Muharram 2024: ताजिये का तैमूर कनेक्शन, जानें इतिहास
इमाम हुसैन की कब्र के प्रतीक के रूप में बनाई जाने वाली बड़ी-बड़ी कलाकृतियों को ताजिया कहा जाता है।
मुहर्रम के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग गमजदा होकर शोक मनाते हैं।
कहा जाता है ताजिये की शुरुआत मुस्लिम शासक तैमूर के दौर में हुई थी।
ताजिये का जुलूस इमामबारगाह से निकलता है और कर्बला में जाकर खत्म होता है।
मुहर्रम के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग गमजदा होकर शोक मनाते हैं।
इमाम हुसैन की कब्र के प्रतीक के रूप में बनाई जाने वाली बड़ी-बड़ी कलाकृतियों को ताजिया कहा जाता है।
कहा जाता है ताजिये की शुरुआत मुस्लिम शासक तैमूर के दौर में हुई थी।
ताजिये का जुलूस इमामबारगाह से निकलता है और कर्बला में जाकर खत्म होता है।
इसको बनाने में सोने, चांदी, लकड़ी, बांस, स्टील, कपड़े और कागज का प्रयोग किया जाता है।
मुहर्रम की 10वीं तारीख को हुसैन की शहादत की याद में गम और शोक के प्रतीक के तौर पर जुलूस के रूप में ताजिया निकाला जाता है।
तैमूर मूल रूप से कजाकिस्तान का था और मुस्लिमों के शिया समुदाय से ताल्लुक रखता था। ईरान, अफगानिस्तान, इराक और रूस के कुछ हिस्सों को जीतने के बाद तैमूर 1398 ईस्वी के दौरान हिंदुस्तान पहुंचा था।
फिर दिल्ली के शासक मुहम्मद बिन तुगलक को हराकर खुद को शहंशाह घोषित कर दिया और दिल्ली की गद्दी पर राज करने लगा।
वैसे तो तैमूर हर साल मुहर्रम मनाने के लिए इराक जाता था, लेकिन एक साल युद्ध में जख्मी होने की वजह से हकीमों ने उसे सफर करने से मना किया और इस कारण वह उस साल मुहर्रम मनाने इराक नहीं जा पाया।
कई ताजिया निर्माता थोक में आवश्यक कच्चे माल की व्यवस्था करने के लिए पैसे उधार लेते हैं और बिक्री तक अपने ताजिये को रखने के लिए रौज-ए-काजमैन के परिसर में जगह किराए पर लेते हैं. कुछ निर्माता अपने निर्माण को मौसम की मार से बचाने के लिए तिरपाल की चादरों का भी इस्तेमाल करते हैं.