पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फरमाया कि “अल-हज्जु अराफा” (हज, अराफा ही है) यानि अगर कोई अराफात में नहीं पहुंचा, तो उसका हज नहीं हुआ.
हज़रत मुहम्मद ﷺ ने अपने विदाई हज (हजतुल विदा) के दौरान अराफात के मैदान में लाखों लोगों को ऐतिहासिक खुत्बा (उपदेश) दिया — जिसमें इंसानियत, बराबरी, महिलाओं के अधिकार और इस्लामी मूल्यों का पैग़ाम था.
अराफात के दिन अल्लाह तआला अपने बंदों की दुआएं बड़ी मात्रा में क़बूल करता है. यह दिन तौबा, आंसू और इबादत का होता है.
पैग़म्बर ﷺ ने कहा कि कोई दिन ऐसा नहीं जब अल्लाह अपने बंदों को आग से ज़्यादा आज़ाद करता हो, जितना अराफात के दिन करता है
हाजी अराफात में क्या करते हैं?
ज़ोहर और अस्र की नमाज़ एकसाथ पढ़ते हैं
दुआ, इस्तेग़फ़ार (माफी), तस्बीह और कुरआन की तिलावत
अल्लाह के सामने खड़े होकर रो-रोकर दुआ करना (वक़ूफ़-ए-अराफात)