दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है.

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया.

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है.

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं.

रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं.

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