पत्नी के आभूषण बेचकर आज भी कोविड मरीजों की मदद कर रहे जावेद खान

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 18-08-2021
पत्नी के आभूषण बेचकर आज भी कोविड मरीजों की मदद कर रहे जावेद खान
पत्नी के आभूषण बेचकर आज भी कोविड मरीजों की मदद कर रहे जावेद खान

 

शुरैह नियाजी / भोपाल

पत्नी के जेवरात बेचकर कोविड की दूसरी लहर में लोगों की मदद का सिलसिला शुरु करने वाले जावेद खान आज भी पहले की तरह ही कोरोना मरीजों की सेवा में लगे हैं. हालांकि अब पहले जैसे हालात नहीं हैं. बावजूद इसके कोरोना मरीजों को लेकर उनका अभियान बदस्तूर जारी है.

34 साल के जावेद खान भोपाल में आॅटो रिक्शा चलाते हैं. पिछले कुछ महीनों में उन्होंने न सिर्फ आटो चलाया, बल्कि कई लोगों की जान भी बचाई. कोरोना की दूसरी लहर ने मार्च में देश में दस्तक दे दी थी. इसके बाद कोरोना पीड़ितों के आकड़े लगातार बढ़ते रहे. साथ ही मरने वालों की तादाद भी. देश में हर जगह आॅक्सीजन, अस्पतालों में बेड और दूसरी चीजों की कमी महसूस की की गई.

इस दौरान या तो लोगों को अस्पताल पहुंचने के लिए एंबुलेंस की कमी महसूस हुई या अस्पताल पहुंचने के लिए एंबुलेंस चलाने वालों के मुंह मांगे किराए का सामना करना पड़ा था. स्थिति हर तरफ एक सी थी. शमशान घाटों में लोगों को अपने करीबियों के अंतिम संस्कार के लिए घंटां इंतेजार करना पड़ता था.

इस दौरान जावेद खान को सोचने पर मजबूर कर दिया.  अपने सीमित संसधानों के बावजूद, उन्होंने फैसला किया कि वह पीड़ित की मदद करने के लिए अपना योगदान देंगे.

उस समय उन्होंने परिवार को चलाने वाले तिपहिया ऑटो-रिक्शा को मुफ्त एम्बुलेंस में बदल दिया. चैबीसों घंटे अपनी सेवाएं प्रदान कीं. अपने वाहन को ऑक्सीजन सिलेंडर, हैंड-सैनिटाइजर, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किट और ऑक्सीमीटर से लैस किया. लोगों को मुफ्त में अस्पताल ले जाने को अपना मिशन को शुरू किया.

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उन्होंने बताया, “स्थिति बहुत खराब थी. समय पर इलाज नहीं मिलने से बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो रही थी. ऐसे भयानक हालात में लगा कि मुझे मदद के लिए आगे आना चाहिए. हर जगह लोग चिंतित और व्यथित थे. जिन्हें अस्पताल पहुंचाना था. उन्हें हजारों रुपये खर्च करने पड़ रहे थे.”

उन्होंने बताया, “ज्यादातर लोगों के पास इतना पैसे नहीं होते थे कि एंबुलेंस संचालकों को महज 2-5किलोमीटर की दूरी के हजारों रुपये अदा कर सकें. इसलिए मैंने बिना सोचे-समझे लोगों की मदद करनी शुरू कर दी. अपने ऑटो-रिक्शा को एम्बुलेंस में बदल दिया.‘‘

इस महामारी में, जावेद खान ने कम से कम 90लोगों की मदद की. उनकी मदद आज भी जारी है. अब एक हफ्ते में सिर्फ 2-3लोग ही उनसे मदद मांगते हैं.

जावेद खान ने बताया कि उन्होंने टेलीविजन और सोशल मीडिया पर देखा था कि लोग कितने हताश हैं. कई मरीजों की मौत एम्बुलेंस और ऑक्सीजन की कमी के कारण हो गई थी.

इस वजह से उन्होंने अपने ऑटो को ऑक्सीजन से लैस एंबुलेंस में बदल दिया.जावेद खान का यह कदम इसलिए भी अहम है, क्योंकि पिछले साल मुसलमानों पर कोरोना वायरस फैलाने का आरोप था. भारत में लोग मुसलमानों के करीब नहीं आना चाहते थे.

पिछले साल मार्च में जब देश में कोविड की पहली लहर आई थी, तब तब्लीगी जमात पर आरोप लगे थे कि उसने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज मस्जिद में एक धार्मिक सभा का आयोजन किया था. इसमें बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया. इसमें शामिल लोग देश भर में धार्मिक कार्यक्रमों के लिए गए . इन्होंने वायरस फैलाया.

