डॉ. आसिफ इकबाल: पढ़ाते काॅलेज में, करते हैं मखाना की खेती

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
डॉ. आसिफ इकबाल: पढ़ाते काॅलेज में, करते हैं मखाना की खेती
डॉ. आसिफ इकबाल: पढ़ाते काॅलेज में, करते हैं मखाना की खेती

 

सुल्ताना परवीन / पूर्णिया ( बिहार )

देश भर से ऐसी कहानियां सामने आती रहती हैं कि खेती में नुकसान होने से किसान परेशान हैं. कभी कोई किसान खेती छोड़ कर दिल्ली-पंजाब मजदूरी करने चला जाता है, तो खेती छोड़ कर कोई किसान दूसरा रोजगार अपना लेता है.

इससे इतर बिहार के सीमांचल के क्षेत्र के अररिया जिले के डॉ. आसिफ इकबाल ने नई मिसाल पेश की है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से बायोटेक में एमएससी और कोलकाता विश्व विद्यालय से बायोटेक्नोलॉजी में पीएचडी करने के बाद उन्होंने खेती किसानी अपना ली. अब यही उनकी आमदनी का मुख्य स्रोत भी हैं.

अररिया कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. आसिफ इकबाल खेती से न सिर्फ अपने लिए अतिरिक्त आमदनी जुटा रहे हैं. गांव के लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. वो कहते हैं, ‘‘ घर चलाने के लिए नौकरी है, पर खेती से दूसरों के लिए रोजगार पैदा करता हूं.’’ यही वजह है कि 50एकड़ जमीन लीज पर लेकर मखाना की खेती शुरू कर दी है. इससे होने वाले लाभ सहकर्मियों में बांट देते हैं.

पिता से विरासत में मिली किसानी

अररिया के गैरा गांव निवासी डॉ. आसिफ इकबाल के पिता स्व. अब्दुस सलाम किसान थे. अच्छी खेती बाड़ी थी. डॉ. आसिफ ने उनसे ही खेती के गुर सीखे हैं. पिता के निधन के बाद भाई में अकेले होने के कारण इनपर परिवार की जिम्मेदारी आ गई.

वो घर लौटना चाहते थे, लेकिन घर वालों ने कहा कि संपत्ति की तरफ नहीं पढ़ाई पर ध्यान दें. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से बायोटेक में एमएससी करने के बाद जब घर लौटे तो मां मुश्तरी खातून बीमार पड़ गईं. ऐसे में बायोटेक्नोलाॅजी में एएमयू में और मेडिकल बायोकेमिस्ट्री में एएमयू के मेडिकल कॉलेज में पीएचडी के लिए सलेक्शन होने के बाद भी उन्हें गांव लौटना पड़ा. बाद में मौका मिला तो बायोटेक्नोलाॅजी में कोलकाता विश्वविद्यालय से पीएचडी की.

खेती में नुकसान से सबक

डॉ. आसिफ कहते हैं कि उनकी करीब साढे़ सात एकड़ जमीन लो लैंड में है. इसमें लगी फसल बाढ़ या अधिक बारिश के चलते हर साल तबाह हो जाती है. वो कहते हैं, ‘‘ फसल खराब होने का दर्द करीब 25साल से झेल रहा हूं.

हर साल बाढ़ का पानी खेतों में लगी फसलों को बर्बाद कर देती है. आज भी कुछ ऐसा है. सीमांचल के किसानों का दुर्भाग्य है, यहां़ कोसी, महानंदा, कनकनी और बकरा नदी में हर साल आने वाली बाढ़ तबाही मचाती है. हजारों एकड़ में लगी फसलें नष्ट हो जाती हंै. नदी कटने से हजारों घर तबाह होते हंै. तब लोग खानाबदोश की सी जिंदगी जीने को मजबूर होते हैं.

वह कहते हैं,’’ हमारी निचली जमीन पर लगी फसल भी हर साल बाढ़ और बारिश में बर्बाद हो जाती है.’’

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पानी को बनाया हथियार

जो पानी हर साल बाढ़ और बारिश के रूप में फसलों को बर्बाद कर देता था. उसी पानी को उन्होंने खेती के लिए हथियार बना लिया. डॉ. आसिफ कहते हैं कि दरअसल, कई साल से देख रहा हूं कि लोग मखाना की खेती कर अच्छी कमाई कर रहे हैं.

तभी उनके मन में पानी से इस फसल की पैदावार का आइडिया आया. चार साल पहले उन्हें लगा कि दूसरे लोग निचली जमीन में मखाना की खेती कर अच्छी कमाई कर रहे हैं, तो वह क्यों नहीं कर सकते ? इसके बाद प्रयोग के तौर पर पहले ढ़ाई एकड़ में मखाना की खेती की.

उससे अच्छा मुनाफा हुआ. अगले साल से साढे़ सात एकड़ जमीन पर मखाना की खेती शुरू कर दी. पहले पैदावार पर करीब दो लाख का शुद्ध लाभ हुआ था. इससे होने वाले मुनाफे को देखते हुए पिछले साल 50एकड़ जमीन लीज पर लेकर मखाना की खेती शुरु कर दी है.

बेरोजगारों को दिया रोजगार

डॉ. आसिफ कहते हैं कि कॉलेज में पढ़ाना और बड़े पैमाने पर खेती करना, दोनों काम एक साथ संभव नहीं था. इसलिए लीज पर जब जमीन ली तो गांव के लोगों को साथ ले लिया . उन्हें काम दिया और खेतीबाड़ी बढ़ाई. पिछले साल मखाना की खेती से करीब 23 लाख की आमदनी हुई.

इसका बड़ा हिस्सा उन लोगों में बांट दिया, जो उनके काम में हाथ बंटा रहे हैं. डॉ. आसिफ कहते है,‘‘ उन्होंने उन लोगों के लिए मखाना बड़े पैमाने पर उपजाने का फैसला किया, ताकि रोजगार दिया जा सके.’’ वो कहते हैं कि भोला पासवान कृषि कॉलेज के मखाना वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुमार ने उन्हें इसकी खेती के तरीके सिखाए हैं. डॉ. अनिल की मदद से ये सब कुछ संभव हो सका है.’’

मक्का और धान की भी करते हैं खेती

अररिया गैरा के रहने वाले डॉ. आसिफ इकबाल कहते हैं कि दस एकड़ जमीन पर धान की खेती करते हैं. धान काटने के बाद गरमा धान, रबी के मौसम में मक्का, गेहूं, पीला सरसों और दलहन की खेती करते हैं. वो कहते हैं कि सीमांचल का कोई भी किसान मक्के की पैदावार उपजाने का लोभ नहीं छोड़ता. मक्का इस इलाके की नकदी फसल बन चुकी है.