माथेरान के घोड़ों और उनके मालिकों की मदद को क्यों आगे आईं मुंबई की दो बहनें दानिया और रिदा

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 28-05-2021
माथेरान के घोड़ों और उनके मालिकों की मदद को क्यों आगे आईं मुंबई की दो बहनें दानिया और रिदा
माथेरान के घोड़ों और उनके मालिकों की मदद को क्यों आगे आईं मुंबई की दो बहनें दानिया और रिदा

 

मलिक असगर हाशमी / मुंबई / नई दिल्ली

बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल की दो छात्राओं दानिया और रिदा खान का घोड़ों और उनके मालिकों को राहत पहुंचाने का प्रयास रंग लाने लगा है. उनकी कोशिशों से मुंबई से लगते माथेरान हिल स्टेशन के न केवल निवासियों, उनके घोड़े के लिए भी चारे-पानी की व्यवस्था कर ली गई है. इसके वितरण का सिलसिला भी शुरू हो चुका है.
 
बारह वर्ष की दुनिया और 15 वर्ष की रिदा खान, दोनों सगी बहने हैं. इस समय वो माथेरान के घोड़ों के मालिकों के लिए राशन के किट पैक तैयार करने में जुटी हैं. उन्हांेने ‘क्राउड फंडिंग’ के जरिए माथेरान के घोड़ों और उनके मालिकों को सहायता पहुंचाने के लिए तीन लाख रूपये एकत्रित किए हैं.
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उनका लक्ष्य चार लाख रुपये जुटाना है. उन्हें लगता है कि चार लाख रुपये से घोड़ों के साथ उनके मालिकों को कोरोना के कारण उनके सामने उत्पन्न हुई मुसीबत से बहुत हद तक छुटकारा दिलाया जा सकता है.
 
बता दें कि माथेरान मुंबई से करीब 80 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर्यटन क्षेत्र है. करीब 10,000 की यहां की आबादी पर्यटन पर निर्भर है. यहां आने वाले पर्यटक घोड़ों पर सवार होकर सैर-सपाटा करते हैं. उससे होने वाली आमदनी से ही माथेरान वालों के घर का चुल्हा जलता है. फिलहाल उनका कारोबार पूरी तरह ठप है. भूले-भटके भी सैलानी इधर का रुख नहीं कर रहे हैं.
 
दक्षिण मुंबई के बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल की छात्रा दानिया और रिदा खान को माथेरान के घोड़ों और उनके मालिकों को सहायता पहुंचाने का ख्याल कैसे आया ? इस सवाल के जवाब में वो कहती हैं, “कुछ हफ्ते पहले, हमें अपने स्कूल ग्रुप चैट में माथेरान के घोड़ों और उनके मालिकों की बदहाली की जानकारी मिली. उनकी दुर्दशा के बारे में जानकर मन बेचैन हो उठा.’’ 
 
वो बताती हैं, ‘‘छानबीन से पता चला कि माथेरान पर  2020 के लॉकडाउन की शुरुआत से बुरा प्रभाव पड़ा है. वहां रहने वालों के पास अब स्थिर आय का कोई जरिया नहीं बचा. घोड़ों के मालिकों की आर्थिक तंगी की वजह से माथेरान के करीब 400 घोड़े भुखमरी का सामना कर रहे हैं.’’
 
एक घोड़े के मालिक का कहना है कि प्रति घोड़ा उन्हें चार से पांच सौ खर्च करना होता है. आमदनी बंद होने से उनके लिए भोजन जुटाना मुश्किल हो रहा है. घोड़ों को जिंदा रखने के लिए वह ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे हैं.
 
दोनों बहनें बताती हैं-‘‘ इसके बाद ही उन्हें माथेरान के घोड़ों और उनके मालिकों का अस्तित्व बचाने का ख्याल आया. उनके भोजन और चारे की व्यवस्था शुरू कर दी. इसके लिए क्राउडफंडिंग अभियान चलाया. उन्हें धन उगाहने वाले प्लेटफॉर्म नोबडी एवर स्लीप्स हंग्री का भी साथ मिला. कुछ एनजीओ भी आगे आए.
 
दोनों बहनों ने ‘व्हाट्सएप’ की भी सहायता ली. उसपर संदेश लिखकर लोगों को माथेरान की मौजूदा स्थिति से अवगत कराया. अपने इंस्टाग्राम एकाउंट के जरिए भी संदेश जारी किए. अपने-परायों को व्यक्तिगत स्तर फोन कर पैसे जुटाए. तमाम प्रयासों का नतीजा रहा कि जल्द ही तीन लाख रुपये एकत्रित हो गए.
 
