दिलशाद नूर
शिक्षा ऐसी पूंजी है जिसको हर कोई पाना चाहता है. लेकिन भारत में आज भी ऐसे कई हजार बच्चे हैं, जो आर्थिक तंगी के कारण शिक्षा हासिल करने में सक्षम नहीं. ऐसे बच्चों के लिए पुणे में जन्मी शाहीन मिस्त्री किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं. पेशे से शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता शाहीन मिस्त्री ने 30 साल पहले अपने कॉलेज के दोस्तों के साथ मिलकर पुणे के होली नेम हाई स्कूल में 15 छात्रों के लिए आकांक्षा सेंटर खोला था. इस सेंटर में पढ़ने वाले ज़्यादातर बच्चे झुग्गियों के थे. आगे चलकर सेंटर आकांक्षा फाउंडेशन के रूप में विकसित हुआ, जो एक गैर-लाभकारी संगठन है.
आज आकांक्षा फाउंडेशन के देश भर में 26 से ज्यादा स्कूल हैं. इन स्कूलों में स्लम एरिया और झुग्गियों से आने वाले 14000 से ज्यादा गरीब बच्चे शिक्षा हासिल कर रहे हैं. इन बच्चों को शिक्षक नवीन पद्धति से पढ़ाते हैं, जिसके कारण फाउंडेशन ने अंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी जीता. हाल में पुणे स्थित आकांक्षा पीसीएमसी इंग्लिश मीडियम स्कूल को विश्व के सर्वश्रेष्ठ स्कूल पुरस्कारों के लिए टॉप 3 फाइनलिस्ट में नामित किया गया.
2008 में शाहीन ने भारत में शैक्षिक असमानता को समाप्त करने के उद्देश्य से एक अन्य गैर-लाभकारी संगठन टीच फॉर इंडिया की स्थापना की. टीच फॉर इंडिया 59 देशों में फैले टीच फॉर ऑल नेटवर्क का एक हिस्सा है, जिसका हर एक बच्चे को उत्कृष्ट शिक्षा देने का साझा दृष्टिकोण है.
टीच फॉर इंडिया की स्थापना का उद्देश्य ग्रामीण और वंचित समुदायों के छात्रों की शिक्षा के लिए उच्च योग्य स्नातकों और युवा पेशेवरों को शामिल करना है. इसके लिए टीच फॉर इंडिया दो वर्षों का फैलोशिप प्रोग्राम चलाता है.
टीच फॉर इंडिया की शुरुआत आठ स्टाफ सदस्यों के साथ हुई थी. आज, लगभग 900 टीच फॉर इंडिया फेलो और 3400 से अधिक पूर्व छात्र शिक्षा प्रणाली के सभी स्तरों पर काम कर रहे हैं, जो सीधे 32,000 छात्रों को प्रभावित करते हैं. टीच फॉर इंडिया का प्राथमिक लक्ष्य प्रत्येक बच्चे को तीन स्तरों में प्रगति करने में मदद करना है. शैक्षणिक विकास, मूल्य और मानसिकता, और जोखिम और पहुंच.
शाहीन ने बचपन से ही भारत की शिक्षा प्रणाली में असमानताओं के बारे में सुना हुआ था. बताती हैं कि जब वह 19 साल की थी. वह अमेरिका के टफ्ट्स विश्वविद्यालय (Tufts University) की पढ़ाई छोड़कर मुंबई में अपनी दादी के साथ रहने मुंबई आ गई.
डिग्री हासिल करने के लिए उन्होंने जेवियर कॉलेज में दाखिला लिया. इन दिनों में उन्होंने अपना खाली समय झुग्गियों में बिताना शुरू किया. इसी बीच उन्हें एक ऐसे दर्दनाक अनुभव का सामना करना पड़ा, जिसने उन्हें अंदर से हिला दिया.
दरअसल, झुग्गी में, एक 15 वर्षीय मानसिक रूप से विक्षिप्त लड़की की जलकर मौत हो गई थी. उस लड़की के साथ शाहीन ने 15 दिन अस्पताल में बिताए थे. उसकी माँ के पास खाली समय नहीं था. इस दौरान उन्हें कई अंधविश्वास भी देखने को मिले. यहीं पर उन्हे एहसास हुआ कि शिक्षा ही एकमात्र साधन है, जो इन बच्चों का जीवन बदल सकती है.
शाहीन का मानना है कि हर एक बच्चा कामयाबी हासिल कर सकता है, बस शर्त है कि उसे मौका दिया जाये. शाहीन कहती हैं कि वह इन बच्चों की सहायता करने के लिए प्रतिबद्ध है, चाहे उन्हें किसी भी बाधा का सामना करना पड़े. वह आगे कहती हैं कि मुझे उम्मीद है कि एक दिन, सभी बच्चे उत्कृष्ट शिक्षा प्राप्त करेंगे और हमारा मिशन शैक्षिक असमानता को दूर करेगा.
शाहीन को अपने उत्कृष्ट सामाजिक कार्यों के लिए Ashoka Fellow (2001), Global Leader for Tomorrow at the World Economic Forum (2002), Asia Society 21 Leader (2006) से सम्मानित किया गया है.