‘अरे! तुम मुसलमान हो और गरीब भी, तुम कैसे आईपीएस बन सकते हो’

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
परिवार सहित
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मंसूरुद्दीन फरीदी/आवाज-द वॉयस 

“लोग कहते थे कि तुम मुसलमान हो और गरीब भी, तुम्हारे लिए आईपीएस बनना संभव नहीं है, लेकिन मैंने साबित कर दिया है कि अगर तुममें मेहनत करने का जज्बा और जोश हो, तो कोई भी तुम्हें कामयाबी से दूर नहीं ले जा सकता.” यह कहना है आईपीएस अधिकारी नूरुल हसन का.

नूरुल हसन ने पहले सीमेंस ज्वाइन किया और फिर भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान में वैज्ञानिक बने, लेकिन उनकी मंजिल कहीं और थी. इसलिए उनकी शैक्षिक यात्रा नहीं रुकी. अंततः वह आईपीएम बन गए.

नूरुल हसन अब महाराष्ट्र पुलिस में तैनात है और अपनी कड़ी मेहनत और सफलता से अब सामाजिक कार्य और बच्चों का मार्गदर्शन करने के कारण लोगों के ध्यान का केंद्र हैं.

कल उन्होंने अपने ट्यूटर अकाउंट पर एक पोस्ट शेयर की, जिसमें उन्होंने लिखा था कि आज मेरे ऑफिस में कुछ बेहद खास मेहमान आए हैं, जिनमें मेरे पिता और मां के साथ ताऊ और मामूं जान भी शामिल हैं. इस पोस्ट के साथ उन्होंने कई तस्वीरें शेयर की हैं.

ट्यूटर पर इस इमोशनल पोस्ट को काफी पसंद किया जा रहा है, जिसमें नूरुल हसन अपने माता-पिता के साथ बेहद आज्ञाकारी बच्चे की तरह नजर आ रहे हैं.

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युवा आईपीएस अधिकारी नूरुल हसन ने अपने परिवार के साथ आपको सलामी दी और फिर अपनी कुर्सी पर बिठाया


ट्विटर पर यूजर्स ने नूरुल हसन को ढेर सारी शुभकामनाएं दी हैं, सभी ने लिखा है कि ये मां-बाप की दुआएं हैं, आप इस जगह पर हैं.

एक युवक ने कहा कि मैं भी आईपीएस अफसर बनूंगा. मेरा हौसला बढ़ा है.

किसी ने लिखा है कि आप हम सभी के लिए एक आंदोलन हैं, अल्लाह आपको और कामयाबी दे.

आज नूरुल हसन देश के लाखों युवाओं के लिए सफलता की एक कहानी हैं.

लेकिन उन्होंने लंबा संघर्ष किया है. नूरुल हसन ने अपना बचपन में पीलीभीत और बाद में बरेली में बिताया. अकादमिक उपलब्धि बरेली में प्राप्त हुई.

उनकी कहानी देश के लाखों युवाओं, खासकर मुस्लिम युवाओं के लिए एक उदाहरण है, जो किसी भी क्षेत्र में पूर्वाग्रह या पूर्वाग्रह से डरते हैं और अपने शैक्षिक गंतव्य के बारे में सोचना बंद कर देते हैं.

 

नूरुल हसन के जीवन की कहानी पढ़ने से पहले उनके जीवन के बारे में उनकी पसंदीदा कविताएं पढ़ें, जो किसी बड़े संदेश से कम नहीं लेती हैं.

जिस दिन से चला हूं, मेरी मंजिल पर नजर है

आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा

ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं

तुमने मेरा कांटों भरा बिसतर नहीं देखा

जमीन से आसमान तक का सफर

पीलीभीत के एक गांव हरिपुर के निवासी नूरुल हसन ने अपने सपनों को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत की. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हिंदी माध्यम से एक सरकारी स्कूल से प्राप्त की. उन्होंने गुरु नानक हायर सेकेंडरी स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की. इसके बाद उन्होंने बरेली के भूषण इंटर कॉलेज में पढ़ाई की.

उनके पिता एक मेहनती व्यक्ति थे, जो एक मजदूर के रूप में काम करते थे. परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि वह किसी तरह अपना गुजारा करने में कामयाब रहे. ऐसी स्थिति में शिक्षा प्राप्त करना कठिन कार्य था. उन्होंने प्राथमिक शिक्षा तो प्राप्त कर ली, लेकिन आगे का सफर कठिन था.

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पुरानी यादेंः पीलीभीत में अपने स्कूल में शिक्षकों के साथ नूरुल हसन


पीलीभीत से बमुश्किल 

जब नूरुल हसन ने 10वीं पास की, तो उनके पिता को बरेली में फोर्थ क्लास कर्मचारी की नौकरी मिल गई. नूरुल हसन के पिता ने पढ़ाई के लिए कच्ची आबादी में एक छोटा सा घर किराए पर लिया था. यहीं से उन्होंने बारहवीं तक की शिक्षा पूरी की.

नूरुल हसन का कहना है कि 12वीं करने के बाद उन्होंने बीटेक करने का फैसला किया. उन्हें आईआईटी कोचिंग के लिए 35,000रुपये की जरूरत थी, जिसके लिए उनके पिता को 1एकड़ जमीन बेचनी पड़ी. इस पैसे से नूरुल हसन ने कोचिंग की फीस भर दी और 70,000रुपये में एक कमरे का घर खरीदा. जहां उन्होंने मन लगाकर पढ़ाई शुरू की. उनके परिवार ने उनकी आलोचना की, लेकिन उन्होंने केवल शिक्षा और तैयारी पर ध्यान केंद्रित किया.

