मेहमान का पन्नाः शर्म पाकिस्तान को मगर नहीं आती!

Story by  शांतनु मुखर्जी | Published by  [email protected] | Date 03-02-2022
अमेरिका में दागी पाकिस्तानी राजदूत मसूद खान (वीडियो ग्रैब)
अमेरिका में दागी पाकिस्तानी राजदूत मसूद खान (वीडियो ग्रैब)

 

मेहमान का पन्नाः शर्म पाकिस्तान को मगर नहीं आती!

शांतनु मुखर्जी

पाकिस्तान को शायद हाल के दिनों में इस तरह के अपमान और शर्मिंदगी का सामना नहीं करना पड़ा है, जितना कि अब करना पड़ रहा है. अमेरिका में पाकिस्तान के नामित राजदूत मसूद खान पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं, जो अपनी पोस्टिंग से पहले अमेरिकी विदेश विभाग से मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं.

अपमान अभिव्यक्ति का एक मजबूत शब्द है, लेकिन इसका उपयोग यहां संदर्भ भर के लिए किया जा रहा है, क्योंकि पाकिस्तान के राजनयिक पर उसके करीबी आतंकी संबंधों के लिए लगाए गए गंभीर आरोप हैं. पिछले एक हफ्ते में मामला गर्म हो गया है क्योंकि 10वें जिले पेंसिल्वेनिया का प्रतिनिधित्व करने वाले कांग्रेस के सदस्य स्कॉट पेरी ने राष्ट्रपति जो बाइडेन को एक पत्र लिखकर आतंकवादी समूहों और आतंकवादियों के साथ घनिष्ठ संबंधों वाले मसूद खान की नियुक्ति को अस्वीकार करने के लिए कहा.

नामित राजदूत के प्रोफाइल को उजागर करते हुए पेरी ने पाकिस्तानी राजनयिक की मिलीभगत के विशिष्ट मामलों को सूचीबद्ध किया है. इनमें अन्य बातों के साथ-साथ खूंखार आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन (एचयूएम) के साथ उसकी सक्रिय निकटता शामिल है.

प्रधानमंत्री इमरान खान के कहने पर ऐसे दागी पाकिस्तानी राजनयिक का नामांकन, यह अच्छी तरह से जानते हुए कि मसूद खान के तार आतंकवादियों से जुड़े हुए हैं और जो आतंकवादियों को अमेरिका को निशाना बनाने के लिए प्रोत्साहित करता रहा है,यहदर्शाता है कि पाकिस्तान अमेरिका के प्रति कैसी दुर्भावना और अवमानना का भाव रखता है.

इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि मसूद कश्मीर में युवाओं को कट्टरपंथी बनने के लिए और उन्हें सुरक्षा बलों पर हमला करने के लिए हथियार उठाने के लिए उकसाता रहा है. रिकॉर्ड में इस बात के भी पर्याप्त सबूत हैं कि 2017में, मसूद खान हिजबुल के नेता पर अमेरिकी प्रतिबंधों को अनुचित बताते हुए अमेरिका पर खूब बरसे थे. बाद में 2019में, विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी (स्पेशल डेजिगनेटेड ग्लोबल टेररिस्ट) के मुद्दे पर उनके साथ उपस्थित होकर फजलुल रहमान खलील के साथ सहयोग किया.

गौरतलब है कि फजलुल रहमान हरकत उल मुजाहिदीन का संस्थापक है जिसे पहले से ही एक विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है. इस संगठन और इसके सहयोगियों के ओसामा बिन लादेन और अल कायदा दोनों के साथ सक्रिय संबंध थे. खलील इंटरनेशनल इस्लामिक फ्रंट का भी एक प्रमुख सदस्य था जिसने 1998में अमेरिका पर आतंकी हमले का आह्वान करते हुए एक फतवा जारी किया था.