उन पैसों से दोनों बहनों ने  15,000 किलो चारा और 2,500 किलो राशन खरीद कर वितरण का काम शुरू कर दिया है. इस बारे में वह कहती है, “हमने महसूस किया कि हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए 4 लाख रुपये चाहिए. उम्मीद है कि जल्द ही हम यह लक्ष्य भी पा लेंगे. माथेरान के घोड़ों और उनके मालिकों को मौजूदा मुसीबत से पार ले जाएंगे.”
 
दानिया ने बताया कि एकत्रित धन से 2,500 किलोग्राम राशन खरीद कर 100 राशन किट वितरित किए हैं. चारे के लिए ऑर्डर दिया गया था, जिसकी सप्लाई शुरू होते ही वितरण का काम प्रारंभ कर दिया गया है. उन्हें इस काम में योडा, खालसा हेल्पिंग हैंड्स, माथेरान स्ट्रे फीडर अभियान, लायंस क्लब सहित कई अन्य गैर सरकारी संगठनों और पशु प्रेमियों का साथ मिल रहा है.
 
दोनों बहनों ने स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों से भी इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है. वह बताती हैं कि इस बारे में महाराष्ट्र के पर्यटन एवं पशुपालन मंत्री सुनील केदार को अनुरोध पत्र भेजने पर उन्होंने स्थिति का पता लगाने का भरोसा दिया है.रिदा उम्मीद जताती हैं, ‘‘ इन प्रयासों से निश्चित ही माथेरान की समस्या का दीर्घकालिक समाधान निकलेगा.’’
 
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माथेरान एक परिचय


मुंबई से मात्र 110  किलोमीटर दूर रायगढ़ जिले में स्थित है. यह प्राकृतिक खूबसूरती से भरा छोटा सा हिल स्टेशन है. कर्जत तहसील के अंदर आने वाला यह भारत का सबसे छोटा हिल स्टेशन है. पश्चिमी घाट पर्वत शृंखला में समुद्र तल से 900 मीटर की ऊंचाई पर बसा है.
 
मुंबई और पुणे से इसकी दूरी क्रमशः 80 और 120 किलोमीटर है. बड़े शहरों से इसकी निकटता के कारण माथेरान शहरी नागरिकों के लिए सप्ताहांत बिताने के लिए लोकप्रिय स्थल है. इसकी खासियत है कि यहां किसी भी प्रकार के वाहन का प्रवेश वर्जित है. यहां का वातावरण मन को शांति प्रदान करता है.
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शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से दूर सुकून के कुछ पल बिताने के लिए माथेरान बिल्कुल उपयुक्त स्थान है. मुंबई, पुणे और नासिक के लोगों की यह पसंदीदा जगह है. अब उत्तर और दक्षिण भारत के लोगों को भी यह स्थान अपनी ओर आकर्षित करने लगा है.
 
इस सबसे छोटे हिल स्टेशन की खोज मई 1850 में ठाणे जिले के कलेक्टर ह्यूज पोय्न्ट्स मलेट ने की थी. मुंबई के तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड एलफिंस्टन ने यहां भविष्य के हिल स्टेशन की नींव रखी और गर्मी के दिनों में वक्त गुजारने की दृष्टि से इसे विकसित किया गया. 10,000 की आबादी वाले इस कस्बे तक मुंबई, पुणे और सूरत से आसानी से पहुंचा जा सकता है.
 
माथेरान का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है नेरल स्टेशन जो यहां से 9 किलोमीटर दूर है. इसके आगे वाहनों का प्रवेश वर्जित है. आगे जाने के लिए या तो पैदल जाना होगा या बग्गी, रिक्शे या घोड़ों का प्रयोग करना प़डेगा. यहां पहुंचने का सबसे अच्छा साधन है यहां की टॉय ट्रेन.
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इस हाल में 100 साल पूरे हुए हैं. पहाड़ों पर चढ़ती उतरती इस ट्रेन में बैठकर ढाई घंटे की यात्रा में खूबसूरत प्राकृतिक नजारों का आनंद उठाया जा सकता है. इसके अलावा ट्रॉली से भी यहां  पहुंच सकते हैं. माथेरान में प्रवेश करते ही यहां का वातावरण और शुद्ध हवा मन को ताजगी और स्फूर्ति से भर देता है.
 
इस छोटे से हरे-भरे शहर में साल भर पर्यटकों का तांता लगा रहता है. यहां आने का सबसे अच्छा मौसम है मानसून. उस समय घाटियों में फैला कोहरा, हवा में तैरते बादल और भीगा-भीगा मौसम एक अलग ही समां पैदा करते हैं. माथेरान में प्राकृतिक नजारों का आनंद लेने के लिए दूर तक फैली वादियां हैं.
 
इसके अलावा माउंट बेरी और शार्लोट लेक भी यहां के मुख्य आकर्षण हैं. माउंट बेरी से नेरल से आती हुई ट्रेन का दृश्य देखा जा सकता है. पहाड़ों पर हरियाली के बीच से घूम-घूम कर आती ट्रेन का दृश्य वाकई अभिभूत कर देता है. वहीं शार्लोट लेकर यहां से सबसे खूबसूरत स्थानों में से एक है. लेक के दाईं ओर पीसरनाथ का प्राचीन मंदिर है. बाईं ओर दो पिकनिक स्पॉट लुईस पॉइंट और इको पॉइंट हैं.
 
