कैसे सैकड़ों बच्चों के आदर्श बने ब्लैक बेल्टर फिशान खान, पढ़ें

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 20-03-2021
फिशान खान (माला पहने हुए)
फिशान खान (माला पहने हुए)

 

- गांव के माहौल की वजह से कराटे सीखना शुरू किया था

- कराटे में कुछ भी हिंदू-मुस्लिम नहीं है

राकेश चौरासिया / फरीदाबाद

“गांव में लड़ाई-झगड़े बहुत होते थे. गांव के माहौल से मजबूर होकर कराटे सीखना शुरू कर दिया. बाद में जब इसके फायदे नजर आए, तो इसे करियर बना लिया.” यह कहना है फिशान खान का, जो ब्लैक बेल्ट सेकंड डान हैं.

फरीदाबाद जिले की मादलपुर-कुरेशीपुर पंचायत के पूर्व सरपंच कमरुद्दीन और उनकी पत्नी निजार बी के मंझले बेटे हैं फिशान खान. फिशान के बड़े भाई की दूध की डेयरी ओर प्रॉपर्टी डीलिंग का काम है और छोटा भाई घर पर ही रहता है.

फिशान खान कहते हैं, “मेरी पैदाईश गांव मादलपुर की है. पांचवीं तक गांव मादलपुर के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई की और 6वीं से 12वीं तक की शिक्षा राजीव कॉलोनी के फौगाट पब्लिक स्कल से ग्रहण की. उसके बाद अलफलाह यूनिवर्सिटी, धौज से बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनस्ट्रेशन में डिग्री हासिल की.

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फिशान खान 


वे बताते हैं, “आज से लगभग 19साल पहले की बात है. उन दिनों पिता जी दूध लेकर एक नंबर मार्केट जाते थे, तो उन्होंने बताया था कि सेक्टर 22 हनुमान मंदिर पर कराटे सिखाए जाते है.”

यह जानकारी मिलने पर फिशान खान ने कराटे सीखने का पक्का इरादा कर लिया. ताकि कभी गांव में मौका-बेमौका अपना शारीरिक बचाव कर सकें. उन्होंने पिता के सामने कराटे सीखने की बात कही और कराटे मास्टर गंगेश तिवारी के पास कराटे की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी.

वो बताते हैं, “पहले कराटे सीखने की कोई खास वजह नहीं थी. सिर्फ गांव में लड़ाई-झगडे़ ज्यादा होते हैं. इसी को सोचकर शुरुवात की थी, लेकिन बाद में पहले वाली सोच बदल गई. कराटे करने के फायदे सामने आने लगे. तो इसे फिर मैंने करियर बना लिया.”

100 चौंपिनशिप खेलीं

उन्होंने बताया, “कराटे में मैंने बहुत सी चौंपिनशिप खेलीं और जीती भी. आज मैं कराटे में ब्लैक बेल्ट सेकंड डान हूं. कराटे में मैंने लगभग 100 चौंपिनशिप खेलीं हैं, जिनमें 4 इंटरनेशनल और 6  नेशनल भी शामिल हैं. और कराटे के साथ ही मैंने बॉक्सिंग, किकबॉक्सिंग, ताइक्वांडो भी खेला है. बॉक्सिंग में हरियाणा ओलंपिक में मेडिलिस्ट हूं और हरियाणा स्कूल गेम्स में भी मेडलिस्ट हूं. किकबॉक्सिंग में हरियाणा स्कूल गेम्स में मेडलिस्ट हूं और नॉर्थ इंडिया चौंपियन हूं.”

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फिशान खान ने इंटरनेशनल और नेशनल लेवल पर कई प्रतियोगिताएं जीती हैं

 

आशीर्वाद मिला

उन्होंने कहा कि कराटे, बॉक्सिंग, किकबॉक्सिंग, ताइक्वांडो में माता-पिता और मेरे कराटे गुरू गंगेश तिवारी जी, मेरे बॉक्सिंग गुरू और जिला खेल अधिकारी रमेश वर्मा सर, दीपक महाजन सर, सुमित सर और मेरे स्कूल के डायरेक्टर डाक्टर सतीश फौगाट सर ये सब मेरे प्रेरणा स्रोत रहे हैं.

