मुंबई. मानव कल्याण की भावना हर देश और समुदाय में हमेशा मौजूद रही है. हर जगह लोग किसी न किसी तरह से कल्याणकारी कार्य करते नजर आते हैं. इस क्षेत्र में कल्याणकारी कार्यों में न केवल पुरुष बल्कि महिलाएं भी सबसे आगे हैं. भारत में कुछ समय पहे मदर टेरेसा का नाम उनके परोपकारी कार्यों के लिए सुर्खियों में रहता था.उन्हें नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. अब मुंबई पुलिस में कार्यरत 40 वर्षीय महिला रेहाना शेख को आज मुंबई पुलिस की मदर टेरेसा के नाम से भी जाना जाता है.
आइए जानते हैं रेहाना शेख की कहानी और जानने की कोशिश करें कि कैसे उन्होंने स्वार्थ और अलगाव के दौर में मानवता की मिसाल कायम की है. रेहाना शेख को बचपन से ही लोगों की मदद करने का शौक रहा है.
वह महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले की रहने वाली हैं, जबकि वह नायगांव आर्म्स यूनिट में तैनात हैं और जल्द ही उन्हें सब-इंस्पेक्टर के पद पर पदोन्नत किया जाएगा.
ध्यान रहे कि रेहाना शेख पुलिस की है, जबकि खाकी वर्दी में लोग उन्हें अलग नजरिए से देखते हैं. कुछ उन्हें सुरक्षा कर्मियों के रूप में देखते हैं, जबकि अन्य उन पर विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न का आरोप लगाते हैं. रेहाना शेख उसी खाकी वर्दी पहनने वाली की एक महत्वपूर्ण सदस्य हैं, जिन्होंने 50 आदिवासी बच्चों को गोद लेने और उन्हें उनकी शादी तक शिक्षित करने का फैसला किया है और वह पूरे दिल से इसमें भाग ले रही हैं.
उन्होंने कोरोना वायरस के मरीजों की मदद करने में भी अहम भूमिका निभाई है. मरीजों को बेड, ऑक्सीजन और प्लाज्मा मुहैया कराने में उनका अहम योगदान रहा है. उनके नेक काम से मुंबई पुलिस को गर्व है.
खास बात यह है कि रेहाना शेख के पति नासिर शेख भी एक पुलिसकर्मी हैं और अपनी पत्नी का हमेशा हौसला बढ़ाते हैं. नासिर शेख को न केवल अपनी पत्नी की उपलब्धि पर गर्व है, बल्कि उसकी हर संभव मदद भी करते हैं.
रेहाना शेख की सेवाओं को देखते हुए मुंबई के पुलिस आयुक्त हेमंत नागराले और संयुक्त पुलिस आयुक्त नागरा पाटिल ने न केवल उनका उत्साहवर्धन किया, बल्कि उन्हें एक विशेष पदक और प्रमाण पत्र भी प्रदान किया.
अजीब संयोग है कि रेहाना के पिता अब्दुल नबी ने भी कई सालों तक मुंबई पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के तौर पर काम किया.
इस मुंबई पुलिस अधिकारी को अब मदर टेरेसा के नाम से जाना जाता है. मुंबई पुलिस की गौरवान्वित महिला अधिकारी स्पोर्ट्स कोटे से पुलिस बल में शामिल हुईं. वह वॉलीबॉल खिलाड़ी थीं और उन्होंने 2017 में श्रीलंका में अपनी टीम के लिए दो स्वर्ण पदक जीते थे.
रेहाना शेख ने रायगढ़ के 10वीं तक के बच्चों की पढ़ाई का खर्च वहन करने का वादा किया है.
उन्होंने कहा, “पिछले साल मुझे रायगढ़ के एक स्कूल के बारे में पता चला. प्रिंसिपल से बात करने के बाद मैंने देखा कि ज्यादातर बच्चे गरीब परिवारों से आते हैं, जिनके पास पहनने के लिए चप्पल तक नहीं है. मैंने अपनी बेटी के जन्मदिन और ईद की खरीदारी के लिए कुछ पैसे बचाए थे, जो मैंने इन बच्चों पर खर्च किए.”
उन्होंने देश की जनता से कहा कि अगर आप गरीब या जरूरतमंद की मदद कर सकते हैं तो करें, इससे सब कुछ आसान हो जाएगा.