पटना से जुड़ी हैं भारतीय-अमरीकी रश्शाद की जड़ें, बनेंगे धार्मिक स्वतंत्रता राजदूत

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 01-08-2021
पटना में एक कार्यक्रम के दौरान रश्शद हुसैन
पटना में एक कार्यक्रम के दौरान रश्शद हुसैन

 

समी अहमद / पटना

पटना में पारिवारिक रिश्ता रखने वाले भारतीय-अमरीकी रश्शाद हुसैन को अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के लिए देश का राजदूत नियुक्त किया है. सीनेट से पास होने के बाद वे पहले मुस्लिम होंगे, जो धार्मिक स्वतंत्रता की वकालत करने वाले इस पद पर आसीन होंगे. यह एक बेहद महत्वपूर्ण पद है, जिसके जिम्मे दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर नजर रखना और उसके बारे में रिपोर्ट तैयार करने का काम होता है.

41 वर्षीय रश्शाद इस समय अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के साझीदारी और वैश्विक संबंध प्रभाग के निदेशक हैं. उन्होंने न्याय विभाग के राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभाग में बतौर सीनियर वकील भी काम किया है.

येल लॉ स्कूल से वकालत की डिग्री लेने वाले रश्शाद हुसैन को 2010 में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें महज 31 साल की उम्र में दुनिया के दूसरे सबसे बड़े सरकारों के संगठन ओआईसी यानी ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन में अमरीका का विशेष प्रतिनिधि नियुक्त किया था. वे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से अरबी और इस्लामी अध्ययन में एमए की डिग्री भी रखते हैं.

सम्पूर्ण कुरआन कंठस्थ करने वाले हाफिज रश्शाद के पिता मोहम्मद अकबर हुसैन माइनिंग इंजीनियर थे, जो 1970 में वर्क वीजा पर अमरीका गये थे. हालांकि रश्शाद हुसैन के पारिवारिक लोग अब भी पटना के सब्जी बाग में रहते हैं, लेकिन खुद रश्शाद का कहना है कि उनके पिता बिहार के ऐसे गांव से आये थे, जहां उस समय बिजली भी नहीं थी. रश्शाद हुसैन की बड़ी बहन लुब्ना, छोटे भाई साद और मां रुकैया मेडिकल डॉक्टर हैं.

वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद ने बताया कि 2010 में रश्शाद पटना आये थे. उस वक्त उन्होंने आईआईटी की तैयारी कराने वाले मशहूर मैथ्स टीचर आनन्द कुमार से भी मिले थे और उनका संबोधन एक अन्य संस्थान में भी हुआ था. वे उस समय पटना की मशहूर खुदाबख्स लाइब्रेरी भी गये थे. आनन्द कुमार ने रश्शाद को सरल स्वभाव के व्यक्ति के रूप में याद करते हैं. उन्होंने रश्शाद के इस मनोनयन को बिहार और भारत कें लिए गर्व की बात कही है.

रश्शाद के इस पद पर चयन को अमरकी समाज की उदारता और वहां समान अवसर के बड़े उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है. अमरीका में रह रहे मुजफ्फरपुर निवासी मोईन मून खान ने उन्हें बधाई देते हुए कहा कि दुनिया को अमरीका से यह सीखना चाहिए कि किसी योग्य व्यक्ति को धर्म और जाति देखे बगैर कैसे जिम्मेदारी जाती है. उन्होंने कहा कि रश्शाद के इस चयन से उन देशों को भी सीखना चाहिए जहां धार्मिक सहिष्णुता का स्तर काफी खराब है.

2009 में दुनिया के सबसे प्रभावशाली 500 मुसलमानों में शामिल रश्शाद की पहचान आतंकी प्रोपेगंडा की काट के लिए रणनीति बनाने में भी है. संयुक्त अरब अमीरात, नाइजीरिया, मलेशिया और सउदी अरब में इस काम के लिए बेहतर संवाद केन्द्र स्थापित करने में भी उन्होंने योगदान किया है.

उनके इस पद पर आसीन होने के लिए अमेरिकन जूइश कमिटी यानी एजीसी ने बाइडन प्रशासन की प्रशंसा की है. उसकी ओर से कहा गया है कि रश्शाद चुनौतीपूर्ण कूटनीति के माहौल में धार्मिक स्वतंत्रता के जबर्दस्त समर्थक के रूप में काम किया है. उल्लेखनीय है कि रश्शाद ने मुस्लिम बहुलता वाले देशों में इसाइयों, यहूदियों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए काफी प्रयास किये हैं. दूसरी ओर चीन, म्यांमार और कई अफ्रीकी देशों में मुसलमानों पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ भी आवाज उठायी है.