हरियाणा की ‘चंगेरी’ कला बदल सकती है महिलाओं की किस्मत

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 20-01-2021
Haryana-Mewat-Changeri-DRDA-Gurgaon
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देसी गेहूं की बाल से बनती है चंगेरी और बीजना

घरेलू खराब कपड़ों से महिलाएं बनाती हैं गूदड़ी

डीआरडीए गुड़गांव 26वर्ष पहले मेवात में प्रदर्शनी कराकर भूल गई

यूनिसेफ टीम मेवाती कला की तारीफ कर चुकी है


मेवात की धरोहर कला चंगेरी’, ‘बीजना’ और ‘गूदड़ी’ की तरफ ध्यान दे, तो यह कला कुटीर उद्योग के रूप में विकसित हो सकती है, जिससे हजारों बेरोजगार महिलाओं को

रोजगार से जोड़ा जा सकता है.

 

यूनुस अलवी/ नूंह (हरियाणा)

राजधानी दिल्ली से 50 किलोमीटर दूर हरियाणा के मेवात क्षेत्र की महिलाएं शिक्षा में भले पिछड़ी हों, पर पारंपरिक कला के क्षेत्र में उनकी खास पहचान है. वे अपनी कला के बूते अपनी योग्यता का लोहा विदेशों में भी मनवा चुकी हैं. तकरीबन 26 वर्ष पहले यूनिसेफ टीम भी इन महिलाओं की कला की तारीफ में कसीदे पढ़ चुकी है. यह अलग बात है कि किसी भी सरकार ने मेवात की इस धरोहर कला ‘चंगेरी’, ‘बीजना’, ‘गूदड़ी’ को महत्व नहीं दिया. यदि ऐसा हुआ होता तो यह कला अब तक कुटीर उद्योग का रूप ले चुकी होती.

मेवात की महिलाओं द्वारा गेहूं की बाली की सीकों से तैयार की गई चंगेरी और बीजना की करीब 26 साल पहले डीआरडीए गुड़गांव (तब नूंह जिला गुरुग्राम का हिस्सा था) ने प्रदर्शनी लगाई थी. इसमें पहुंचे देश-विदेश के लोग मेवात की इस कला को देखकर बहुत प्रभावित हुए थे. मेवात में महिलाओं का शिक्षण अनुपात करीब पांच प्रतिशत है. क्षेत्र के अधिकतर लोग अपनी बच्चियों को  स्कूलों में भेजने की बजाए मस्जिदों, मदरसों में दीनी तालीम दिलाना उचित समझते हैं. या फिर प्राथमिक शिक्षा दिलाकर घर पर रहने को मजबूर करते हैं. दीगर बात है कि शिक्षित लोग अपनी लड़कियों को जरूर पढ़ाने लगे हैं, जो जज तक बन रही हैं.

अनपढ़ महिलाओं का जलवा

स्कूली शिक्षा से वंचित महिलाएं खेतों के काम, पशुओं की देखभाल, चूल्हा-चक्की और घरेलू कार्यों को निपटाने के बाद जो समय बचता है अपने हुनर को तराशने में लगाती हैं. इसमें कई तो इस कदर पारंगत हो गई हैं कि पारंपरिक कला में दक्षता से उनके कम पढ़े-लिखे होने या उनकी निरक्षरता का पता ही नहीं चलता.

‘चंगेरी’, ‘बीजना’, ‘डलियों’ में गेहूं की सीकों से हिन्दी, अंग्रेजी में नाम लिखना, फूल, गमले, पशु-पक्षी बनाना, मानो उनके बाएं हाथ का खेल हो.

