इस्लामी नया साल – मोहर्रम से इस्लामी (हिजरी) वर्ष की शुरुआत होती है, यह इस्लाम का एक पवित्र महीना माना जाता है.

चार पवित्र महीनों में एक – मोहर्रम इस्लाम में चार "हराम महीनों" में शामिल है, जिनमें युद्ध और हिंसा वर्जित माने गए हैं.

इमाम हुसैन की शहादत – मोहर्रम का सबसे बड़ा महत्व कर्बला की घटना से जुड़ा है, जहाँ पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.अ.) के नवासे इमाम हुसैन (अ.स.) ने इस्लाम की सच्चाई और इंसाफ की खातिर 10 मोहर्रम (यौम-ए-आशूरा) को शहीदी प्राप्त की.

कर्बला का बलिदान – इमाम हुसैन ने अन्यायपूर्ण यज़ीद शासन के सामने झुकने से इनकार कर दिया और अपने 72 साथियों के साथ भूखे-प्यासे रहकर भी अंतिम सांस तक सत्य का साथ दिया.

सच्चाई और न्याय का प्रतीक – मोहर्रम, विशेष रूप से आशूरा का दिन, त्याग, धैर्य, बलिदान, और न्याय के लिए संघर्ष का प्रतीक माना जाता है.

शोक और मातम का महीना – शिया मुस्लिम समुदाय इस महीने को गहरे शोक के रूप में मनाता है। ताज़िया, मातम, नोहा और मजलिस के माध्यम से इमाम हुसैन की याद में ग़म मनाया जाता है.

इबादत और आत्मचिंतन – मोहर्रम के दौरान मुसलमान इबादत, रोज़ा, और दुआ के ज़रिए अपने ईमान को मज़बूत करते हैं.

रोज़ा रखने का महत्व – सुन्नी मुस्लिम समुदाय भी मोहर्रम, खासतौर पर 9वीं और 10वीं तारीख़ को रोज़ा रखने को पुण्य मानता है. हज़रत मूसा (अ.स.) के फिरऔन से मुक्ति के उपलक्ष्य में भी रोज़ा रखने की परंपरा है.

धर्मनिरपेक्ष भावनाओं को प्रेरित करता है – इमाम हुसैन का बलिदान सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि समस्त मानवता के लिए प्रेरणा है, जहाँ अत्याचार के विरुद्ध खड़े होने की शिक्षा मिलती है.

याद और चेतावनी का महीना – मोहर्रम हमें याद दिलाता है कि सच्चाई और इंसाफ की राह कठिन हो सकती है, लेकिन उसमें डटे रहना ही असली ईमानदारी और बहादुरी है.

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