यूक्रेन: ओडेसा की रहस्यमय मस्जिद और मुसलमान

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
यूक्रेन: ओडेसा की रहस्यमय मस्जिद और मुसलमान
यूक्रेन: ओडेसा की रहस्यमय मस्जिद और मुसलमान

 

आम धारणा है कि यूक्रेन में मुसलमान नहीं रहते. कहने को उनकी जनसंख्या बहुत कम है, पर इतने भी नहीं कि उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाए. यूक्रेनी मुसलमानों की संस्कृति, रहन-सहन, वेशभूषा खास है. इस देश में सुन्नी मुसलमानों का प्रभाव शुरू से रहा है. आज से आवाज द वाॅयस पाठकों को यूक्रेनी मुसलमानों के विभिन्न पहलुओं से रू-ब-रू कराने का सिलसिला शुरू कर रहा है. इसकी पहली कड़ी में यूक्रेन के बंदरगाही शहर ओडेसा के मुसलमान और इसके इतिहास से परिचय करा रहे हैं मलिक असगर हाशमी.

 
रूसी साम्राज्य के प्रभुत्व के दौरान लिखे गए, ओडेसा के आधिकारिक इतिहास का दावा है कि महारानी कैथरीन द्वितीय ने 1794 में शहर की स्थापना की थी. उन्होंने इससे संबंधित पहला दस्तावेज उस वर्ष 2 सितंबर को सार्वजनिक किया था. माना जाता है कि इस दिन महारानी का जन्मदिन था.ओडेसा यूक्रेन की समुद्री राजधानी है.
 
आरोप है कि शाही इतिहासकारों ने शहर के चार शताब्दियों पुराने इतिहास को मिटाने की बहुत कोशिश की, जिसमें वह तीन 300 साल की अवधि भी शामिल है, जब ओडेसा (हद जीबे, कोकिबे) गोल्डन होर्डे, क्रीमियन खान और ओटोमन साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था.
 
माना जाता है कि इस शहर का पहला उल्लेख ब्लू वाटर्स की लड़ाई (1362) के दौरान हुआ. इस ऐतिहासिक लड़ाई के दौरान, लिथुआनिया के ग्रैंड ड्यूक अल्गिरदास ने गोल्डन होर्डे एमिर, कुटलुबग, हडजिबे और डेमिर (डेमेट्रिअस) की सेनाओं को हराया था.
 
पोलिश इतिहासकार मासीज स्ट्रीजकोवस्की ने अपने इस लड़ाई का वर्णन कुछ इस तरह कियाः ‘‘तातार लिथुआनियाई सेनाओं के लंबे हमले का विरोध नहीं कर सके, वे डर गए और परिणामस्वरूप, एक अव्यवस्थित वापसी में टूट गए.
 
लड़ाई में तीन छोटे राजा मारे गए.  कुटलुबाह, काचिबे (काचीबे की नमक झील का नाम उनके नाम पर रखा गया है. यह जंगली क्षेत्रों में स्थित है. ओचकोव के रास्ते में) और सुल्तान दिमेयटर. साथ ही साथ बहुत सारे मिर्जा और उहलान भी जंग का शिकार हुए.
 

काला सागर भूमि पर कब्जा

 

माना जाता है कि न केवल मुहाना, बल्कि शहर का नाम तातार अमीर के नाम पर रखा गया है. यह शहर एक छोटा सा प्रशासनिक केंद्र था, जिस पर उस समय अमीर खड्झीबे का शासन था. ओडेसा में पुरातात्विक उत्खनन के दौरान गोल्डन होर्डे काल के बहुत सारे चीनी मिट्टी के बरतन पाए गए थे.
 
ब्लू वाटर्स की लड़ाई के बाद, डेनिस्टर और नीपर के बीच का क्षेत्र लिथुआनिया के ग्रैंड डची पर निर्भर हो गया. 15 वीं सदी के 20 के दशक में ड्यूक व्याटौटस ने खड्झीबे (वर्तमान ओडेसा) में एक पत्थर का महल बनाया. 1482 में, लिथुआनियाई राजकुमारों की शक्ति के कमजोर होने का फायदा उठाते हुए, क्रीमियन खान मेंगली गिरय ने कीव के खिलाफ एक अभियान चलाया. इस दौरान, कोचुबे कैसल सहित लिथुआनिया के ग्रैंड डची की काला सागर भूमि पर कब्जा कर लिया गया.
 
