रिज्वान शफी वानी / श्रीनगर
हालांकि क्रिकेट के दिग्गज सचिन तेंदुलकर समेत कई क्रिकेटरों ने कश्मीर घाटी में बने बल्ले से अपनी काबिलियत साबित की है, लेकिन पहली बार है इस टी20 विश्व कप में यहां निर्मित बल्ले का इस्तेमाल किया जा रहा है.
कश्मीरी के बल्ले का अभी तक किसी भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच में उपयोग नहीं किया गया था. पहली बार है कि दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के किसी कारखाने में तैयार बल्ले का इस्तेमाल हो रहा है. कश्मीरी बल्ले से इस बाऱ टी20 विश्व में खिलाड़ी हाथ आजमा रहे हैं.
संयुक्त अरब अमीरात में चल रहे टी20 वर्ल्ड कप में ओमान की अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी कश्मीरी बल्ले का इस्तेमाल कर रहे हैं.इन बल्लों को फजल कबीर नाम के एक स्थानीय व्यक्ति की फैक्ट्री में बनाया जा रहा है. फजल कबीर पिछले 28 सालों से क्रिकेट बैट इंडस्ट्री में हैं.
कश्मीरी विलो बैट को विश्व स्तर पर ले जाने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी. अंत में उनकी मेहनत रंग लाई.फजल कबीर कहते हैं, सफलता किसी के पदचिन्हों पर नहीं चलती. इसके लिए आपको खुद काम करना होगा.
फजल कबीर को बल्ले बनाने का व्यवसाय अपने पिता से विरासत में मिला. इस व्यवसाय की शुरुआत 1974 में उनके पिता अब्दुल कबीर ने की थी. वह कहता है, ‘मेरे पिता चाहते थे कि उनके कारखाने में बने बल्ले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्तेमाल किया जाएं.
दिन-रात मेहनत करने के बाद आखिरकार पिता का सपना पूरा हो गया. इससे न केवल बल्लेबाजी उद्योग को बढ़ावा मिलेगा, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कश्मीर का नाम भी ऊंचा होगा.फजल कबीर की बैट फैक्ट्री हर साल करीब 65,000 बल्ले बनाती है. इसे देश के अलग-अलग राज्यों को सप्लाई किया जाता है.
उनका कहना,‘‘हमारे पास नवीनतम तकनीक नहीं थी. यही वजह है कि हम जालंधर और मेरठ की कंपनियों को बिना किसी विशिष्ट ब्रांड नाम के सामान भेजते थे.‘‘ अब हम देश के अन्य राज्यों से कुशल और अनुभवी कारीगरों को लाए हैं. उनकी बदौलत अब वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आईसीसी के नियमों के मुताबिक फैक्ट्री में बैट बनाने लगे हैं.
कश्मीरी विलो बल्ले अपनी अच्छी गुणवत्ता वाली लकड़ी के लिए जाना जाते हंै. इस लकड़ी से उच्च गुणवत्ता वाले क्रिकेट बैट बनाए जाते हैं. इस तरह की लकड़ी के पेड़ सिर्फ ब्रिटेन और कश्मीर में पाए जाते है. कश्मीर में पाए जाने वाले विलो नर हैं, जबकि ब्रिटिश विलो मादा हैं.
उन्होंने बताया,‘‘कश्मीरी बल्ले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मानकों को पूरा कर सकते हैं और बल्लेबाजी के लिए भी उपयुक्त हैं. अंग्रेजी विलो के विपरीत, यह ठोस और इसके टूटने की संभावना कम है, इसलिए उन्होंने
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर विलो को पेश करने की पूरी कोशिश की.
उन्होंने कहा, ‘‘अब हमें एहसास हुआ कि हम अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के मार्गदर्शन में उच्च गुणवत्ता वाले बल्ले का उत्पादन कर सकते है.‘‘ साथ ही, हमें कश्मीर के बाहर के अच्छे कारीगरों की सेवाएं और विशेषज्ञता प्राप्त हुई है, ताकि विश्व मानकों को पूरा करने वाले अच्छे बल्ले बना सकें. इससे न केवल बल्लेबाजी उद्योग को बढ़ावा मिलेगा. कश्मीर को विश्व क्रिकेट में भी गौरव मिलेगा.
फजल कबीर ने कश्मीरी बल्ले के लिए वैश्विक बाजार की खोज की है, ताकि अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट बल्ले का इस्तेमाल कर सकें. अब उनका सपना सच हो गया है. ओमान क्रिकेट टीम के कुछ खिलाड़ी पहली बार कश्मीरी बैट से खेल रहे हैं.
आंकड़ों के मुताबिक कश्मीर में 400 से ज्यादा क्रिकेट बैट इकाइयां चल रही है. सैकड़ों लोग इस धंधे से जुड़े हैं. फजल कबीर का कहना है कि कश्मीर में विलो उत्पादन घट रहा है जो चिंता का विषय है.जिस तरह से क्रिकेट कश्मीर में सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक के रूप में उभर रहा है. उसके विपरीत, सरकार को उद्योग को बचाने के लिए प्रभावी उपाय करने चाहिए.