एक साल बेमिसालः सपनों को पंख और भविष्य को हौसला देने वाले युवा

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 22-01-2022
सपनों को पंख और भविष्य को हौसला देने वाले युवा
सपनों को पंख और भविष्य को हौसला देने वाले युवा

 

आवाज विशेष । एक साल बेमिसाल

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

बेशक, किसी देश और कौम को उसके अतीत के सुनहरे वर्क़ों से पहचाना जाता है. यह हमें ताकत देता है, लेकिन किसी भी राष्ट्र के भविष्य की नींव रखते हैं उसके युवा, युवाओं के कारनामे देश को उम्मीद देते हैं.

इस छोटे से आलेख में देश के उस हर युवा के कारनामे को दर्ज नहीं किया जा सकता है. हर युवा अपने मुताबिक, योगदान कर रहा है. कुछ के नाम चर्चा में आ जाते हैं, कुछ को चर्चा में आने की परवाह नहीं होती और वे अनसंग हीरोज की तरह नींव की ईंट बनना पसंद करते हैं.

ऐसी ही कुछ कहानियां हमने एक साल में आपको पेश की हैं. इनमें से काबिले गौर कहानी बदर जमाल साहिल की है.

जब 2016 में संभल (उत्तर प्रदेश) के दीपा सराय इलाके के रहने वाले मोहम्मद आसिफ की भारतीय उपमहाद्वीप (एक्यूआईएस) में अल कायदा के कथित प्रमुख के तौर पर गिरफ्तारी हुई, उस वक्त आसिफ के एक पड़ोसी बदर जमाल साहिल अपने इलाके और इस ऐतिहासिक शहर के लिए सपने बुनने में व्यस्त थे.

साहिल उस समय एक राजस्व उप निरीक्षक और एक छोटे से ट्यूशन सेंटर के प्रबंधक थे. उन्होंने छात्रों और उनके माता-पिता दोनों को बेहतर शिक्षा और बच्चों के भविष्य के करियर के बारे में अधिक जागरूक करने के लिए अपने केंद्र में शिक्षक-अभिभावक बैठकें शुरू कीं.

पांच साल के बाद, आसिफ अभी भी अपने मामले में मुकदमे और सुनवाई का इंतजार करता हुआ तिहाड़ जेल में बंद है और साहिल का अध्ययन केंद्र शहर के अलग-अलग स्थानों में चार केंद्रों तक फैल गया है, जिससे छात्रों की भीड़ उमड़ पड़ी है.

इसे अब साहिल स्टडी पॉइंट (एसएसपी) कहा जाता है, जिसने विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए छात्रों की काउंसलिंग में भी विशेषज्ञता हासिल की है.

राष्ट्र को बेशक, साहिल जैसे नौजवानों की लौ की जरूरत है. शिक्षा से ही वह ललक पैदा होती जिसे हम युवाओं को संसाधन ही नहीं, खजाने में बदल देते हैं. उत्तर प्रदेश से चलते हैं आंध्र प्रदेश जिसके हैदराबाद में रहते हैं अब्दुल कादिर आसिम.

हैदराबाद के इस नौजवान ने न केवल अपनी नए-नवेली सोच और अद्वितीय बुद्धिमत्ता से एक नया आविष्कार किया. अब्दुल कादिर आसिम ने बेहतरीन मानसिक और क्षमताओं का प्रदर्शन करते हुए अपनी पुरानी साइकिल को बहुत ही कम कीमत में इलेक्ट्रिक बाइक में बदल दिया. अब वह उन लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं, जो पेट्रोल की कीमत में भारी वृद्धि के चलते अच्छे विकल्प की तलाश में हैं.

अब्दुल कादिर आसिम को बचपन से ही तरह-तरह के प्रोजेक्ट बनाने का शौक था. वह स्कूल में तरह-तरह के प्रोजेक्ट तैयार करते थे.एसएससी पूरा करने के बाद, आसिम ने सीईसी विषय के साथ इंटरमीडिएट पूरा किया.

बीकॉम की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने डेक्कन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से एचआर में एमबीए की डिग्री हासिल की. अब वह ओमेगा टेक कंपनी में मानव संसाधन विभाग में काम करते है. वह डेटा एनालिस्ट हैं. हालांकि आसिम कॉमर्स ग्रेजुएट हैं, लेकिन उन्होंने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल विभिन्न प्रोजेक्ट तैयार करने में किया है. उधर, देश के पूर्वोत्तर इलाके में रहते हैं महबूब अली. जिन्होंने विज्ञान पर कला को तरजीह दी और पुराने जमाने के बजाज स्कूटर को जिंदा कर दिया. वह भी बांस से.