लंबे समय तक, क्रीमिया खानटे और ओटोमन साम्राज्य ने नगर पालिका भवनों की बहाली में दिलचस्पी नहीं दिखाई, लेकिन उन्होंने बंदरगाह शहर ओचकोव (ओज्यू) के निर्माण में अधिक निवेश किया, जो हडजिबे से दूर नहीं था.
 
18 वीं सदी के मध्य में, सब्लिमे पोर्टे ने रूस के साथ अपरिहार्य सैन्य संघर्ष की प्रतीक्षा में, एक छोटा किला बनाया. इसके बगल में भंडारण सुविधाओं का निर्माण कराया गया. साथ ही बंदरगाह का बुनियादी ढांचा कदम दर कदम विकसित हो रहा.
 

रूसी खुफिया एजेंट और मस्जिद

 

1766 में, रूसी खुफिया एजेंट, इवान इस्लेन्येव ने व्यापारी की आड़ में खड्जीबे का दौरा किया, और ‘‘तुर्की शहर गाजीबे के किले में घुसने की एक योजना बनाई. यह किला समुद्र तट पर निर्मित है. इस्लेनेव की योजना में अन्य इमारतों के साथ एक मस्जिद भी थी. मस्जिद साहित्य संग्रहालय के वर्तमान स्थान पर स्थित थी. शायद, यह एक छोटी सी इमारत थी, क्योंकि तब शहर की मुस्लिम आबादी कम थी.
 
1789 में, रूसी सैनिकों ने खड्जीबे के किले पर धावा बोल दिया. अधिकांश इमारतों को नष्ट कर दिया गया. सभी नागरिकों को वहां से बेदखल कर दिया गया. मस्जिद भी तोड़ डाली गई, लेकिन कब और किन परिस्थितियों में ठीक-ठीक कोई नहीं जानता.
muslim

मुसलमान उजड़े और बसे

 

कुछ समय बाद  मुस्लिम समुदाय फिर से शहर में दिखे. खड्झीबे के हमले के 60 साल बाद इस इलाके को ओडेसा के नाम से जाना जाने लगा. ओडेसा क्षेत्र के राज्य अभिलेखागार में मुसलमानों के पंजीकरण के पहले कृत्यों को 1849 में दिनांकित किया गया है.
 
‘तातार मस्जिद‘ का निर्माण (कुछ दस्तावेजों में इसे तुर्की कहा जाता है) 1870 से दिनांकित है. मस्जिद की परियोजना के लेखक को एक उत्कृष्ट अजरबैजानी वास्तुकार करबलायी सफी खान करबाखी माना जाता है, जो काराबाख वास्तुकला स्कूलों के प्रतिनिधियों में से एक है.
 

विलुप्त हो गई मस्जिद

 

अब तो न केवल मस्जिद की इमारत, बल्कि उसकी छवि भी विलुप्त हो गई है. इसके अलावा, सही जगह, जहां मस्जिद स्थित थी, भी अज्ञात है. सचित्र गाइड ‘‘ओडेसा 1900‘‘ में लिखा है कि तुर्की मस्जिद और तुर्की कब्रिस्तान के बीच से एक सड़क गुजरती थी.‘‘
 
1919 में प्रकाशित ओडेसा के नक्शे के अनुसार, मस्जिद वोडोप्रोवोडनया और स्टारोपोर्टोफ्रेंकोवस्काया सड़कों के बीच कहीं स्थित थी.  नगरपालिका कब्रिस्तान के ठीक पास, जिसमें ‘‘मोहम्मडन‘‘ क्षेत्र भी शामिल है. इसे सोवियत अधिकारियों ने 30 के दशक में नष्ट कर दिया था. वर्तमान में मुस्लिम कब्रिस्तान के द्वार के स्थान के अवशेष बचे हैं.
muslim

अमीर, सय्यद अब्द अल-अहद बहादुर खान

 

1917 की क्रांति तक इब्राहिम आदिकाएव ओडेसा मस्जिद में एक मौलवी थे. उन दिनों पुरुष और महिला विभाजन के साथ एक मकतब में पढ़ते थे.1893 में, ओडेसा के मुसलमानों ने बुखारा के अमीर, सय्यद   अब्द अल-अहद बहादुर खान को अपना नेता चुना.
 
वह उज्ज्वल राजनीतिक और प्रसिद्ध परोपकारी व्यक्ति थे. सेंट की कैथेड्रल मस्जिद, सेंट पीटर्सबर्ग का निर्माण उनके प्रयासों की बदौलत किया गया था. साथ ही याल्टा में उनके द्वारा अस्पताल बनाया गया था.
 
