सना मंसूरी : मां की हालत देख जागा डीएम बनने का ख्वाब

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 10-03-2021
शना अख्तर मंसूरी
शना अख्तर मंसूरी

 

सना अख्तर मंसूरी को यूपी पीएससी (सिविल सर्विसेस) की परीक्षा में मिली 27वीं रैंक

राकेश चौरासिया / ललितपुर

“मेरी पैदाइश बहुत ही साधारण परिवार में हुई और ऐसे समाज में बेटियों को ज्यादा नहीं पढ़ाया जाता. मेरी मां भी पढ़ना चाहती थीं, लेकिन परिवार वालों ने उन्हें नहीं पढ़ाया, क्योंकि वो बेटी थीं. लेकिन मेरी मां हमेशा चाहती रहीं कि मैं अपनी बेटी को पड़ाऊं और ताकि मैं आगे बढ़ सकूं. मेरी सफलता की सबसे बड़ी वजह मेरी मां ही रही हैं.
 
जिन्होंने धैर्य का कभी साथ नहीं छोड़ा और मुझे भी धैर्य रखने की प्रेरणा दी.” यह कहना है  सना अख्तर मंसूरी का, जिन्होंने यूपी पीएससी (सिविल सर्विसेस) की परीक्षा में 27वां रैंक हासिल किया है.

‘जो खैरात में मिलती कामयाबी, तो हर शख्स कामयाब होता. फिर कदर न होती किसी हुनर की, और न ही कोई शख्स लाजवाब होता.’ सना अख्तर मंसूरी उन युवाओं के लिए आईकॉन हैं, जो संसाधनों के अभाव का हवाला देते हैं. सना ललितपुर के बहुत साधारण परिवार से हैं. उनकी मां फरीदा बेगम का मायका झांसी का है, जिन्हें रूढ़ियों के कारण तालीम हासिल न हो पाई. सना के पिता सिकंदर खान ललितपुर नगर पालिका में कर्मचारी हैं.

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शना को ललितपुर के जिला सहकारी बैंक में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया, जहां उन्होंने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण किया

 

शना कहती हैं कि उनकी कामयाबी के पीछे उनकी मां का बहुत बड़ा हाथ है। वे हमेशा पढ़ने के लिए उनका उत्साहवर्द्धन करती थीं।

शुरुआत से ही फर्स्ट डिवीजनर

शना अपनी पृष्ठभूमि का का जिक्र करते हुए बताती हैं, “मेरी प्रारंभिक शिक्षा हिंदी माध्यम से हुई. मैंने 2009 में इंटरमीडिएट की परीक्षा इलाहबाद बोर्ड से पास की और 84 प्रतिशत अंक हासिल करके जिले मैंने प्रथम स्थान प्राप्त किया. इंटरमीडिएट के बाद मैंने 2014 में बी.टेक इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, झांसी के गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज से उत्तीर्ण की.

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उप्र के आवास एवं नगर आयोजन राज्य मंत्री गिरीश चंद्र यादव सना को सम्मानित करते हुए


 

खूबसूरत दिल

अपनी प्रेरणा के लिए वे एक वाकया और बताती हैं, “जब मैं बी.टेक कर रही थी, तो हम कुछ फ्रेंड्स एक ग्रुप में कॉलेज के आस-पास के गांवों में जाकर वहां के बच्चों को पढ़ाई के लिए जागरूक करते थे. और उनकी परेशानियों के बारे में भी जानने की कोशिश करते थे कि शायद हम उनकी समस्यायों का कुछ समाधान कर सकें. हम आपस में पैसे इकट्ठे करके उन्हें किताबें भी देते थे. मैं इस काम से बहुत प्रेरित हुई.”