 

महीनों पहले तैयारी हो जाती है शुरू

मेवात में रोटी रखने के लिए ‘चंगेरी’ और हाथ का पंखा बनाने की तैयारी में ये महिलाएं बैसाख यानी जून के महीने से ही जुट जाती हैं. गेहंू की कटाई के समय देसी गेहूं की बालों की लंबी-लंबी सीकों को तोड़ लेती हैं. उसके बाद उनको विभिन्न रंगों में रंग लेती हैं.‘चंगेरी’ और ‘डलियों’ को महिलाएं खासतौर से सावन के महीने में बनाती हैं. इसके दो कारण हैं.एक, महिलाओं को खेत-खलिहान का खास काम नहीं होता, दूसरा, बरसात के मौसम में नमी होने से सीकों में भी नमी आ जाती है, जिसकी वजह से ये टूटती नहीं हैं, इतना ही नहीं, महिलाएं घर के फटे-पुराने कपड़ों से खूबसूरत दरीनुमा गूदड़ी बनाने में भी माहिर हैं.

चंगेरी है बेहतर सौगात

इस कला से जुड़ी जमीला, रुखसाना, समीना और बिस्मिल्लाह का कहना है कि वे चंगेरी और बीजना को घरेलू इस्तेमाल के लिए बनाती हैं या रिश्तेदारियों को सौगात के रूप में भेंट करने के लिए. उन्होंने बताया कि एक चंगेरी बनाने में 8 से 10 दिन लग जाते हैं. यदि उन्हें पूरा समय दिया जाए, तो वे एक चंगेरी एक-दो दिन में तैयार कर सकती हैं. अच्छी किस्म की चंगेरी बनाने के लिए गेहूं की अन्य बालों की अपेक्षा देसी गेहूं की बाल अच्छी होती है. वह टूटती नहीं और लंबी भी होती है.

बाजार में आई प्लास्टिक की सीकें

मेवात में अब देसी गेहूं बहुत कम बोया जाता है, जिसकी वजह से देसी गेहूं की बालें मिलनी मुश्किल हो गई हैं. इसका फायदा उठाते हुए उद्योगपतियों ने बाजार में प्लास्टिक की सींकें उतार दी हैं. इनसे चंगेरी तो बन जाती हैं, पर वह क्वालिटी नहीं होती. वर्ष 1989-90 में मेवात के दौरे पर आई 22 देशों की यूनिसेफ टीम के सदस्यों ने मेवात की इस कला की जमकर तारीफ थी. कुछ कलाकृतियां अपने साथ भी ले गए थे. लगभग 10 साल पहले यूके की एक संस्था ने मेवात के खंड नगीना में 25 गांवों का दौरा किया था. संस्था ने विश्वास दिलाया था कि मेवात की इस अद्भुत कला को लंदन के बाजारों में बेचा जाएगा.

वायदे बहुत, पर पूरा किसी ने नहीं किया

मेवात की एसईडीएस संस्था के महासचिव डाक्टर अब्दुल अजीज ने वर्ष 1993-94में डीआरडीए गुड़गांव की ओर से मेवात की इस कला को बढ़ावा देने के लिए 35महिलाओं को खण्ड पुन्हाना के रहीड़ा, बीसरू और इन्दाना में ट्रेनिंग दी थी. उस समय डीआरडीए ने विश्वास दिलाया था कि ट्रेनिंग देकर भारी संख्या में उत्पाद बनाए जाएंगे और उन्हें विदेशों में बेचा जाएगा. उसके बाद वर्ष 1996-97में गुड़गांव में एक प्रदर्शनी लगाई गई, जिसमें लोगों ने जमकर तारीफ की. इस प्रोडक्ट को मुंह मांगे दामों में खरीद कर साथ भी ले गए.

मेवात के दीन मोहम्मद मामलीका, उमर मोहम्मद, जावेद सरपंच बादली,शमशेर लुहिंगाकला आदि का कहना है कि सरकार और प्रशासन इस ओर ध्यान दे, तो मेवात की यह कला कुटीर उद्योग का रूप ले सकती है. ऐसा कर मेवात की हजारों बेरोजगार महिलाओं को रोजगार से जोड़ा जा सकता है. मेवात में एक चंगेरी 100से 150रूपये की कमाई की जा सकती है. इसे विदेशों में एक हजार रूपये तक में बेचा जा सकता है.