ओडेसा के अधिकांश मुसलमान वोल्गा से आए थे. मूल रूप से तातार और बश्किर थे. साथ ही क्रीमियन तातार भी उनमें से थे. 1892 में, ओडेसा में लगभग 1 हजार मुसलमान थे. शहर में ‘हलाल‘ मांस की 16 दुकानें खोली गईं थीं.
 

रहस्यमय मस्जिद और हज

 

कई दशकों तक, ओडेसा प्रेस में मस्जिद के खंडहरों की रहस्यमय कहानी व्यापक तौर प्रकाशित की जाती रही. माना जाता है कि वह मस्जिद शहर के पुराने हिस्से में, 5 वीं शताब्दी में गगारिन ड्यूक की भूमि पर स्थित थी. इस कहानी की जड़ें उन दिनों तक जाती हैं जब ओडेसा मक्का के लिए हज के आयोजन का केंद्र था.
 
19 वीं सदी के अंत और 20 वीं सदी की शुरुआत में, रूसी साम्राज्य से सारे हज यात्री इस शहर में एकत्र होते थे. 1908 में, पेरेसिप जिले में हाजी खान तीर्थयात्रियों के लिए खोला गया था, यह गरीब लोगों के लिए एक तरह का कारवां सराय था. हालाँकि, प्रथम विश्व युद्ध के फैलने के कारण, तीर्थयात्रियों को ओडेसा से मक्का ले जाना रद्द कर दिया गया था.
 
लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि धर्म के खिलाफ सोवियत सक्रिय संघर्ष के समय मुसलमान हज करने से वंचित रहे, लेकिन ओडेसा क्षेत्र के राज्य अभिलेखागार के अधिकारी की हालिया जांच में हज के इतिहास को स्पष्ट किया है. अधिकारी जेल्यासकोव को इस संबंध में कई गोपनीय दस्तावेज मिले हैं.
 
जानकारी के अनुसार, 1920 के दशक में, सोवियत रूस, विदेशी मुद्रा की भागीदारी में रुचि रखते हुए, ओडेसा बंदरगाह से आजोव-ब्लैक सी शिपिंग कंपनी के जहाजों द्वारा तीर्थयात्रियों को भेजना फिर से शुरू कर दिया. पहले, यहां से चीन, फारस और अफगानिस्तान के मुसलमान हज के लिए सफर करते थे.
 
तीर्थयात्रियों के लिए हाजी खान सराय का निर्माण बंदरगाह क्षेत्र, प्रिमोर्स्काया और वोयेनिय स्पस्क सड़कों के कोने पर किया गया था. यहां एक मस्जिद भी थी. संभवत, यह तथ्य इस स्थान पर एक प्राचीन मस्जिद के अस्तित्व के बारे में किंवदंती की तरह है.
 
ओडेसा क्षेत्र के राज्य अभिलेखागार ने एन्क्रिप्शन को संग्रहीत किया है कि जेद्दा के अरब बंदरगाह के प्रमुख ने सोवियत यात्री जहाज ‘‘थियोडोर नेटे‘‘ को ‘‘सैनिटरी कोड के अनुसार तीर्थयात्रियों के लिए सबसे अच्छी गाड़ी‘‘ के रूप में बताया.
 
20 वीं सदी के शुरुआती 30 के दशक में मध्य पूर्व स्टीम शिप लाइन को बंद कर दिया गया था, जिससे तीर्थयात्रियों को मक्का ले जाया जाता रहा था. 20 के दशक में स्टालिनवादी आतंक और दमन का युग शुरू हुआ.
 

क्या है डोनबास


यह दक्षिण-पूर्वी यूक्रेन का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक इलाका है.  डॉन नदी डोनेट्स के माध्यम बहती है. इसकी सीमाओं को आधिकारिक तौर पर सीमांकित नहीं किया गया है. यहां रहने वाले रूस समर्थक हैं. मार्च 2014 में यूरोमैडन और यूक्रेनी क्रांति के बाद, डोनबास के बड़े इलाके अशांति की चपेट में आ गए.
 
इसके उपरांत स्व-घोषित डोनेट्स्क और लुहान्स्क पीपुल्स रिपब्लिक (जिसे संयुक्त राष्ट्र में मान्यता प्राप्त नहीं है) से संबद्ध रूसी समर्थक अलगाववादियों के बीच युद्ध में बदल गया. यूक्रेन के सभी क्षेत्रों में डोनबास सबसे घनी आबादी वाला था क्षेत्र माना जाता है. अभी रूस-यूक्रेन युद्ध में रूसी सेना को सबसे अधिक इसी इलाके से समर्थन मिल रहा है.