इमाम हुसैन अपने परिवार और 72 साथियों के साथ कर्बला के मैदान में पहुंचे, जहां यज़ीद की सेना ने उन्हें घेर लिया.
इमाम हुसैन ने कर्बला में डेरा डाला। यज़ीद की सेना ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया और घेराबंदी शुरू कर दी.
यज़ीद की सेना की संख्या बढ़ती गई और हुसैन को आत्मसमर्पण के लिए दबाव डाला गया, लेकिन उन्होंने अन्याय के आगे झुकने से इनकार कर दिया.
यज़ीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके साथियों के लिए पानी बंद कर दिया, जिससे खेमे में प्यास और तकलीफें बढ़ गईं.
हुसैन के खेमे में भूख-प्यास से हालत गंभीर हो गई. बावजूद इसके, उन्होंने अपने उसूलों से समझौता नहीं किया.
यज़ीद की सेना ने हमले की तैयारी की. इमाम हुसैन ने अंतिम रात को इबादत, प्रार्थना और परिवार से विदाई में बिताया.
सुबह से जंग शुरू हुई. हज़रत अली अकबर, अब्बास, कासिम और हुसैन के अन्य साथियों ने एक-एक कर शहादत दी.
दोपहर के समय, इमाम हुसैन को बेरहमी से शहीद किया गया और उनका सिर काटकर यज़ीद के दरबार में भेजा गया.
यज़ीद की सेना ने हुसैन के खेमों में आग लगा दी और महिलाओं व बच्चों को बंदी बना लिया.
ये दस दिन अन्याय के विरुद्ध सत्य और बलिदान की अमर गाथा बन गए, जो आज भी दुनिया भर में प्रेरणा का स्रोत हैं.