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स्कॉटलैंड के मास्टर ट्रेनर जिम पाल्मर एक ट्रेनिंग कैंप के दौरान फिशान खान को सम्मानित करते हुए 


2000 बच्चों को प्रशिक्षण दे चुके हैं

वे अपनी प्रशिक्षण यात्रा के बारे में बताते हैं कि वे पिछले आठ सालों से अपनी अकेडमी चला रहे हैं और उनकी एकेडमी का नाम मेव अकेडमी मादलपुर है, जो तीन जगह फरीदाबाद में और तीन जगह मेवात (नूंह) में चलती है. उन्होंने बताया, “मैं अब तक लगभग 2000बच्चों को कराटे की ट्रेनिंग दे चुका हूं. मेरे ज्यादातर शिष्य हिन्दू बच्चे ही रहे हैं. उनमें लगभग 70प्रतिशत हिन्दू बच्चे और 30प्रतिशत मुस्लिम बच्चे शामिल हैं.”

संदीप पांचाल की प्रगति से अभिभूत फिशान खान बताते हैं, “मेरे शिष्यों में सबसे प्रतिभाशाली शिष्य संदीप पांचाल हैं, जिनकी स्कूली पड़ाई फ्री हुई है और हर साल उनकी स्कॉलरशिप आती है. वो भी इंटरनेशनल चैंपियनशिप खेल चुका है और ब्लैक बेल्ट है.”

एसोसिएशंस ने बिगाड़ा खेल

खेलों में सरकार के प्रोत्साहन और योगदान पर वे कहते हैं, “कराटे के क्षेत्र में सरकार और प्रशासन का अभी तक काम ठीक नहीं रहा. कराटे के प्रति ही नहीं, और भी बहुत से गेम्स हैं, जिन पर सरकार का ध्यान ही नहीं. आए दिन गेम्स की नई एसोसिएशन बन जाती है और सरकार का काम है, इन सभी एसोसिएशन को खत्म करके एक वैलिड एसोसिएशन बनाए. इन सबके चक्कर में बच्चों का नुकसान होता है. बच्चे समझ ही नहीं पाते हैं कि कौन सी एसोसिएशन ठीक है.

गंदे लोगों से बचना है 

उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण के दौरान कभी भेदभाव जैसी कोई बात नहीं दिखती. बच्चों को ट्रेनिंग के दौरान कोई खास परेशानी नहीं हुई. चाहे हिन्दू बच्चे हों या मुस्लिम. सिर्फ बच्चों और माता पिता को जानकारी के अभाव में कुछ तकनीकी परेशानी आती है, तो वे उसका समाधान करने का प्रयास करते हैं.

फिशान का नजरिया है, “हिन्दू-मुस्लिम एकता हमारे देश की तरक्की के लिए बहुत ही जरूरी है. हम सब हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई हैं. पर कुछ गंदे लोग भी होते हैं, जो कुछ हिंदुओं और कुछ मुस्लिमों में हैं. हमें इस तरह के लोगों से बचना है और इन्हें समझने की कोशिश करनी है.”

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मेव अकेडमी, मादलपुर


उन्होंने बताया, “मेरे बहुत से दोस्त हिन्दू हैं, लेकिन कभी भी हमारे बीच ये हिंदू-मुस्लिम वाली कोई बात ही (सामने) नहीं आई. हम सब दोस्त मिलकर रहते हैं. मेरे घर हिन्दू दोस्तों का आना-जाना होता है और मैं उनके घर खूब जाता हूं.”

उन्होंने कहा कि देश ओर समाज की तरक्की के लिए हम सब भारतवासियों को एक होकर काम करना होगा. सबसे पहले हमें एक अच्छा इंसान बनना होगा.