इसके अलावा, आरोपों में यह भी शामिल है कि मसूद खान का इस्लामिक आतंकवाद से विकृत लगाव है और उसे सबसे कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी का भी समर्थन है जो मुंबई में 26/11के आतंकी हमलों के साथ लश्कर ए तैयबा (एलईटी) से सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है. मसूद के खिलाफ आरोपों की सूची अंतहीन है, जिसमें यह आरोप भी शामिल है कि उसने 2010में खुले तौर पर सामूहिक हत्यारे आफिया सिद्दीकी की रिहाई के लिए खुले तौर पर आह्वान किया था और उसकी हरकतें एक जिहादी के कार्यों के समान हैं.

उसके खिलाफ इतने सारे बिंदुओं के साथ निश्चित रूप से उन्हें अमेरिका में एक राजदूत के रूप में एक उचित उम्मीदवार तो नहीं माना जाता है और यह कांग्रेसमैन स्कॉट पेरी के पत्र में अच्छी तरह से व्यक्त किया गया है जो मसूद की वॉशिंगटन में पोस्टिंग का जोरदार विरोध कर रहे हैं.

राष्ट्रपति बाइडेन को संबोधित पत्र ने अमेरिकी सरकार के हलकों, मीडिया बिरादरी और शिक्षाविदों में एक जनमत बनाने की दिशा में आवाज उठाई है ताकि मसूद की नियुक्ति को बड़े भू राजनैतिक और सुरक्षा हितों में नामंजूर किया जाए. इस बीच, चिंतित हलकों का कहना है कि मसूद, हालांकि जन्म से पश्तून होने के बावजूद पीओके का राष्ट्रपति बनाया गया था,और उसने कश्मीर में आतंकवाद को पाला-पोसा.

हम अमेरिका के खिलाफ उनके नफरत भरे भाषणों को देखते हैं जो कभी भी राजनीतिक रूप से सही या विवेकपूर्ण नहीं रहे हैं. वे स्पष्ट रूप से किसी भी राजनयिक बयान की बजाए अमेरिका के खिलाफ जिहादी भाषणों देते रहे हैं. जिसे अब कांग्रेसी पेरी बहुत प्रचार के साथ ला रहे हैं. पिछले साल नवंबर में जब मसूद खान की नियुक्ति का प्रस्ताव वाशिंगटन पहुंचा, तब से अमेरिका बहुत एहतियात से कदम आगे बढ़ा रहा है. ऐसा लगता है कि अभी इसे ठंडे बस्ते में डाला हुआ है. शायद अमेरिका सभी विकल्पों को बहुत सावधानी से तौल रहा है क्योंकि वह पाकिस्तान को चीनी खेमे से दूर करने की कोशिश करने और उसे लुभाने के लिए एक विशेष विशेषता में डंप नहीं करना चाहता है इसलिए यह देरी है.

हालांकि, यह ध्यान में रखना होगा कि मसूद खान की बीजिंग में दो पोस्टिंग हो चुकी है. एक 2008से 2012तक एक पूर्ण पाकिस्तानी राजदूत के रूप में और इससे पहले एक जूनियर राजनयिक के रूप में. यह भी संभव है कि वह चीन के इशारे पर काम कर रहा हो क्योंकि चीन और पाकिस्तान चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के बहुत करीब हैं और चीन और अमेरिका ने चीन के शिविर को छोड़ने के लिए क्वाड और पाकिस्तान की अनिच्छा के कारण एक-दूसरे को दूर कर दिया है.

मसूद खान का मामला जांच का मामला है और अमेरिका जल्दबाजी में नहीं दिख रहा है और बहुत सावधानी के साथ आगे बढ़ रहा है. जो भी हो, मसूद मामले के बावजूद, अमेरिका और पाकिस्तान के लिए अपने द्विपक्षीय संबंधों को पटरी पर लाना इतना आसान और आसान नहीं होगा, जो पिछले साल अगस्त में अमेरिका के अफगानिस्तान से हटने के बाद और अधिक खराब हो गया था.

(लेखक सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी, सुरक्षा विश्लेषक और मॉरीशस के प्रधानमंत्री के पूर्व राष्ट्रीय सरक्षा सलाहकार हैं. यहां व्यक्त विचार उनके अपने हैं और आवाज- द वॉयस से उनकी सहमति आवश्यक नहीं है.)