हिजाब बैन के बाद स्कूल बदलने वाली छात्रा ने केरल महोत्सव में जीता पुरस्कार

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 1 Years ago
हिजाब बैन के बाद स्कूल बदलने वाली छात्रा ने केरल महोत्सव में  जीता पुरस्कार
हिजाब बैन के बाद स्कूल बदलने वाली छात्रा ने केरल महोत्सव में जीता पुरस्कार

 

शाहीन अब्दुल्ला

इस वर्ष कन्नड़ भाषण में ‘ए ग्रेड’ के साथ प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने के बाद, अफीफा के अगले केरल राज्य स्कूल कला महोत्सव में प्रतिस्पर्धा करने के लिए उत्सुक नहीं है, जिसे स्कूली बच्चों के लिए एशिया का सबसे बड़ा कला उत्सव माना जाता है. बल्कि 16 वर्षीय अफीफा जोग फॉल्स, कर्नाटक के प्रमुख पर्यटक आकर्षण में लौटना चाहती है, जहां उसके दादाजी केरल ने व्यवसाय शुरू किया और वहीं बस गए.

उसने अपने माता-पिता और तीन भाई-बहनों के बारे में टूटी-फूटी मलयालम में मकतूब को बताया, ‘‘मुझे उनकी याद आती है, जोयहाँ से 535 किलोमीटर दूर हैं.’’ शिवमोग्गा के केपीसीएल हाई स्कूल में 10वीं कक्षा में पढ़ने वाली अफीफा को पिछले साल फरवरी में कर्नाटक सरकार द्वारा हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के तुरंत बाद स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था.

अफीफा बताती हैं कि वह अब केरल के मलप्पुरम जिले के एक कस्बे और अपने दादा के पैतृक स्थान, करुवरकुंड के एक स्कूल, दारुन्नाजथ एचएसएस में पढ़ती है. ‘‘एक दिन पुलिस और शिक्षकों ने एक बैठक बुलाई और हमें बताया कि वर्दी के नए नियम हेडस्कार्फ की अनुमति नहीं देते हैं.

हम पांच लड़कियां थीं, जिन्होंने क्लास में हिजाब पहन रखा था. सबने स्कूल जाना बंद कर दिया. हालाँकि अन्य लोगों ने हेडस्कार्व्स को हटाकर अंतिम परीक्षा दी, लेकिन अफीफा इसके बारे में नहीं सोच सकीं. उसके शिक्षक और सहपाठी स्थिति के बारे में ‘दुखी’ थे और उससे ‘किसी तरह’ बने रहने की विनती की.

उन्होंने कहा, ‘‘कर्नाटक में सातवीं कक्षा तक छात्रों के लिए हिजाब की अनुमति नहीं है. मुझे आखिरकार इसे 8वीं कक्षा में पहनना पड़ा और यह दो साल के लिए था. मैं हिजाब हटाना नहीं चाहती थी.’’ अफीफा का कहना है कि उसके माता-पिता ने उसे भविष्य का चुनाव करने के लिए कहा और वे उसके साथ खड़े रहे.

कला महोत्सव में, जो 7 जनवरी को संपन्न हुआ, कन्नड़ भाषण का विषय था ‘लोकतंत्र में मतदाताओं की भूमिका’. अफीफा ने कहा कि उन्होंने ‘मतदाताओं के दुरुपयोग और यह कैसे समाज को नुकसान पहुंचाता है’ के बारे में बताया.

अन्य प्रतियोगियों के विपरीत, जो अत्यधिक प्रतिस्पर्धी कार्यक्रम के लिए प्रशिक्षित होते हैं, अफीफा के पास मदद के लिए कन्नड़ में कोई प्रशिक्षक नहीं था. अफीफा ने उत्सव की तैयारी के दौरान थका देने वाली प्रक्रिया के बारे में बताया, ‘‘प्रिंसिपल ने मुझे विषय दिया और मैंने उसका कन्नड़ में अनुवाद किया और उसके लिए प्रस्तुति दी. मैं बाद में उसे समझने के लिए इसका मलयालम में अनुवाद करूंगी.’’

वह पिछले साल फरवरी में कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए हिजाब प्रतिबंध आदेश पर निर्णय लेने के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय की प्रतीक्षा कर रही हैं, जिसके कारण मुस्लिम लड़कियों को शैक्षणिक संस्थानों से बाहर कर दिया गया था.

13 अक्टूबर 2022 को सुनाए गए सुप्रीम कोर्ट के खंडित फैसले ने छात्रों के न्याय के इंतजार को और लंबा कर दिया है. इस मामले को अब मुख्य न्यायाधीश के समक्ष एक उपयुक्त पीठ गठित करने के लिए रखा गया है.

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के कर्नाटक चैप्टर की एक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘इस मामले को जल्द से जल्द उठाने की तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि मुस्लिम महिला छात्रों को शिक्षा, सम्मान और निजता के उनके संवैधानिक अधिकार से लगातार वंचित रखा जा रहा है.’’

अफीफा की बहन, जिसे पिछले साल 8वीं कक्षा में पदोन्नत किया गया था, ने मुस्लिम प्रबंधन द्वारा संचालित एक निजी स्कूल में दाखिला लिया. अफीफा ने कहा कि उसे अपने घर से स्कूल पहुंचने के लिए एक घंटे की यात्रा करनी पड़ती है.

स्कूल के हॉस्टल में रहकर अफीफा सिर्फ छुट्टी के दिनों में ही अपने माता-पिता से मिल पाती है. वह मैंगलोर में एक स्कूल खोजने की भी योजना बना रही है, जहां हिजाब की अनुमति हो. उन्होंने कहा, इस तरह ‘‘मैं घर के करीब रह सकती हैं.’’