पाकिस्तान में 80 फीसदी गैर-मुस्लिम कम वेतन पर काम करने को मजबूर: रिपोर्ट

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 25-05-2022
पाकिस्तान में 80 फीसदी गैर-मुस्लिम कम वेतन पर काम करने को मजबूर: रिपोर्ट
पाकिस्तान में 80 फीसदी गैर-मुस्लिम कम वेतन पर काम करने को मजबूर: रिपोर्ट

 

आवाज द वाॅयस /इस्लामाबाद
 
अल्पसंख्यकों के खिलाफ पाकिस्तान का भेदभाव रोजगार क्षेत्र में भी जारी है. यहां 80 प्रतिशत गैर-मुसलमान कम वेतन पर काम करने को मजबूर हैं. यही नहीं जो पद अल्पसंख्यकांे के लिए आरक्षित हैं उनमंे से भी आधे खाली हैं.
 
पाकिस्तान के प्रसिद्ध अखबार डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, यह डेटा यूरोपीय संघ (ईयू) के समर्थन से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनसीएचआर) द्वारा संकलित  किया गया है. यह रिपोर्ट गंभीर और खतरनाक काम करने की स्थिति, अपर्याप्त सुरक्षा, उपकरण, नौकरी की गायरंटी की कमी, घायलों और काम करने के दौरान मरने वालों के परिवारों को कम मुआवजे के भुगतान पर प्रकाश डालती है. 
 
इसमें सफाई कर्मियों की कहानियां भी हैं, जिन्हें सामाजिक बहिष्कार, कलंक, भेदभाव और घातक मैनहोल में मौत का सामना करना पड़ता है.स्थिति को सुधारने के लिए, आयोग ने कुछ सिफारिशें की हैं.
 
जैसे कि शारीरिक श्रम के बजाय मशीनों का उपयोग. जहां सफाई कर्मचारियों की मृत्यु या चोट का खतरा है वहां इसका इस्तेमाल किया जाए. उन्हें सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवा प्रदान की जाए.
 
रिपोर्ट के अनुसार, रोजगार कोटे में अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव समाप्त होना चाहिए और भेदभावपूर्ण विज्ञापन प्रकाशित करने और प्रत्येक मूल वेतनमान में भरे जाने वाले अल्पसंख्यक पदों की संख्या में सार्वजनिक पारदर्शिता सुनिश्चित करने की प्रथा पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.
 
मानवाधिकार मंत्री रियाज हुसैन पीरजादा ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनसीएचआर) द्वारा भेजे गए पत्र के आधार पर, मानव अधिकार मंत्रालय ने तत्काल कार्रवाई की और प्रत्येक प्रांत के मुख्य सचिवों को पत्र जारी किया, जिसमें उन्हें यह सुनिश्चित करने का निर्देश है कि अल्पसंख्यकों की रक्षा की जाए.
 
‘डॉन‘ की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान की गरीबी उन्मूलन और सामाजिक सुरक्षा मंत्री, शाजिया मारी ने संबंधित सरकारी विभागों को अल्पसंख्यकों के मामले में संवेदनशील बनाने पर जोर दिया, ताकि भेदभाव खत्म किया जा सके.
 
इस्लामाबाद उच्च न्यायालय (आईएचसी) के मुख्य न्यायाधीश अतहर मिनाल्लाह का कहना है कि इस मामले में अदालत के फैसले तब तक पर्याप्त नहीं होते जब तक कि सरकार, नागरिक समाज और मीडिया द्वारा सक्रिय भूमिका नहीं निभाई जाए.
 
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘‘कानून के शासन के दुरुपयोग के कारण मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है. संविधान के तहत, प्रत्येक नागरिक समान है. फिर भी, हमारे पास ‘साधारण नागरिक‘ शब्द का आमतौर पर इस्तेमाल किया जाता है.‘‘
 
उन्हांेने कहा,‘‘हर साल, पाकिस्तान के राष्ट्रपति संविधान के ‘नीति के सिद्धांतों‘ के कार्यान्वयन की स्थिति पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए बाध्य होते हैं जो यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को उनके मूल मानवाधिकार दिए जाएं. अफसोस की बात है कि यह संवैधानिक दायित्व कभी भी किसी के द्वारा पूरा नहीं किया गया है. 
डॉन के अनुसार, एनसीएचआर अध्यक्ष राबिया जावेरी आगा ने कहा कि एनसीएचआर के प्रयासों के परिणामस्वरूप, संघीय और प्रांतीय सरकारों ने न केवल भेदभावपूर्ण प्रथाओं के मुद्दे को देखने के लिए, बल्कि अल्पसंख्यक नागरिकों के लिए संवैधानिक सुरक्षा उपायों की पुष्टि करने और सख्ती से बनाए रखने के लिए प्रतिबद्धता जताई है.