछले सात वर्षों से केंद्र सरकार से कोई सम्मान राशि नहीं मिली है. मैंने अंग्रेजी और गणित पढ़ाया. मैं सिलाई का काम करके प्रतिदिन 200 से 250 रुपये कमा कर परिवार चला रही हूं. चार लोगों के परिवार के साथ, हम इतने कम पैसे में कैसे गुजारा करेंगे?”
 
सुफियान कहते हैं, "चुनाव में नेता वादे करते हैं, लेकिन चुनाव ख़त्म होते ही सब हमें भूल जाते हैं."
 

व्यापक प्रभाव
वित्तीय सहायता की कमी के कारण कई शिक्षकों को जीवित रहने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. सहादतगंज के ही ज़ैद अंसारी 2009 से मदरसे में पढ़ा रहे हैं और विकलांग हैं. वह कहते हैं, ''घर पर भुखमरी जैसे हालात हैं.'' “परिवार का पालन-पोषण करना मेरे लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. मेरी बूढ़ी मां और तीन बच्चों की जिम्मेदारी मुझ पर है. मैं अपनी जीविका चलाने के लिए बुनाई का काम कर रहा हूं.”
 
राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिक्रियाएँ
अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने पिछले साल राज्यसभा में कहा था कि मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की योजना (एसपीक्यूईएम) मांग आधारित है और इसे 3 मार्च, 2022 तक लागू किया जाना है. 8 जनवरी, 2024 को राज्य निदेशक का एक पत्र उत्तर प्रदेश में जिला मजिस्ट्रेटों सहित विभिन्न हितधारकों को अल्पसंख्यक मामलों के विभाग ने संकेत दिया कि राज्य सरकार मानदेय रोक रही है क्योंकि यह एसपीक्यूईएम से जुड़ी एक पूरक योजना थी.
 
मदरसा बोर्ड के डॉ. अहमद का तर्क है कि सरकार को फैसले पर दोबारा विचार करना चाहिए. “एसपीक्यूईएम के माध्यम से मदरसों के हजारों छात्र मुख्यधारा की शिक्षा से जुड़े थे. ऐसी स्थिति में एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में लैपटॉप का सपना कभी साकार नहीं हो सकता.”
 
उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री दानिश आजाद अंसारी ने कहा कि योगी आदित्यनाथ सरकार मदरसा आधुनिकीकरण शिक्षकों को लेकर बेहद गंभीर है. “जब से केंद्र ने मानदेय रोका है, तकनीकी कारणों से यहां भी रुका हुआ है. इस समस्या का समाधान खोजा जा रहा है.”
 
 
वादे बनाम हकीकत
इन शिक्षकों को जिन वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, वे राजनीतिक नेताओं द्वारा किए गए वादों के बिल्कुल विपरीत हैं. 1 मार्च 2018 को प्रधानमंत्री मोदी ने एक कार्यक्रम में कहा था, ''पूर्ण समृद्धि और समग्र विकास तभी संभव है जब आप देखेंगे कि मुस्लिम युवाओं के एक हाथ में कुरान शरीफ है और दूसरे हाथ में कंप्यूटर है. आज यह सबसे महत्वपूर्ण है कि हमारे युवा मानवीय इस्लाम और आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी से जुड़ें.
 
उसी वर्ष, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस भावना को दोहराते हुए कहा: “हमें यह तय करना होगा कि हम अपनी वर्तमान पीढ़ी को कहाँ ले जाना चाहते हैं. आप कितने मौलवी और शास्त्री चाहते हैं? आप कितने मुतवल्ली चाहते हैं? आपकी पारंपरिक शिक्षा ही आपको वह देगी. यह आधुनिक क्यों नहीं होना चाहिए? क्या मदरसे में पढ़ रहे एक युवा को एक अच्छा नागरिक बनाना, एपीजे अब्दुल कलाम बनना उसका अधिकार नहीं है? अगर सरकार उन्हें विज्ञान, गणित और कंप्यूटर के बारे में शिक्षित करने के लिए अभियान चलाती है तो इसका विरोध क्यों किया जाए?”
 
 
इन शिक्षकों की दुर्दशा उत्तर प्रदेश में हजारों छात्रों की शिक्षा और संभावनाओं को प्रभावित करने वाले व्यापक संकट को दर्शाती है. नेताओं द्वारा किए गए वादों के बावजूद, वित्तीय सहायता की कमी के कारण कई लोगों को जीवित रहने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. मदरसों में आधुनिक शिक्षा की आशा, जिसका उद्देश्य पारंपरिक और समकालीन शिक्षा को जोड़ना है, अधूरी है क्योंकि ये शिक्षक अपने उचित मुआवजे की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
 
जैसा कि सरकार और संबंधित अधिकारी समाधान खोज रहे हैं, इन शिक्षकों की तत्काल जरूरतों को संबोधित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मदरसा आधुनिकीकरण योजना के लक्ष्यों को महसूस किया जा सके, एक ऐसा भविष्य प्रदान किया जाए जहां छात्रों के पास वास्तव में एक हाथ में कुरान हो और दूसरे में लैपटॉप हो.