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सना को सम्मानित करती हुई ललितपुर नगर पालिका की चेयरमैन रजनी साहू


बी.टेक के बाद सना को जॉब करनी थी. इसलिए उन्होंने सिविल सर्विसेज को अपना कैरियर चुना। इसके पीछे के मकसद के बारे में उन्होंने बताया, “ताकि मैं उन लोगों की समस्याओं को दूर कर सकूं, जो समस्याओं से जूझ रहे हैं. और सरकार की अच्छी स्कीम होने के बाद भी उन तक वो सब चीजें नहीं पहुंच पा रही हैं.”

दहेज प्रथा ने किया विचलित

उन्होंने बताया, “सिविल सर्विसेज को चुनने की दूसरी बड़ी वजह मेरी यह भी रही कि मैं खुद को एक ऐसे स्तर तक ले कर जाऊं कि अपने शहर की बेटियों के लिए प्रेरणा बनूं.”

वे कहती हैं, “हमारे समाज में दहेज का चलन बहुत ज्यादा है. अगर मां-बाप के पास दहेज की रकम देने के लिए पैसे नहीं हैं, तो इसका मतलब है कि वह अपनी बेटी के लिए एक अच्छे लड़के की उम्मीद करना छोड़ दें, चाहे उसकी बेटी अच्छी पढ़ी-लिखी क्यों ना हो. लड़कों का हाल यह है कि अगर सरकारी नौकरी में है, तो 20 लाख रुपए और इंजीनियर है, तो 30 लाख रुपए दहेज में मांगे जाते हैं. बेटी के मां-बाप से यह नहीं पूछा जाता कि आपकी बेटी कितनी पड़ी-लिखी है. उनसे पूछा जाता है कि शादी करने की क्षमता है कि नहीं.”

उन्होंने कहा, “समाज की इन कुरीतियों को खत्म करना और लड़कियों की शिक्षा के लिए लोगों को जागरूक करना, मेरा उद्देश्य रहा. इसलिए मैंने इस एग्जाम को देने का निश्चय किया.”

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अपने अम्मी-अब्बू के साथ प्रफल्लित सना विक्ट्री साइन बनाती हुई


 

ताने मारने वालों का नजरिया बदल गया

उन्होंने कहा, "मैंने इस एग्जाम की तैयारी घर पर रहकर की। घर पर रहकर बिना किसी जॉब के तैयारी करना मेरे लिए एक चुनौती से कम नहीं था. आस-पास के लोग ताने मारने लगे कि क्या फायदा पढ़ने-लिखने का, घर पर तो बैठी है. इससे तो बेहतर था कि शादी कर देते. लेकिन मेरे मां-बाप ने बहुत धैर्य और साहस से मुझे सहयोग दिया.

उन्होंने लोगों की बातों का जवाब देना मुनासिब नहीं समझा, क्योंकि उन्हें मुझ पर बहुत भरोसा था. आज मेरे मां-बाप का भरोसा ही मेरी सफलता की सबसे बड़ी वजह रही. कल को जो लोग मेरे मां-बाप को ताना मरते थे, आज वही लोग कहते हैं कि हम तो पहले ही कहते थे कि उसे बड़ी जॉब करनी है।"

दूसरे प्रयास में मिली कामयाबी

मैंने यूपीपीएससी का एग्जाम 2017 में पहली बार दिया था. उस वक्त मेरा ऑप्सनल सब्जेक्ट उर्दू लिटरेचर और सोशल वर्क था. उर्दू लिटरेचर में कम मार्क्स आने की वजह से मैं इस इम्तिहान में असफल हो गई. फिर मैंने ऑप्सनल सब्जेक्ट को बदल दिया और एंथ्रोपोलॉजी को चुना. और 2019 में फिर से इम्तिहान दिया और इस बार मुझे सफलता मिली और प्रदेश में 27वीं रैंक हासिल किया.

