जामिया मिल्लिया इस्लामिया में बैठक पर रोक के नोटिस का मामला गहराया, जानिए क्या है छात्रों की प्रतिक्रिया

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 30-08-2022
जामिया मिल्लिया इस्लामिया
जामिया मिल्लिया इस्लामिया

 

अब्दुल हई खान और शाइस्ता फातिमा/ नई दिल्ली

जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने विश्वविद्यालय कैंपस के किसी भी हिस्से में बिना अनुमति के किसी भी किस्म की बैठक या जुटान पर बंदिश लगा दी है. कुछ छात्रों द्वारा परिसर का इस्तेमाल अपने सियासी एजेंडा के लिए इस्तेमाल करने का कारण बताते हुए जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने सोमवार को एक नोटिस जारी किया है. नोटिस में कहा गया है कि बगैर पूर्व अनुमति के ऐसी किसी भी बैठक आयोजित किए जाने पर विश्वविद्यालय प्रशासन अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगा.

जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्रों को राजनीतिक गतिविधियों के लिए परिसर का उपयोग नहीं करने का निर्देश देने वाले एक नोटिस ने छात्र समुदाय के बीच रोष पैदा कर दिया है और लोग इस पर अपनी प्रतिक्रिया भी दे रहे हैं.

विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रो. नाजिम हुसैन जाफरी ने सोमवार को एक ज्ञापन जारी कर कहा कि यह देखा गया है कि कुछ छात्र जो विभिन्न राजनैतिक दलों से जुड़े हैं, वे अपने राजनैतिक एजेंडे के लिए परिसर का उपयोग करते हैं.

वे समय-समय पर अपने दुर्भावनापूर्ण और राजनीतिक हितों के लिए परिसर में विरोध प्रदर्शन, धरना और बहिष्कार अभियान चलाते हैं. "वे परिसर के शांतिपूर्ण शैक्षणिक वातावरण को खराब करते हैं और पूरे शैक्षणिक सत्र में अनुशासन के अधिकांश छात्रों की नियमित गतिविधियों को बाधित करते हैं."

प्रॉक्टर की पूर्व अनुमति के बिना परिसर के किसी भी हिस्से में छात्रों की बैठक या सभा की अनुमति नहीं दी जाएगी, ऐसा न करने पर दोषी छात्रों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी.

एजेकेएमसीआरसी के पीएचडी स्कॉलर हमीद इस कदम पर अपनी प्रतिक्रिया में कहते हैं, “प्रोक्टोरियल स्टाफ छात्रों को किसी भी तरह के इकट्ठा होने से रोक रहा है. हमारे विश्वविद्यालय में समाज के साथ जुड़ने, छात्रों के साथ बातचीत करने और देश की समस्याओं से जुड़ने की विरासत है. इस विश्वविद्यालय की स्थापना भारत में साम्राज्यवादी शासन के खिलाफ राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूत करने के लिए की गई थी.”

उन्होंने कहा कि इस संस्थान के संस्थापकों ने छात्रों को बातचीत के माध्यम से अधिक सीखने पर जोर दिया, न कि केवल पाठ्यपुस्तक के ज्ञान पर. इस प्रकार, लोकतांत्रिक सभाओं, वाद-विवादों और वार्ताओं से छात्र के समग्र विकास को मजबूती मिलेगी.

जामिया मिलिया इस्लामिया के एक अन्य छात्र तहसीनकहते हैं, “दोनों पक्षों के पक्ष और विपक्ष हैं. कई बार छात्र उत्तेजित हो जाते हैं और कई बार प्रशासन ऐसा करता है. केवल किताबी कीड़ा बनने की बजाए समग्र विकास के लिए छात्रों का सभाओं में शामिल होना अच्छा होता है.”

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पूर्व छात्र अक्षय कहते हैं, “यह सर्कुलर पूरी तरह से कैंपस कल्चर के खिलाफ है. एक विश्वविद्यालय एक ऐसा स्थान है जो छात्रों को चर्चा करने, उनके विकल्पों का पता लगाने और एक्सपोजर प्राप्त करने के लिए माकूल होती है.

सभाएं, अध्ययन मंडलियां और समारोह होने चाहिए.राजनीति समाज का एक हिस्सा है, यह कैंपस से अलग नहीं है. लेकिन हां, राजनीति की सीमा हमेशा जांची जानी चाहिए. हम परिसर में सामाजिक रूप से अस्वीकार्य नारे नहीं लगा सकते, यह स्वतंत्रता का अन्यायपूर्ण उपयोग है. किसी भी तरह के अतिवाद से बचना चाहिए, प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए लेकिन सामान्य नोटिस जारी करना गलत है.”

फ़िक़्ह अकादमी, नई दिल्ली के प्रमुख मुफ्ती अहमद नादर कहते हैं कि अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों पर लागू नियम जामिया में भी लागू होने चाहिए और इसमें भेदभाव नहीं होना चाहिए.

विश्वविद्यालय ने लगभग 17 साल पहले ही सभी छात्र राजनीतिक संघ की गतिविधियों को समाप्त कर दिया है. अब इस सर्कुलर को कैंपस में लोकतांत्रिक मूल्यों पर अंकुश लगाने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है. आवाज द वॉयस ने अधिसूचना पर आगे स्पष्टीकरण के लिए रजिस्ट्रार से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन वह उपलब्ध नहीं थे. विश्वविद्यालय के सूत्रों ने कहा कि जाहिर तौर पर परिपत्र में शब्द अनुचित हैं.

इरादा शायद यह दोहराने का था कि छात्रों को परिसर में कोई भी विरोध प्रदर्शन करने से पहले अनुमति लेनी चाहिए. लेकिन इससे यह आभास होता है कि छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन हो रहा है. जामिया द्वारा सीएए और एनआरसी विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने वाली विवादास्पद छात्रा सफूरा जरगर के पीएचडी पंजीकरण को रद्द करने के मद्देनजर कुछ लोगों ने सर्कुलर को एहतियाती कदम के रूप में भी देखा है.