भाग एक: पाकिस्तान के सिंध में अनुसूचित जाति के लोग रोजाना क्यों कर रहे हैं आत्महत्या ?
मलिक असगर हाशमी
सोशल मीडिया पर अल्पसंख्यकों विशेषकर हिंदुओं और ईसाईयों की आवाज बुलंद करने वाले प्लेट फार्म का अवलोकन करने से पता चलता है कि कमउत्र हिंदू, ईसाई लड़कियों का अपहरण, बलात्कार एवं कन्वर्जन के अभियान के बाद अब हिंदू बच्चों की जान पर आफत आई हुई है. उनमें खुदकुशी की प्रवृति निरंतर बढ़ रही है.
आत्महत्या की घटनाओं पर काम करने वाली वेबसाइट ‘वॉयसपीके डॉट नेट की एक रिपोर्ट ‘सुसायडल सिंधः वॉय आर सो मेनी फ्राम शेडयुल कास्ट किलिंग देमसेल्वस’ में बताया गया है कि पिछले कुछ वर्षों से सिंध में आत्महत्या के प्रयासों और मौतों की संख्या में वृद्धि की प्रवृत्ति देखी जा रही है.
यह संख्या बताती है कि आत्महत्या की सर्वाधिक घटनाएं पाकिस्तान के सिंध प्रांत के हिंदू समुदाय वह भी अनुसूचित जातियां में हो रही हैं. पड़ोसी पाकिस्तान में हिंदू समुदाय की यह जाति सामाजिक-आर्थिक मामले में सबसे निम्न स्तर पर है.
इनकी पाकिस्तान में दलित की हैसियत है. बहुसंख्यक मुसलमान और हिंदुओं की अगड़ी जातयों ने उन्हें ‘अछूत‘ करार देकर हाशिए पर धकेल दिया है.
आत्महत्या का आर्थिक संकट से संबंध
आत्महत्या किसी के लिए भी अच्छी नहीं. बार बार होने वाली ऐसी घटनाओं से समाज और परिवार का मनोबल टूटता है. इस लिए कोई नहीं चाहता कि उसके परिवार या समाज में ऐसी घटनाएं दोहराई जाएं.
पाकिस्तान की अनुसूचित जाति समुदाय के कुछ सदस्यों का दावा है कि उनके खिलाफ चल रहे षड़यंत्र के साथ सिंध प्रांत की अत्यंत संकटपूर्ण आर्थिक स्थिति भी खुदकुशी के लिए लोगों को प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से मजबूर कर रही है.
पाकिस्तान की आर्थिक दुर्दशा का सर्वाधिक दुष्प्रभाव सिंध प्रांत में देखा जाता है. हांकिला यहां यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण है कि छोटे बच्चों को आर्थिक संकट किस हद तक परेशान करते रहे होंगे कि वे खुद को समाप्त करने के लिए विवश हो जाएं ?
आंकड़ों में खुदकुशी
सिंध पुलिस द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चलता है कि 1 जनवरी 2014 से 30 जून 2019 के बीच 681 मुसलमानों और 606 हिंदुओं ने अपनी जीवन लीला समाप्त की है. हिंदुओं के अनुसूचित जनजाति के लोगों में यह प्रवृति अन्य धर्मावलम्बियों से ज्यादा है.
मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और पाकिस्तान अनुसूचित जातियों के समन्वयक एडवोकेट सरवन भील के अनुसार, इस अवधि के दौरान केवल अनुसूचित जातियों के बीच लगभग 590 आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए.
सिंध के हैदराबाद में कानून के छात्र अशफाक ने खुद को समाप्त कर लिया
भील का कहना है कि उन्होंने 14 फरवरी, 2022 को शोएब सुदले आयोग को एक आवेदन भेजा था, जिसे मूल रूप से पाकिस्तान के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश तसद्दुक हुसैन जिलानी द्वारा 2014 के फैसले के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित किया गया है.
इस फैसले का उद्देश्य देश में रहने वाले सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करना है और यह सितंबर 2013 में पेशावर चर्च विस्फोट के बाद आया है.सरवन भील का कहना है कि उन्होंने 11 नवंबर, 2021 को एक मामले की सुनवाई के दौरान यह मुद्दा उठाया था.