हनीमून पॉइंट पर रस्सी के द्वारा घाटी को पार करने का साहस और रोमांच कार्य का भी अनुभव यहां किया जा सकता है. इसके अलावा एलेक्जेंडर पॉइंट, रामबाग पॉइंट, लिटिल चेक पॉइंट, चैक पॉइंट, वन ट्री हिल पॉइंट, ओलंपिया रेसकोर्स, लॉर्डस पॉइंट, सेसिल पॉइंट, पैनोरमा पॉइंट इत्यादि अनेक स्थानों पर जाकर प्रकृति की खूबसूरती का अहसास कर सकते हैं. प्रकृति प्रेमियों के लिए यह स्थान किसी स्वर्ग से कम नहीं है.
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माथेरना के मायने


माथेरान का शाब्दिक अर्थ होता है माथे (पर्वत के) पर स्थित अरण्य. पर्यावरण की दृष्टि से अतिसंवेदनशील होने के कारण यह पूरे एशिया एक मात्र स्वचालित वाहन मुक्त हिल स्टेशन है. माथेरान में पैनोरमा पॉइंट सहित लगभग 36 पूर्व निश्चित लुक-आउट पायंट्स हैं जहाँ से आप आस पास के सारे क्षेत्र के अलावा नेरल शहर का भी विहंगम दृश्य प्राप्त कर सकते है. पैनोरमा पॉइंट से सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बहुत नाटकीय और मनोरम होता है. लूइसा पॉइंट के प्रबल फोर्ट का सुस्पष्ट दर्शन होता है.
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इतिहास


माथेरान की खोज 1850 में थाने जिले के तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ह्यू पायंट्ज मेल्ट द्वारा की गई थी. उस समय के बंबई के गवर्नर लॉर्ड एलफिन्स्टन ने इस भावी हिल स्टेशन की आधारशिला रखी. अंग्रेज सरकार ने इस इलाके में पड़ने वाली गर्मी से बचाव के लिए माथेरान का विकास किया.
 
माथेरान हिल रेलवे का निर्माण 1907 में सर आदंजी पीर्भोय द्वारा किया गया था. घने जंगलों के विशाल इलाके में फैला यह रेलवे 20 किलो मीटर की दूरी तय करता है. माथेरान लाइट रेलवे के नाम से भी मशहूर इस स्थान का यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट के अधिकारियों द्वारा भी निरीक्षण किया गया था. मगर यह वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में स्थान पाने में असफल रहा.
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वन और वन्य जीवन


माथेरान को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है. यह अपने आप में एक स्वास्थ्य आरोग्य आश्रम कहा जा सकता है. इस इलाकेे के अनेक सूखे पेड़ों का संग्रह ब्लात्तेर हर्बेरियम, स्ट्रीट. 
 
माथेरान में उपस्थित एक मात्र स्वचालित वाहन इसकी नगर पालिका द्वारा संचालित एम्बुलेंस है.किसी भी निजी स्वचालित वाहन को अनुमति नहीं दी जाती. माथेरान के भीतर यातयात के साधानों के रूप में घोड़े और हाथ से खींचे जाने वाला रिक्सा ही उपलब्ध होता है.
 
माथेरान में बड़ी संख्या में औषधीय पौधे और जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं. इस शहर में बॉनेट मकाक, हनुमान लंगूर समेत बहुत सारे बंदर भी पाए जाते हैं. निकट में ही अवस्थित लेक शार्लट माथेरान का पीने के पानी का प्रमुख स्रोत है. जंगल के अंदर कई तरह के जानवर जैसे कि तेंदुए, हिरण, मलाबार जाइयंट गिलहरी, लोमड़ी, जंगली सुअर, नेवले आदि पाए जाते हैं.
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यातायात-साधन


माथेरान मुंबई और पुणे से रेल और सड़क द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. इसका निकटतम रेलवे स्टेशन नेरल है. निकटतम हवाई अड्डा छत्रपति शिवाजी इंटरनेशनल एयरपोर्ट, मुंबई है. माथेरान शहर के केंद्र में एक नॅरो गेज रेलवे स्टेशन है. माथेरान हिल रेलवे से नेरल के लिए प्रतिदिन सेवा उपलब्ध है. इस पर चलने वाली खिलोना गाड़ी मुख्य लाइन से नेरल जक्सन में जुड़ती है जो की सी.एस.टी-कर्जत मार्ग के द्वारा सी.एस.टी से अच्छी तरह जुड़ा है.
 
माथेरान के संदर्भ में इनपुट विकिपीडिया