क्वेटा : पाकिस्तानी सेना के खिलाफ प्रदर्शन जारी, 11 लापता बलूचों की सुरक्षित रिहाई को लेकर एकजुट हुए

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 10-08-2022
 क्वेटा : पाकिस्तानी सेना के खिलाफ प्रदर्शन जारी, 11 लापता बलूचों की सुरक्षित रिहाई को लेकर एकजुट हुए बलूच संगठन
क्वेटा : पाकिस्तानी सेना के खिलाफ प्रदर्शन जारी, 11 लापता बलूचों की सुरक्षित रिहाई को लेकर एकजुट हुए बलूच संगठन

 

आवाज द वॉयस/ क्वेटा

बचूलिस्तान में पाकिस्तानी सेना की करतूतों के खिलाफ लोग इकट्ठे हो गए हैं. पिछले दो सप्ताह से लापता बलूचों के परिवार अपने प्रियजनों की सुरक्षित रिहाई की मांग को लेकर प्रांतीय राजधानी क्वेटा में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रदर्शन जियारत घटना के मद्देनजर शुरू हुआ है.
 
आरोप है कि पाकिस्तानी सुरक्षा बल ने कथित फर्जी मुठभेड़ के बहाने 11 बलूचों को गायब कर दिया है. परिवारों का कहना है कि घटना से पता चलता है कि उनके प्रियजनों का जीवन खतरे में है, और उनकी सुरक्षित रिहाई की मांग की जा रही है. 
 
इस मुद्दे पर क्वेटा में एक संगोष्ठी आयोजित की गई जिसमें राजनीतिक कार्यकर्ताओं और प्रमुख राजनेताओं ने भाग लिया. उन्होंने प्रदर्शनकारियों के प्रति
सहानुभूति व्यक्त की और उनकी मांग उठाई.
 
बीएनपी-मेंगल नेता हाजी लश्करी रायसानी, वीबीएमपी के अध्यक्ष मामा कदीर बलूच, प्रोफेसर मंजूर बलूच, ताहिर हबीब और अधिवक्ता इमरान बलूच सेमिनार में उपस्थित थे. इस दौरान जियारत घटना के पीड़ितों के परिवार भी मौजूद रहे. साथ ही अन्य बलूच लापता व्यक्तियों के परिवार भी इसमें शामिल हुए.
 
सभा को संबोधित करते हुए, कार्यकर्ता सम्मी दीन बलूच ने कहा कि जबरन गायब होने और बलूच लापता व्यक्तियों का मुद्दा एक व्यक्तिगत समस्या नहीं है, बल्कि एक राष्ट्रीय संकट है जिसका सामना पूरा बलूचिस्तान कर रहा है.
 
उन्होंने कहा कि संगोष्ठी में भाग लेने वाले मेहमानों ने लापता व्यक्तियों के परिवारों को दिखाया है कि वे इस लड़ाई में अकेले नहीं है. उनके पास उनके कारण को समझने और सहानुभूति रखने वाले लोग हैं.
 
कार्यकर्ता सीमा बलूच ने कहा कि कुछ सरकारी प्रतिनिधि लापता व्यक्तियों के परिवारों को झूठा आश्वासन और झूठी आशा देने के लिए विरोध प्रदर्शन पर गए हैं. उन्होंने कहा कि हमारे विरोध के वर्षों के दौरान, हमने अनगिनत झूठे वादे सुने हैं जिनका कोई नतीजा नहीं निकला.
 
उन्होंने कहा कि हमें सड़कों पर विरोध करने के लिए मजबूर किया जाता है. फिर सत्ता में बैठे लोग हमारे विरोध को समाप्त करने के लिए - उत्पीड़न सहित - सभी साधनों का उपयोग करते हैं. उन्हांेने कहा कि अगर हमारे प्रियजनों को सुरक्षित रिहा कर दिया गया तो हम विरोध नहीं करेंगे.
 
प्रोफेसर मंजूर बलूच ने कहा कि बलूच महिलाएं मायूसी और लाचारी की प्रतीक बन गई हैं, लेकिन उनका सालों का संघर्ष अभी तक खत्म नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि बलूच महिलाएं अन्याय और क्रूरता के सामने कभी चुप नहीं रही. उन्होंने जहां भी अपना सिर उठाया, उन्होंने अत्याचार को कुचल दिया है.
 
एचआरसीपी नेता ताहिर हबीब ने कहा कि दूसरे देशों की अदालतें अपने नागरिकों को न्याय प्रदान करती हैं. यहां की अदालतें लोगों को चुप कराती हैं. उन्होंने कहा कि न्यायिक निकाय का ऐसा शर्मनाक व्यवहार मानवीय शालीनता के हर सिद्धांत के खिलाफ है.
 
वक्ताओं ने स्वीकार किया कि बलूच राजनीतिक दलों को हाथ मिलाना चाहिए और बलूच लापता व्यक्तियों के मुद्दे को उठाना चाहिए. लापता व्यक्तियों के परिवारों ने अपने प्रियजनों की सुरक्षित रिहाई की मांग की और कहा कि जब तक लापता व्यक्ति घर नहीं लौटेंगे तब तक विरोध जारी रहेगा.
 
लापता व्यक्तियों के परिवारों ने विदेशों में अपने समर्थकों को आवाज उठाते हुए पाया है. बलूच और सिंधी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने लंदन में पाकिस्तानी उच्चायोग के सामने जियारत घटना के खिलाफ प्रदर्शन किया.
 
प्रदर्शनकारियों ने जियारत में 11 बलूच लापता लोगों की कथित फर्जी मुठभेड़ की निंदा की और क्वेटा में प्रदर्शनकारियों के साथ सहानुभूति व्यक्त की.
 
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि पाकिस्तानी सुरक्षा बल बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन और युद्ध अपराधों में शामिल हैं. उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी राज्य बलूच प्रतिरोध आंदोलन को बलपूर्वक कुचलने का इरादा रखता है, लेकिन इस रणनीति का उल्टा असर हुआ है.
 
यदि कुछ भी हो, तो बलूच कार्यकर्ता, विशेष रूप से महिलाएं ,अपने प्रियजनों के लिए आवाज उठाने के लिए आंदोलन में शामिल हो गई हैं. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को यह सबक सीखना चाहिए कि बलूचिस्तान में प्रतिरोध के बुदबुदाहट को बुझाना असंभव है.
 
वक्ताओं ने जियारत कांड के पीड़ितों के परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की और कहा कि इस संघर्ष में आप अकेले नहीं है.आपको हमारा बिना शर्त समर्थन है. उन्होंने अपील की कि लोकतांत्रिक दुनिया, विशेष रूप से अमेरिका और ब्रिटेन, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूह और संयुक्त राष्ट्र इस मुद्दे पर ध्यान दें और पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराएं.