मुस्ताक अली के शेरा क्लब में होती है हर धर्म की इबादत

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 27-03-2021
मुस्ताक अली खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देते हुए
मुस्ताक अली खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देते हुए

 

- मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना, गुरु का एक ही धर्म होता है वो है खेल

आरती मिश्रा / रायपुर

गुरु के लिए हर सीखने वाला समान होता है, फिर वह चाहे किसी भी धर्म या मजहब का हो. इसका जीता जागता उदाहरण हैं फुटबॉल कोच मुस्ताक अली, जिन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ खेल को ही माना है. फुटबॉल खेलने का जुनून ने कब उन्हें खिलाड़ी और उसके बाद कब गुरु बना दिया, पता ही नहीं चला. आज उनके पास सैकड़ों बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें उन्होंने निशुल्क ट्रेनिंग देकर ऐसे मुकाम में पहुंचा दिया, जो उनके सपने हुआ करते थे. इतना ही नहीं अबूझमाड़ जैसे नक्सली इलाकों में रहने वाले खिलाड़ियों को भी उन्होंने अपने पास रखकर उन्हें बड़ी सफलता दिलवाई है.

सप्रे शाला के पास शेरा क्लब चलाने वाले 63 वर्षीय मुस्ताक अली के जुनून के सामने मजहब कभी आड़े नहीं आया. पिछले 45 साल से वह खिलाड़ियों को तालीम दे रहे हैं. हर दिन और हर मौसम में सुबह 4.30 से 7.30 बजे तक वह बच्चों को फुटबॉल के लिए ट्रेनिंग देते हैं.

उनके पास हर धर्म को मानने वाले सीखने आते हैं, जिनमें 99 प्रतिशत ऐसे खिलाड़ी हैं, जो हिंदू हैं. वह बताते हैं कि हमारी नजर में हर खिलाड़ी का एक ही धर्म है और वह है खेलना. उनके पास हर साल ऐसे कई खिलाड़ी आते हैं, जो फीस देने में असमर्थ होते हैं, उन्हें निशुल्क सिखाना भी मुस्ताक अली की जिम्मेदारी है.

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मुस्ताक अली 


वे हर खिलाड़ी को पूरी शिद्दत से सिखाते हैं और यह कोशिश करते हैं कि वह एक दिन नेशनल प्लेयर बनकर उनका और इस जमीं का नाम रोशन करें.

सभी धर्मों की होती है पूजा

शेरा क्लब के संचालन मुस्ताक अली अपने साथ ऐसे खिलाड़ियों को भी पनाह देते हैं, जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होते. इतना ही नहीं वे ऐसे लोगों को अपने साथ रखकर उनके दोनों वक्त का खाना भी देते हैं, जो खिलाड़ी बाहर से आए हुए हैं और उन्हें रहने के लिए जगह नहीं होती है.

मुस्ताक बताते हैं कि उनके क्लब में हर धर्म के लोगों के लिए जगह है, यहां हर धर्म की पूजा होती है. दिवाली की पूजा बड़े ही विधि-विधान के अनुसार की जाती है. इतना ही नहीं हिंदुओं के हर त्योहारों को वहां पर रहने वाले खिलाड़ी उनके साथ मनाते हैं. क्रिसमस, गुरु नानक जयंती के साथ-साथ ईद भी वहां पर बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है. वह कहते हैं कि यहां रहने वाले हर बच्चे का घर है या और यही कारण है कि यहां सभी धर्मों को माना जाता है.

अबूझमाड़ के 3 लड़कों का बनाया भविष्य

मुस्ताक बताते हैं कि उनके पास राज्य भर के अलग-अलग जगहों से लोग सीखने आते हैं.एक बार अबूझमाड़ के तीन खिलाड़ी भी उनसे टकराए, इनमें राजकुमार, आशीष गोटा और गणेशराम थे. तीनों को उन्होंने अपने ही क्लब में रखकर फुटबॉल की तालीम दी और इतना सक्षम बना दिया कि वह मैदान में हर चुनौती का सामना करने को तैयार हो जाएं.

उनका रहना खाना-पीना, ट्रेनिंग इतना ही नहीं उनके पढ़ने का खर्च भी मुस्ताक अली ने खुद उठाया. इन तीनों ने 12वीं तक आश्रम में पढ़ाई की उसके बाद 5 साल शेरे क्लब में रहकर फुटबॉल सीखने के साथ-साथ आगे की पढ़ाई भी मुस्ताक अली ने ही उन्हें कराई.

आज इनमें से राजकुमार इंडियन रेलवे की टीम के लिए खेल रहे हैं. आशीष गोटा फॉरेस्ट में नौकरी कर रहे हैं और गणेशराम पोस्ट एंड टेलीग्राफ में. ऐसे कई खिलाड़ी हैं, जो अपने खेल के कारण आज सरकारी नौकरी कर रहे हैं.

कई लोग सीखते हैं मुफ्त में

मुस्ताक अली बताते हैं कि उनके पास सीखने आने वालों में कई बार ऐसा होता है कि 70 प्रतिशत लोग फ्री में सीख कर चले जाते हैं. किसी के पास आर्थिक तंगी के कारण होता है, तो किसी के आगे शौक रोड़ा बनकर खड़े हो जाता है. ऐसी स्थिति में खिलाड़ियों को हताश देखकर वह खुद ही उनका खर्च उठाते हैं और उनसे बिना फीस लिए ही ट्रेनिंग देते हैं.

उनके सिखाए हुए कई प्लेयर स्टेट के साथ-साथ नेशनल लेवल में भी अपना परचम लहरा चुके हैं. 50-60 प्लेयर्स ऐसे होते हैं, जो साल भर उनके पास सीखते हैं और वही डिस्ट्रिक्ट और नेशनल लेवल पर भी खेलते हैं.

मुस्ताक अली ने अपनी एक टीम बना रखी है, जिसे वह आए दिन मैदान पर उतारते हैं. वह कहते हैं, “अगर हम काबिल हैं, तो हर किसी को आगे बढ़ाने की कोशिश करते रहना चाहिए.”