जावेद खान कहते हैं, ‘‘मैंने हमेशा इंसानियत को सबसे आगे रखा है. कभी नहीं सोचा कि मैं किसकी मदद कर रहा हूं. मैंने समान रूप् से सभी समुदाय की मदद की. मेरे लिए धर्म मायने नही रखता.”

जावेद खान का मोबाइल नंबर सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था, जिसमें बताया गया कि वह मरीजों को मुफ्त में अस्पताल ले जाते हैं. उनसे पैसे नहीं लेते है.

उन्होंने बताया कि किसी जरूरतमंद की मदद करने में जो संतुष्टि मिलती है, वह उसका सबसे बड़ा इनाम है. जावेद के लिए ये सब आसान नहीं था. महामारी की पहली लहर के दौरान भी उन्हें  नुकसान हुआ था, क्योंकि देश में वायरस को रोकने के लिए लॉकडाउन की वजह से जावेद के पास आय का कोई दूसरा स्रोत नहीं था.

वहीं उनको अपने तिपहिया वाहन को एंबुलेंस में बदलने के लिए पैसों की आवश्यकता थी. उनके पास महामारी के कठिन वक्त में एक परिवार भी था जिसमें दो छोटी बेटियां और एक छोटा बेटा है, जिनकी उम्र 9से 12साल है. उन्हें अपने दो भाइयों की भी मदद करनी थी, जो मजदूरी करते थे. महामारी के दौरान अपनी नौकरी खो चुके थे.

फिर जावेद लोगों की मदद के लिए तैयार थे. उन्होंने इस काम के लिए अपनी पत्नी के कुछ गहने बेचे . उसके बाद वह एक ऑक्सीजन रिफिल सेंटर के बाहर कतार में खड़े हो गए. एक सिलेंडर भरकर अपने ऑटो में रख लिया. वहीं एक डॉक्टर ने जावेद की मदद की ताकि वो उपकरणों का इस्तेमाल कर सकें.

उनकी पत्नी भी उनके काम में खड़ी रहीं. जब उन्होंने उसका सोना बेचा तब भी उसने कोई आपत्ति नहीं की. जावेद ने कई गंभीर मरीजों को अस्पताल पहुंचाया और उनकी जान बचाई.

 जब लोगों को जावेद खान और उनके काम के बारे में पता चला तो उन्होंने खुले दिल से उनकी मदद की. जावेद के खाते में पैसे आते रहे, इसलिए उन्होंने बाद में लोगों को राशन (भोजन) किट भी मुहैया कराए.

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जावेद खान ने कहा, ‘‘मैं जानता था कि ऐसे कई लोग होंगे जिनके पास लॉकडाउन के कारण खाने के लिए कुछ नहीं होगा. इस कठिन समय में भूखे ही सो रहे होंगे. इसलिए जैसे ही लोगों ने मेरी मदद करना शुरू की, मैंने भी जरूरतमंदों को राशन किट बांटना शुरू कर दिया.”

उन्होंने बताया, “इस बार कोरोनावायरस ने धर्मों के बीच की खाई को पाट दी. हिंदू और मुसलमान एक दूसरे की मदद के लिए एक साथ खड़े नजर आए.

जावेद ने कहा, अगर हम कहें कि कोरोना ने हमें करीब लाया है तो गलत नहीं होगा. जावेद खान से मदद लेने वालों में एजाज अशरफ भी शामिल थे. उन्होंने कहा कि जब जावेद का नंबर सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो उन्हें लगा कि उनसे मदद लेनी चाहिए. उस समय एंबुलेंस मिलना नामुमकिन था. भोपाल जैसे शहर में जहां गैस त्रासदी के दौरान सैकड़ों लोगों की मौत हुई है. ऐसी विकट स्थिति उस समय भी नहीं देखी गई थी.

एजाज अशरफ ने कहा, ‘मेरे भाई की हालत बिगड़ रही थी. हमने जावेद को फोन किया. वह हमें तुरंत अस्पताल ले गए लेकिन हमसे पैसे लेने से मना कर दिया. “उस स्थिति में उनकी मदद ने भगवान और मानवता में मेरे विश्वास को मजबूत किया.हालांकि, बाद में हमने उनके खाते में ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर कर दिए.”

एजाज ने कहा कि जावेद ने और मदद स्वीकार नहीं की, हालांकि वह अपने भाई के कोविड से ठीक होने के बाद उसकी और मदद करना चाहता थे.उन्होंने कहा, “मेरा भाई ठीक हो गया. फिर मैं उसकी और मदद करना चाहते थे लेकिन वह तैयार नहीं हुए.”

उन्होंने बताया, “अगर इस घातक वायरस के बारे में अच्छी बात कही जा सकती है, तो वह यह कि इसने हमें जावेद खान जैसे इंसान से मिलवाया.”