 

नलबाड़ी जिले के जानिगोग गांव के सैफ अली के बेटे 30 वर्षीय महबूब ने शिल्प कौशल में इस असाधारण प्रतिभा को अन्य कार्यों में भी प्रदर्शित किया, जैसे कि बांस से मछली पकड़ने वाली छ़ बनाना आदि. अपने पिता की पहल पर बांस का बजाज स्कूटर को हाल ही में महबूब ने लॉन्च किया. 

कला की बात और कश्मीर की चर्चा न हो तो बात अधूरी रह जाएगी. देश के सिरमौर कश्मीर में चार दशक हो गए मिट्टी या ‘रोघने के बर्तन’ की चर्चा नहीं होती.

यदि आप आज के युवाओं से चमकता हुआ मिट्टी या ‘रोघने के बर्तन’ के बारे में पूछें, तो आपको एक खाली चेहरा मिलेगा, क्योंकि पिछले लगभग चार दशकों में मिट्टी के बर्तनों को चमकाने की कला लगभग विलुप्त हो गई थी. पहले यह एक आम बात थी, क्योंकि ऐसे बर्तनों से भरी दुकानें बाजारों में पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को कश्मीर में पूजा स्थलों और तीर्थस्थलों के आसपास आकर्षित करती थीं. चाहे वह श्रीनगर में जामिया मस्जिद हो या चरार-ए-शरीफ में शेख नूरुद्दीन वाली की दरगाह हो.

लेकिन इन बर्तनों की वापसी हुई है और इसका श्रेय 26 वर्षीय युवा मोहम्मद उमर कुम्हार को जाता है, जो कुम्हार के नाम से जाने जाने वाले कुम्हारों के कई परिवारों में से एक हैं और जो निशात क्षेत्र में मिट्टी के बर्तनों के पैतृक व्यापार में लगे हुए हैं.

श्रीनगर के गांधी मेमोरियल कॉलेज से वाणिज्य में स्नातक होने के बाद, वह बेहतर रिटर्न के लिए पारिवारिक व्यापार को पुनर्जीवित करने के लिए ‘गंभीरता से सोच’ रहे थे.

लेकिन, कारोबार, सपने और करियर के सपने सभी देखते हैं. पर क्या किसी का सपना पान की दुकान खोलना हो सकता है? जब हर कोई उच्च शिक्षा हासिल कर बड़ी कंपनियों में नौकरी करना चाहता है. उसका ख्वाब होता है कि वह आफिसर बनकर जिंदगी बसर करें, लेकिन साल 2018 में नौशाद शेख लाखों की नौकरी त्याग करके पान की दुकान चला रहे हैं.

उनके पान की खुशबू देश के कोने-कोने में मशहूर हो गई है. फिल्मी सितारों से लेकर आम लोग परिवार के साथ हजारों रुपये के पान का मजा लेने बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं.

एक समय ऐसा था, जब उनके पास एमबीए की फीस देने के लिए पैसे नहीं थे. अब उनकी दुकान मुंबई शहर में एमबीए पानवाला के नाम से मशहूर हैं. हालांकि दुकान का नाम द पान स्टोरी’ है.

चमकते युवा चेहरों में हम बेशक सबसे बड़े नामों को शामिल नहीं कर रहे, हमने युवाओं की इस फेहरिस्त में अभिनेताओं, गायकों और इंस्टाग्राम पर मिलियन फॉलोअर जुटा लेने वालों को शामिल नहीं किया है. उनपर हजारों लेख आपको मिल जाएंगे. हमारे युवा नायकों में वैसे बदर जमाल साहिल, अब्दुल कादिर आसिम, महबूब अली, मोहम्मद उमर कुम्हार और नौशाद शेख शामिल हैं जो सिर्फ नाम नहीं है, बल्कि एक आंदोलन की तरह हैं.

इस लेख में शामिल ये असही हीरो साहिल, आसिम, महबूब अली, नौशाद शेख देश के हर इलाके में मिल रहे हैं और अपने जैसे लाखों नौजवान गढ़ रहे हैं.