नई दिल्ली. पंजशीर में विद्रोही गुट के नेता अहमद मसूद ने कहा है कि तालिबान उतना मजबूत नहीं है, जितना कई लोग मानते हैं. सीएनएन के साथ एक साक्षात्कार में, मसूद ने कहा कि देश पर कब्जा करने का कारण सरकार और अफगान सेना के नेतृत्व की कमजोरी थी.
मसूद ने कहा, दुर्भाग्य से, पूर्व अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने उन जनरलों और अधिकारियों की सेना को हटा दिया जो तालिबान से लड़ना जानते थे और जिनके पास दुश्मन से लड़ने की इच्छा और प्रेरणा थी.
उन्होंने कहा कि देश का नेतृत्व एक और समस्या है.
मसूद ने कहा कि अशरफ गनी की आलोचना करते हुए कहा कि हाल के वर्षों में जनता उनकी सरकार से अलग हो गई थी.
मसूद ने सीएनएन के साथ साक्षात्कार में कहा, गनी और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मोहिब के अफगान सेना की निर्णय लेने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप ने भी सशस्त्र बलों को कमजोर कर दिया. वे दो व्यक्ति हैं, जिनके पास किसी भी सैन्य प्रशिक्षण या अनुभव की कमी थी, फिर भी ये वही व्यक्ति थे, जिन्होंने युद्ध योजनाओं पर अंतिम निर्णय लिया.
उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से तालिबान नहीं बदला है और वे अब भी पूरे देश में दबदबा बनाए हुए हैं.
मसूद ने साक्षात्कार में कहा, हम बहुसंख्यक आबादी पर एक राजनीतिक ताकत द्वारा लाए गए प्रभुत्व, असहिष्णुता और उत्पीड़न का विरोध कर रहे हैं, जो उनका समर्थन नहीं करते हैं. तालिबान को केवल तभी स्वीकार किया जाएगा, जब वे देश में सभी जातीय समूहों के साथ एक समावेशी सरकार बनाते हैं. अफगानिस्तान एक ऐसा देश है, जो जातीय अल्पसंख्यकों से बना है और कोई भी बहुसंख्यक नहीं है. यह एक राष्ट्र-राज्य के बजाय एक बहुसांस्कृतिक राष्ट्र है. इस कारण से, उन्हें देश पर शासन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, और यदि उनकी यह स्थिति है, तो हम उनका विरोध करेंगे.
उन्होंने सीएनएन को दिए साक्षात्कार में आगे कहा, अगर तालिबान रियायतें नहीं देते हैं और यह विश्वास करना जारी रखते हैं कि वे देश पर हावी हो सकते हैं, तो हम भी विरोध करेंगे. पिछली बार जब उन्होंने प्रभुत्व दिखाया था, तो उन्हें पांच साल के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था.