तहरीक-ए-तालिबान से पल्ला झाड़ा, तालिबान बोला ‘टीटीपी’ से खुद निपटे पाकिस्तान

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 30-08-2021
जबीहुल्लाह मुजाहिद
जबीहुल्लाह मुजाहिद

 

राकेश चौरासिया / नई दिल्ली

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ऐसा आतंकी समूह है, जो पाकिस्तान में कई आतंकी हमलों के लिए जिम्मेदार है और पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बना हुआ है। हाल ही में तालिबान ने कई प्रांतीय जेलों में कैद सैकड़ों टीटीपी जिहादियों के रिहा कर दिया था। इस बारे में अब अफगानिस्तान के तालिबान ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए टीटीपी को पाकिस्तान की अपनी समस्या बताया है। तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा है कि टीटीपी का मुद्दा पाकिस्तान का है और इसे पाकिस्तान सरकार को हल करना चाहिए, न कि अफगानिस्तान को.

जबीहुल्लाह मुजाहिद ने जियो न्यूज सेएक इंटरव्यू में कहा कि हमारा रुख स्पष्ट है। हम किसी दूसरे देश की शांति को नष्ट करने के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी को नहीं करने देंगे.

उन्होंने कहा कि तालिबान अफगानिस्तान की जमीन पर किसी भी आतंकी गुट को दूसरे देश के खिलाफ हमले की इजाजत नहीं देगा. इस बात को लेकर बेहद स्पष्ट है और वे पहले भी इसे दोहरा चुके हैं.

जबीहुल्लाह ने इंटरव्यू में कहा कि उसका तहरीक-ए-तालिबान यानि टीटीपी से कोई लेना-देना नहीं है. इसे पाकिस्तान, उसके उलेमा या फिर दूसरे धार्मिक नेता देखें. हमें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि वो इस पर क्या फैसला लेते हैं और उनकी रणनीति क्या होती है.

टीटीपी पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में केंद्रित है। टीटीपी गाहे-बगाहे पाकिस्तान में आतंकी हमले करता रहता है।

टीटीपी का मकसद पाकिस्तान में शरिया की हकूमत लाना है।

अफगान तालिबान और टीटीपी दोनों समूहों में पख्तूनों का वर्चस्व है।

किंतु तालिबान प्रवक्ता जबीहुल्लाह ने टीटीपी से पल्ला झाड़कर साफ संकेत दे दिया है कि वह पाकिस्तान की ज्यादा मदद करने का इच्छुक नहीं है।

हालांकि पिछले दिनों कई पाकिस्तानी नेताओं ने शेखचिल्लाना बयान दिए थे कि अफगान तालिबान, कश्मीर जीतेंगे और कश्मीर जीतकर पाकिस्तान के हवाले कर देंगे।

 

पाकिस्तान में इन दिनों अफगानिस्तान में तालिबानी सत्ता आने की खुशियां मनाई जा रही हैं। पाक नेताओं को यह उम्मीद है कि भारत के मुकाबले तालिबान उसे तरजीह देगा।

मगर तालिबान-2.0 ने पहले ही कह दिया है कि वह अब पहले जैसा नहीं रहा है।

तालिबान की जमीनी हकीकत है कि पिछली तालिबानी सरकार को केवल पाकिस्तान, सऊदी अरब और यूएई ने ही मान्यता दी थी। इसलिए वे शेष दुनिया से कट गए थे।

विशेषज्ञों के अनुसार, तालिबान की इस बार यह सोच दिखाई पड़ती है कि वह पश्चिम, खाड़ी और पड़ोसी मुल्कों से बराबर ताल्लुकात बनाएं, ताकि वह लंबे समय तक सत्ता में टिके रह सके।

इसी कड़ी में तालिबान के वरिष्ठ नेता शेर मोहम्मद अब्बास अब्बास स्तानिकजई ने कहा है कि उनका समूह भारत के साथ अफगानिस्तान के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्ते को पहले की तरह बरकरार रखना चाहता है।

सोशल मीडिया पर अपलोड अपने 46 मिनट के एक वीडियो में पश्तो भाषा में स्तानिकजई ने क्षेत्र के अहम देशों भारत, पाकिस्तान, चीन और रूस से संबंधों के बारे में तालिबान का नजरिया बताया।

स्तानिकजई ने कहा, “इस महाद्वीप के लिए भारत बहुत महत्वपूर्ण है। हम भारत के साथ सांस्कृतिक, आर्थिक और व्यापारिक रिश्ता पहले की तरह रखना चाहते हैं।”

तालिबान अपने शासन में मुलायमियत का भी संकेत दे रहा है। तालिबानों ने घोषणा की है कि माहिलाओं को शरीयत के अनुसार शिक्षा और रोजगार का अधिकार दिया जाएगा।

तालिबान सरकार के गठन में इसलिए भी देरी हो रही है कि तालिबान इस बार काबुल में समावेशी सरकार का गठन करना चाहते हैं, जिसमें सभी कबीलों और समूहों का प्रतिनिधित्व हो, ताकि वह अफगानिस्तान के सभी वाशिंदों में उसकी स्वीकार्यता बनी रहे।