महाराष्ट्रः गिलोय के चमत्कार ने बदल दी कातकरी आदिवासियों की जिंदगी

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 18-05-2021
कातकरी आदिवासियों की जिंदगी बदल दी गिलोय ने (फोटोः पीआइबी)
कातकरी आदिवासियों की जिंदगी बदल दी गिलोय ने (फोटोः पीआइबी)

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली      

आपदा में अवसर इसी को कहते हैं, वह भी बेहद सकारात्मक. कहानी महाराष्ट्र के ठाणे जिले की है, जहां नौजवानों ने गांव की सूरत बदल दी है.

महामारी के इस दौर में गिलोय के औषधीय गुणों के कारण उसकी मांग काफी बढ़ी है. ऐसे में मुंबई के पास ठाणे के शाहपुर में आदिवासी एकात्मिक सामाजिक संस्था जनजातीयों की समस्याओं को दूर करने के काम में लगा था. इस एनजीओ को देश के विभिन्न औषधि निर्माता कंपनियों से गिलोय की आपूर्ति के ऑर्डर हासिल हुए हैं. इन दवा कंपनियों में डाबर, बैद्यनाथ और हिमालय जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं. यह ऑर्डर करीब 1.57 करोड़ रुपए की कीमत का है.

जिस औषधीय पौधे गिलोय के लिए नौजवानों की इस टोली को आर्डर मिले हैं उसे आयुर्वेद में गुडुची कहा जाता है और इसका उपयोग वायरल बुखार, मलेरिया तथा डायबिटीज जैसी बीमारियों के उपचार में औषधि के रूप में किया जाता है. इसका  इस्तेमाल पाउडर, सत या क्रीम के रूप में किया जाता है.

कातकारियों के सपने हुए साकार

इस समूह का सफर कातकरी समुदाय के 27 वर्षीय युवा सुनील के नेतृत्व में शुरू हुआ था. जिसने अपनी टीम के 10-12 साथियों के साथ मिलकर अपने मूल निवास के राजस्व कार्यालय में कातकरी जनजातीय समुदाय के लोगों की मदद करना शुरू किया. कातकरी जनजातीय समुदाय भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा वर्गीकृत 75विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों में से एक है.

लेकिन अब, सुनील अब एक सफल उद्यमी बन चुके हैं. वह अपने इलाके में करीब 1,800लोगों से गिलोय इकट्ठा करते हैं. जनजातीय कार्य मंत्रालय के तहत काम करने वाली संस्था ट्राइफेड की मदद से सुनील को अपना दायरा और बढ़ाया.

ट्राइफेड द्वारा सहायता के रूप में क्षेत्र के सभी 6 वन धन केन्द्रों को 5 लाख रुपये मिले. जब सुनील को बड़ी कंपनियों का ऑर्डर पूरा करने के लिए और अधिक पूंजी की जरूरत पड़ी तो ट्राइफेड ने 25 लाख रुपये की अतिरिक्त सहायता प्रदान की.

सुनील ने कहा, "शाहपुर में हमारे पास 6 केंद्र हैं और इन सभी केन्द्रों पर प्रसंस्करण का काम ज़ोर-शोर से चल रहा है. यह देखना बहुत सुखद है कि किसी जनजातीय समूह के 1,800 लोग इस कोविड महामारी और लॉकडाउन के बीच भी अपनी आजीविका कमा रहे हैं. हमारे पास इस समय लगभग 1.5 करोड़ रुपये का ऑर्डर है और जल्द ही डाबर से और भी बड़ा ऑर्डर मिलने की संभावना है."

सुनील पीआइबी को बताते हैं, "कंपनियों को कच्चे माल की ज़रूरत होती है और वे कच्चा माल बड़े स्तर पर खरीदना चाहती हैं ताकि सस्ता पड़े. इन कंपनियों को हमसे सस्ते में कच्चा माल मिल जाता है.”

लेकिन सुनील और उनके साथियों ने गांव में ही इसका पाउडर बनाना शुरू कर दिया है और इसे अपेक्षाकृत अधिक ऊंची कीमत पर 500 रुपये प्रति किलो की दर से बेचना शुरू कर दिया है. यह पाउडर इसके कच्चे माल की कीमत की तुलना में 10 गुना महंगा है.

जंगलों से गिलोय इकठ्ठा करते समय सुनील और उनके साथी यह सुनिश्चित करते हैं कि भविष्य की ज़रूरत पूरी करने के लिए गिलोय के पौधों का अस्तित्व बना रहे. इसके अलावा उनके पास गिलोय की 5,000 नर्सरी तैयार है जिसकी रोपाई करनी है. उनकी योजना आने वाले दिनों में 2 लाख पौधे लगाने की है.

वैसे, महाराष्ट्र सरकार आदिवासी समुदायों के कल्याण के लिए माइक्रो स्तर पर रोजगार सृजन के काम में लगी है.

शबरी आदिवासी वितता महामंडल की प्रबंध निदेशक नीति पाटिल ने बताया है, "जल्द ही हम 5 वन धन केन्द्रों का एक क्लस्टर बनाएँगे ताकि मांग पूरी हो सके. 40 और केन्द्रों को पहले से ही स्वीकृत मिल चुकी है. जब यह काम करना शुरू कर देंगे तब कातकरी समुदाय के 12,000 लोगों के लिए रोज़गार उपलब्ध होगा (प्रत्येक वन धन केंद्र 300 लोगों को मदद करता है)".

असल में, इन स्वयं सहायता समूहों को प्रधानमंत्री वन धन योजना के तहत आर्थिक मदद मुहैया कराई जाती है. इससे आदिवासियों को अपने वन उत्पादों को बेचने के लिए किसी प्रकार के तनाव लेने की आवश्यकता नहीं होती है. यहाँ तक कि आदिवासियों को सामान खरीदे जाने के समय ही भुगतान कर दिया जाता है, जो निरंतर आय के रूप में जनजातीय लोगों के लिए बड़ी सहायता है.

गिलोय ने रोका पलायन

असल में, कातकरी समुदाय के लोग गरीब हैं और आजीविका की तलाश में गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र के रायगढ़ का रुख करते हैं, जहां वे ईंटों से जुड़े काम करते हैं. लेकिन गिलोय का काम शुरू होने से उनका पलायन रुक गया है. अब राज्य सरकार गिलोय के अलावा अन्य कार्यों के संबंध में भी योजना तैयार कर रही है क्योंकि जंगल से गिलोय इकट्ठा करना और उन्हें कंपनियों को भेजना एक अच्छा कारोबार है लेकिन इस कारोबार की प्रकृति मौसमी है और साल में इसे तीन चार महीनों के लिए ही चलाया जा सकता है.