ढाका
बांग्लादेश की तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी जातीयो पार्टी ने प्रधानमंत्री शेख हसीना के गृहनगर गोपालगंज में हालिया हिंसक घटनाक्रम के बाद देश की तेजी से बिगड़ती राजनीतिक परिस्थितियों पर गहरी चिंता जताई है। पार्टी के महासचिव शमीम हैदर पतवारी ने कहा कि फ़रवरी में प्रस्तावित आम चुनाव के लिए “लेवल प्लेइंग फील्ड” जैसी कोई स्थिति दिखाई नहीं दे रही और न ही चुनावी तैयारी के “कोई ठोस लक्षण” नज़र आ रहे हैं।
पतवारी ने एएनआई से कहा, “स्थिति बेहद तनावपूर्ण है—न तो स्थिर है, बहुत अस्थिर और अप्रत्याशित है। अगर फ़रवरी में चुनाव होने हैं तो सरकार की मशीनरी और राजनीतिक दल किसी वास्तविक तैयारी में लगे हों, ऐसा नहीं दिखता। इसके बजाय जो वातावरण बन रहा है, वह हिंसा की ओर इशारा करता है।”
उनके अनुसार तनाव तब बढ़ा जब नेशनल सिटिज़न्स पार्टी (एनसीपी)—जो शेख हसीना को हटाने के आंदोलन से जुड़ी रही है—ने गोपालगंज में प्रवेश किया। उन्होंने कहा, “यह स्वाभाविक है कि यदि एनसीपी गोपालगंज जाए और शेख हसीना या ‘बंगबंधु’ शेख मुजीबुर रहमान के खिलाफ नारे लगाए तो लोगों में उत्तेजना होगी।” उन्होंने बताया कि आंदोलन का स्थानीय नाम “मार्च गोपालगंज” कर दिया गया था और आशंका थी कि बंगबंधु के समाधि स्थल के आस–पास अवमाननापूर्ण हरकतें हो सकती हैं, जिससे स्थानीय ‘रक्षा–प्रवृत्ति’ सक्रिय हो गई।
पतवारी ने कहा कि बांग्लादेश में कुछ क्षेत्र विशिष्ट दलों के गढ़ हैं—जैसे बोगुरा (बीएनपी), रंगपुर (जातीयो पार्टी) और गोपालगंज (आवामी लीग)—ऐसे क्षेत्रों में “अराजक” घटनाक्रम को भड़काना “राजनीतिक रूप से अविवेकपूर्ण” है। उन्होंने इसे “अनावश्यक, अतिरेक और असंगत” कदम बताया।
उन्होंने कहा कि इस घटनाक्रम से जुड़ी हिंसा में “कम से कम छह–सात लोगों की मौत” (कुछ स्रोतों के अनुसार इससे अधिक) की खबरें सामने आई हैं। पतवारी ने चेतावनी दी, “जब चुनाव निकट हों तो शांत सह–अस्तित्व की तैयारी आवश्यक है। इस तरह संघर्ष या ‘गृहयुद्ध जैसी’ स्थिति लोकतंत्र और समावेशी मतदान दोनों के लिए अत्यंत ख़तरनाक है।”
जातीयो पार्टी नेता ने आरोप लगाया कि उनकी पार्टी के केंद्रीय कार्यालय और कुछ स्थानीय दफ़्तरों को आग के हवाले व ध्वस्त किया गया तथा अध्यक्ष के रंगपुर स्थित निजी आवास को भी निशाना बनाया गया। उनके मुताबिक ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि “निष्पक्षता इस समय एक ‘यूटोपियन’ (आदर्शवादी) धारणा” बन चुकी है।
पतवारी ने दावा किया कि आवामी लीग की गतिविधियों पर “प्राथमिक, अस्थायी रूप से रोक” और उसके राजनीतिक पंजीकरण का निलंबन न्यायालयीन कार्यवाही के दौरान जारी है। उनके शब्दों में, “सरकार आवामी लीग के बिना चुनाव की ओर बढ़ रही है। कुछ दलों के लिए वातावरण अनुकूल बनाया जा रहा है, दूसरों के लिए प्रतिकूल—कोई लेवल प्लेइंग फील्ड नहीं बचा।”
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन “कुछ ‘रूलिंग’ झुकाव वाले दलों” के नेतृत्व में काम कर रहा है और एनसीपी के लोग “पूर्ण सरकारी व स्थानीय प्रशासनिक समर्थन” के साथ आगे बढ़ रहे हैं, जिससे अन्य दलों के साथ असमानता व शत्रुता का माहौल बन रहा है और “सरकार पर भरोसा कमज़ोर” हो रहा है। उनका कहना है कि जल्द ही कई दल यह मानने लगेंगे कि “मौजूदा ढाँचे में निष्पक्ष चुनाव संभव नहीं।”
शेख हसीना के भारत में रहने पर पूछे गए सवाल पर पतवारी ने कहा, “जीवन की रक्षा के लिए कोई भी व्यक्ति किसी भी देश में रह सकता है—इसमें अवैधता नहीं।”
उन्होंने कहा, “व्यवहारिक रूप से भारत हमारा एकमात्र पड़ोसी है। म्यांमार तो गृहयुद्धग्रस्त है। हमारे हज़ारों किलोमीटर सीमा, स्वास्थ्य, वस्तु आपूर्ति व आर्थिक निर्भरता के रिश्ते भारत से जुड़े हैं। यदि बांग्लादेश अस्थिर होगा तो ‘सेवन सिस्टर्स’ (भारत के पूर्वोत्तर राज्य) पर भी उसका तनाव पड़ेगा।”
उनके अनुसार हसीना सरकार के पतन के बाद कुछ समूहों ने “भारत विरोधी बयानबाज़ी” व “नक्शे संबंधी भड़काऊ दावे” किए, जिससे दोनों देशों के बीच अनावश्यक तनाव का वातावरण बना। उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर और भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री की हालिया टिप्पणियों व बैठकों का उल्लेख करते हुए कहा कि दोनों देशों को “गौरवपूर्ण व पारस्परिक सम्मान” पर आधारित संबंधों को आगे बढ़ाना चाहिए और 1971 के सहयोग को स्मरण रखना चाहिए।
अल्पसंख्यकों पर उत्पीड़न के आरोपों को लेकर उन्होंने माना कि “कुछ आरोप सत्य हो सकते हैं” और कहा कि सत्ता परिवर्तन के समय अल्पसंख्यक “असुरक्षा और भय” महसूस करते हैं क्योंकि “संस्थागत सुरक्षा ढाँचा पर्याप्त नहीं”—पुलिस भी “वर्तमान में प्रभावी ढंग से कार्यरत नहीं,” ऐसे में किसी भी गलत घटना पर “रक्षा तंत्र अनुपस्थित” है।