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हजरत बाबा सदनशाह रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह पर उर्स कमेटी के सदर हाजी बाबू बदरुद्दीन कुरैशी और जिला मुस्लिम एसोसिएशन के सदर असलम कुरैशी ने संयुक्त रूप स्मृति चिह्न भेंट करके सना अख्तर मंसूरी का सम्मान किया


 

पूरा शहर खुश है

उन्होंने बताया, “मेरा रिजल्ट आने के बाद मेरे शहर के हर वर्ग के इंसान ने मुझे बधाई दी है। चाहे वो जिस भी धर्म से हो. मेरी कामयाबी पर मेरा पूरा शहर बहुत खुश है. मेरी कामयाबी की खुशी सिर्फ मेरी खुशी बनकर नहीं रही, बल्कि मेरे पूरे शहर की खुशी बनी है.”

अन्य लड़कियों को भी मिली प्रेरणा

सना अख्तर मंसूरी की कामयाबी देखकर ललितपुर की लड़कियों ने अपने सपने संजोना शुरू कर दिए हैं। उनमें भी हौसला आया है.

इस बारे में शना ने खुद बताया, “मैं ऐसे पिछड़े इलाके से हूं, जहां शिक्षा के अच्छे साधन नहीं है और लड़कियों को उच्च शिक्षा भी नहीं दिलाई जाती है और सिविल सर्विसेस का इम्तिहान देने का तो साहस भी नहीं करती हैं. लेकिन मेरी सफलता की खबर सुनकर मेरे शहर के लोगों के विचारों में बदलाव आया है और मुझे लगता है कि और भी लोगों के विचार बदलेंगे. मेरी सफलता की खबर सुनकर मेरे शहर की कई लड़कियां मुझसे मिलीं, जो मेरी तरह एग्जाम को लिखना चाहती है और तैयारी करना चाहती हैं.

"आज मेरा पूरा शहर मुझ पर गर्व महसूस कर रहा है.”

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सना को ललितपुर के मंसूरी समाज ने भी सम्मानित किया


 

ये हैं शना की प्राथमिकताएं

पीएससी के बाद एक अफसर के तौर पर अपनी प्राथमिकताओं में उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि एक देश और समाज की तरक्की तभी हो सकती है, जब देश में जो समस्याएं हैं, उनका समाधान किया जाए. देश और समाज की तरक्की के लिए मैं समाज में फैली कुछ प्रथाओं जैसे दहेज प्रथा को खत्म करना चाहती हूं. इसके लिए में महिलाओं की उच्च शिक्षा के लिए प्रयास करना चाहती हूं.

मैं शिक्षा के क्षेत्र में काम करना ज्यादा पसंद करूंगी, क्योंकि शिक्षा ही एक ऐसी चीज है, जो इंसान का साथ कभी नहीं छोड़ती. महिलाएं, अनाथ बच्चे और ट्रांसजेंडर को हमेशा समाज में किसी न किसी तरह की समस्या का सामना करना पड़ता है और वे आजादी के 70 साल बाद भी अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे है, तो मैं चाहती हूं कि मैं उनके हित में कल्याणकारी योजनाएं बनाऊं और उन योजनाओं का लाभ उन तक पहुंच सके, यही मेरा उद्देश्य है. मेरे भविष्य की यही प्लानिंग है कि जिन विचारों को समझकर मैंने ये रास्ता अपने लिए चुना है, उन उम्मीदों को मैं पूरा कर सकूं.”

सना अपने देश की संस्कृति की कायल हैं. इस देश के लोगों को इस देश की संस्कृति ने हमेशा से जोड़े रखा। इस अहमियत के बारे में शना का कहना है, “ये हिंदुस्तान ‘हम’ से है. मतलब ह से ‘हिन्दू’ और म से ‘मुस्लिम’. ‘हम’ हमेशा हम थे, हम हैं और हम रहेंगे. ललितपुर डिस्ट्रिक्ट में उत्तरप्रदेश के सबसे कम मुस्लिम रहते हैं, लेकिन कभी हमें स्कूल-कॉलेज और सोसायटी में ऐसा महसूस नहीं हुआ कि हम अलग हैं, क्योंकि हमारे देश की संस्कृति हमें हमेशा जोड़े रखती है.”