फीस के मुद्दे के चलते उन्होंने बच्चों को फिजिक्स और केमिस्ट्री की क्लास देनी शुरू कर दी और इस पैसे से वह कॉलेज की फीस भरते थे. अंग्रेजी को अपनी कमजोरी नहीं बनने देते थे. जाकिर हुसैन कॉलेज से बी.टेक पूरा करने के बाद, वह 2009में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पहुंचे.

एएमयू में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने का निर्णय लिया. इस दौरान उनकी पहली नौकरी ग्ररुग्राम की एक कंपनी में लगी. इसके बाद वह भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में शामिल हो गए. इस दौरान उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी जारी रखी. उन्होंने 2015में यूपीएससी की परीक्षा पास की.

वैज्ञानिक भी बने

बीटेक करने के बाद नूरुल हसन को दो बड़ी कंपनियों में जगह मिली. उन्हेंने टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज और सीमेंस लिमिटेड के बीच सीमेंस को चुना. उन्होंने अपने दो छोटे भाइयों को शिक्षित करने और परिवार का समर्थन करने के लिए यह काम किया. लेकिन एक साल के भीतर, उन्हें एहसास हुआ कि उन्हें एक निजी नौकरी के लिए काम पर नहीं रखा गया है.

ऐसे में उन्होंने भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान की परीक्षा पास की और तारापुर केंद्र में वैज्ञानिक के रूप में चयनित हुए. लेकिन उनके जीवन की शैक्षिक यात्रा और बेचैनी यहीं नहीं रुकी.

तीसरे प्रयास में बने आईपीएस

इसके बाद नूरुल हसन ने आईपीएस को अपनी मंजिल बना लिया. वह पहले प्रयास में प्रारंभिक परीक्षा भी पास नहीं कर सके. फिर उन्होंने बेहतर तैयारी के साथ दोबारा परीक्षा दी. इस बार उन्होंने प्राथमिक और मुख्य दोनों परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन इंटरव्यू में 129अंक होने के कारण उनका चयन नहीं हो सका. इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने इस असफलता से हार नहीं मानी और अपनी कमजोरियों पर काबू पाने के बाद 2014में फिर से सिविल सेवा की परीक्षा दी. इस बार उन्होंने न केवल परीक्षा उत्तीर्ण की, बल्कि साक्षात्कार में 190अंक प्राप्त कर आईपीएस भी बने.

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केवल शिक्षा ही आपकी स्थिति बदल सकती है


अब आईपीए नूरुल हसन का मानना है कि शिक्षा से ही व्यक्ति अपनी स्थिति बदल सकता है. उनका कहना है कि अगर उनके पिता ने उनकी पढ़ाई के लिए जमीन नहीं बेची होती, तो आज वे आईपीएस नहीं होते.

वे देश के हर माता-पिता को एक संदेश देना चाहते हैं कि भले ही आपको घर में थोड़ी देर के लिए कम खाना पड़े, आप अपने बच्चों को स्कूल जरूर भेजें. साथ ही वह सभी युवाओं को यही संदेश देते हैं कि कड़ी मेहनत और लगन से ही उनका भविष्य बेहतर किया जा सकता है. नूरुल हसन का कहना है कि अगर आप में काबिलियत है, तो भारत जैसे देश में आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता.

निशुल्क बच्चों का मार्गदर्शन

नूरुल हसन ने अपने जीवन में उचित मार्गदर्शन की कमी महसूस की है. उनका कहना है कि उन्हें बारहवीं कक्षा तक बी.टेक के बारे में कुछ भी नहीं पता था. आर्थिक स्थिति खराब होने और परिवार में शिक्षा की कमी के कारण उन्हें इन सभी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. इसलिए वह अपने यूट्यूब चौनल ‘फ्री एकेडमी’ के जरिए देश के लाखों बच्चों का मार्गदर्शन करते हैं. ताकि देश के किसी अन्य युवा को उस स्थिति का सामना न करना पड़े, जिसका उन्होंने सामना किया.

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पत्नी इरम सैफी के साथ नूरुल हसन


नूरुल हसन पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को अपना आदर्श मानते हैं. उनका कहना है कि उनकी यात्रा के दौरान, कई लोगों ने कहा कि उनके लिए यूपीएससी सिविल सेवाओं में चयनित होना मुश्किल था, क्योंकि वह एक मुस्लिम थे और उनका परिवार गरीब था. लेकिन उन्होंने अपने आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत से साबित कर दिया कि सफलता किसी धर्म या आर्थिक स्थिति पर निर्भर नहीं करती है.

युवाओं और सिविल सेवा उम्मीदवारों को संदेश

जितना हो सके सपने देखें, लेकिन हमेशा प्लान बी के लिए खुद को तैयार करें. प्लान बी के बाद प्लान सी भी होना चाहिए.

जितनी जल्दी हो सके, अपनी मंजिल तय कर लें और उस दिशा में काम करना शुरू कर दें.

मेरी राय में, सफलता वर्षों से किए गए हर दिन के काम का योग है.

खुद की कमजोरियों की जांच करें

अपने लक्ष्य को वर्षों, महीनों, हफ्तों और दिनों में विभाजित करें और हर दिन थोड़ा आगे बढ़ें. हर दिन कुछ न कुछ प्राप्त करें.

बिजनेस में सफल होने के लिए आपको किस्मत से ज्यादा कुछ चाहिए. इसमें कोई फर्क नहीं है.

अपने वरिष्ठों से सर्वोत्तम संभव मार्गदर्शन प्राप्त करें. दूसरों के अनुभव से सीखना हमेशा बेहतर होता है.

असफलताओं से कभी निराश न हों.

सिविल सेवा की परीक्षा धैर्य और आत्मविश्वास की परीक्षा होती है. तो असफलता के बाद आपको अंततः सफलता ही मिलेगी.