रत्ना चोटराणी /हैदराबाद
मोहम्मद मोइनुद्दीन की दुकान महबूब रेडियो सर्विस हैदराबाद एक आकर्षक संगीतमय कबाड़खाने जैसा दिखता है. धुंधला और मंद रोशनी वाला छोटा कमरा, जिसमें एक पुराने जमाने की कशिश है, जो एक टिंकरिंग की दुकान की तरह दिखता है, जी मार्कोनी, आरसीए, नॉर्मंडी जर्मन, जीईसी, ग्रंडिग, मर्फी, फिलको जैसे ब्रांडों के विंड अप रेडियो के साथ एचएमवी, फिलिप्स और कई और ब्लॉक्स हैं जिनमें से कुछ सदी से अधिक पुराने हैं.
यह सोमवार की दोपहर है और हैदराबाद शहर में रेडियो के अकेले मरम्मत करने वाले मोहम्मद मोइनुद्दीन एक एंटीक रेडियो फिलिप्स के टूटे हुए हिस्से को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं, 1948की एक शॉर्ट वेव मशीन उन्हें कुछ दिन पहले ब्रिटेन के एक रेडियो उत्साही द्वारा दी गई थी.
दूसरी पीढ़ी के रेडियोसाज मो. मोइनुद्दीन कहते हैं कि देश-विदेश से लोग यहां अपने रेडियो की मरम्मत कराने आते हैं. मोइनुद्दीन कहते हैं, कई ऐसे हैं जो रेडियो सुनने के आनंद को फिर से खोज रहे हैं और कुछ अपने पूर्वजों की यादों को जीवित रखना पसंद करते हैं.
मोहम्मद मोइनुद्दीन की दुकानों में पुराने रेडियो और दुनिया भर के स्पेयर पार्ट्स से भरी हुई अलमारियां हैं. लोग आज संगीत सुनने के लिए पॉडकास्ट, सेल फोन, कार संगीत प्रणाली का दावा करते हैं, लेकिन एक रेडियो सेट जो भारत के कई घरों में जरूरी था, अब दुर्लभ और अनसुना है. लेकिन हैदराबाद में अभी भी मौजूद यह एक आखिरी मरम्मत स्टोर इस दुर्लभ वस्तु की जरूरत को पूरा करने के लिए हर सुबह जीवन में आता है.
अच्छे पुराने दिनों को याद करते हुए मोहम्मद मोइनुद्दीन कहते हैं कि उनके पिता शेख महबूब ने 1900की शुरुआत में दबीरपुरा में पानी के पाइप के लिए दुकान खोली थी जो एक दुर्लभ और एक नवीनता थी,
तब जब निजाम ने इन नई दुकानों का निर्माण किया तो शेख महबूब ने नल और पाइप की खुदरा बिक्री की. बॉम्बे तब और अब मुंबई ने अपनी दुकान को शहर के सबसे व्यस्त बाजार स्थानों, चारमीनार के पास चट्टा बाजार में स्थानांतरित कर दिया, जो आज तक जारी है.
शेख महबूब ने दो मंजिला दुकान को 7000रुपये में खरीदा था. मुंबई से पाइप और नल खरीदने के लिए शेख महबूब की आकस्मिक यात्रा ने शेख महबूब को एक नई कलाकृति रेडियो देखने के लिए प्रेरित किया.
डीलर ने उसे हैदराबाद ले जाने और इसे बेचने के लिए कहा और अगर यह बिकता नहीं तो वापस हो जाता. शेख महबूब ने पहली बार हैदराबाद में 150 रुपए में रेडियो लेकर आए. उन दिनों 500 से 400 रुपए में एक घर भी खरीदा जा सकता था.
वह याद करते हैं कि उन दिनों एक सौ रुपये का नोट भी इतना बड़ा होता था कि उसे जेब में रखने के लिए चार बार मोड़ना पड़ता था. हालाँकि हैदराबाद में रेडियो काम नहीं करता था क्योंकि रेडियो के लिए आवश्यक 230 वोल्ट के मुकाबले केवल 110 वोल्ट बिजली थी. शेख महबूब ने रेडियो को वापस ले लिया और इसे 110 वोल्ट पर सेट कर दिया और वापस आ गया.
मोहम्मद मोइनुद्दीन ने कहा कि उन दिनों केवल वॉयस ऑफ अमेरिका का प्रसारण होता था, ज्यादातर समय जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर के भाषण प्रसारित होते थे और भाषण सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग उनकी दुकान पर जमा होते थे. उन दिनों केवल एक ही प्रसारण होता था और वह था लॉन्ग वेव. शॉर्टवेव और मीडियम वेव बहुत बाद में आई.
एक नवाब को रेडियो में दिलचस्पी हो गई और उसने इसे रु. 290जो खरीदा कर ले गया जो उसकी असली कीमत से दोगुनी रकम थी. फिर धीरे-धीरे शहर में कई रेडियो की दुकानें खुल गईं.
नवाब के दामाद ने रेडियो रिपेयरिंग की कला सीखी और उनसे सलाह ली. उन्होंने रूस से कला में महारत हासिल की और रेडियो के लिए हैदराबाद में पहले मैकेनिक थे.
बाद में इस मैकेनिक ने हैदराबाद के गौलीगुडा चमन में एक संस्थान स्थापित किया. लेकिन शेख महबूब ने पीछे मुड़कर नहीं देखा, उनका व्यवसाय सफलता के झंडे गाड़ रहा था. 1997में शेख महबूब की मृत्यु हो गई. उनकी दुकान उनके दो बेटों के जिम्मे आ गई.
पहले रेडियो बिजली से चलता था लेकिन बाद में एक बैटरी रेडियो शुरू हुई. बैटरी जो तब 9 रुपये में उपलब्ध थी, लेकिन वो तब चार्जेबल नहीं था और उसे हर तीन महीने में बदलना पड़ता था.
कीमत के बावजूद लोग बैटरी के लिए भुगतान करने को तैयार थे क्योंकि रेडियो एक सनक बन गया था. लेकिन ग्रामोफोन, टेप रिकॉर्डर, स्पूल, रेडियो के आगमन के साथ जीवाश्म बन गए.
आज उनकी वर्कशॉप में एंटीक रेडियो और स्पेयर पार्ट्स से भरी हुई अलमारियां हैं और जब वह उनकी मरम्मत करता है या ठीक घटकों को मिलाता है, तो मोटर खड़खड़ाहट, खड़खड़ाहट जारी रखती है. मरम्मत करना आसान नहीं है.
अक्सर उसे भागों को अलग करना, साफ करना, पुनः प्राप्त करना और फिर से इकट्ठा करना पड़ता है, जो काफी जटिल व्यवसाय है. कई मामलों में उन्हें बदलने की आवश्यकता होती है और एक प्रतिस्थापन ढूंढना आसान नहीं होता है.
मो. मोइनुद्दीन कहते हैं, जो अब अपने भाई के रूप में खुद ही दुकान चलाते हैं, उनके भाई का भी निधन हो गया. अक्सर उसे पुर्ज़े भी गढ़ने पड़ते हैं.
दुकान के एक कोने में एक जीईसी रेडियो है जो 1900 की शुरुआत का है. वह कहते हैं कि यह रेडियो सेट मेरे पिता ने खरीदी थी. वह कहते हैं कि 'हमारे घर में रेडियो कॉर्पोरेशन ऑफ अमेरिका का एक रेडियो सेट है'. लोग सऊदी अरब, दुबई, लंदन, कुवैत से आते हैं, वे सभी मरम्मत के लिए अपने पुराने रेडियो सेट लाते हैं. उनका दावा है, भारत में हम एकमात्र मरम्मत की दुकान हैं जो वाल्व एम्पलीफायर रेडियो सेट की मरम्मत कर सकते हैं.
हमारे पास 4 वोल्ट, और 6 वोल्ट वाल्व के सेट हैं. भले ही ट्रांजिस्टर आया और वाल्व एम्पलीफायर ने बंद कर दिया था, लोगों के पास वाल्व रेडियो सेट जारी है और आज तक मरम्मत के लिए उनके रेडियो सेट हमारे पास लाते हैं.”
बहुत सारे ऑडियोफाइल मरम्मत के लिए उनकी कार्यशाला का दौरा करना जारी रखते हैं. उनका मानना है कि "मार्कोनी", उन्हें ध्वनि की अतुलनीय समृद्धि के साथ एक पूर्ण-निष्ठा सुनने का अनुभव प्रदान करता है. लेकिन कभी-कभी लोग अपनी विरासत में जोड़ने के लिए रेडियो को केवल सजावटी वस्तु के रूप में खरीदते हैं.