इसके बाद, सीजेपी, जो पीठ का नेतृत्व कर रहे थे, ने एक आदेश दिया.आदेश में कहा गया ,‘‘जैसा कि मामला अल्पसंख्यकों से संबंधित है, पाकिस्तान के अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल, सिंध के महाधिवक्ता और इस अदालत द्वारा नियुक्त वन मैन कमीशन क्रमशः उठाई गई शिकायत के बारे में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे और उचित सुझाव देंगे कि अनुसूचित जातियों की मांगों और समस्याओं का सौहार्दपूर्ण ढंग से समाधान कैसे किया जा सकता है?‘‘
सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरवन भील की शिकायत पर संज्ञान लेने के बाद, उसने अनुसूचित जाति के सदस्यों के बीच आत्महत्या के मामलों की जिलेवार डेटा रिपोर्ट का आदेश दिया. मुख्य सचिव सिंध और आईजी सिंध ने रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया कि 2015 से 2021 तक 300 पुरुषों और 290 महिलाओं ने आत्महत्या की है. आत्महत्या से मरने वालों की कुल संख्या 590 है.
जिला उमरकोट में, विभिन्न कारणों से 109 पुरुषों और 77 महिलाओं ने आत्महत्या की. मीठी जिले में 51 पुरुष और 70 महिलाएं, मीरपुरखास जिले में 26 पुरुष और 36 महिलाएं, बदीन जिले में 15 पुरुष और 22 महिलाएं,
जिला टंडो अल्लाह यार में 20 पुरुष और 15 महिलाएं,जिला मटियारी में 9 पुरुष और 12 महिलाएं और जिला हैदराबाद में तीन पुरुष और चार महिलाओं ने खुद को समाप्त कर लिया. अस्पतालों में लाए गए मामलों को छोड़कर आत्महत्या के प्रयासों की संख्या अभी भी ज्ञात नहीं है.
मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और पाकिस्तान अनुसूचित जातियों के समन्वयक एडवोकेट सरवन भील
स्थानीय समुदाय खुले तौर पर सरकार की कमजोर और अदूरदर्शी सामाजिक और आर्थिक नीतियों को दोषी ठहराते हैं, जिसके परिणामस्वरूप लोगों को इस कदर परेशानी आ रही है कि जीवन लीला समाप्त करने को मजबूर हैं.
सरवन भील कहते हैं, ‘‘दुख की बात है कि जो लोग लोकतंत्र की बात करते हैं, उन्होंने इस समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया. हम किस दौर से गुजर रहे हैं, कोई हमारी आर्थिक बदहाली पर विचार करने को तैयार नहीं.‘‘
अनुसूचित जाति के खिलाफ साजिश का सच
पाकिस्तान की अनुसूचित जाति के खिलाफ चल रहे षड़यंत्र की ओर इशारा करते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और पाकिस्तान अनुसूचित जातियों के समन्वयक एडवोकेट सरवन भील कहते हैं कि अनुसूचित जाति पहले से ही हाशिए पर पड़े हिंदू समुदाय का एक अत्यधिक हाशिए पर रहने वाला वर्ग है.
इस वजह से उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.वह कहते हैं,‘‘ये आत्महत्या के मामले बहुत सारे जिलों और क्षेत्रों से सामने आ रहे हैं, पर हर क्षेत्र के अपने मुद्दे हैं.‘’ वह बताते हैं कि इनमें सबसे बड़ी समस्या आर्थिक संकट हो सकती है, पर इसी बहाने हमें बर्बाद करने की भी साजिश चल रही है. सिंध में अभी भी सामंती व्यवस्था है.
हमने अंग्रेजों से आजादी पा ली, लेकिन इनके अत्याचारों से अब तक मुक्ति नहीं मिली है. सच तो यह है कि हम अभी भी इस तरह के अत्याचारों के तहत जीने को मजबूर हैं.‘‘
भील का कहना है कि स्थानीय वाडेरों के अधीन काम करने वाले किसान को उनका उचित मुआवजा नहीं दिया जाता. वे बंधुआ मजदूर के रूप में काम करते हैं. यहां तक कि अक्सर उन्हें पकड़ कर निजी जेलों के अंधेरे और यातना भरे कमरों में डाल दिया जाता है.
पाकिस्तान में कोई भूमि आंदोलन नहीं चला है. सिंध में ‘वडेरा शाही‘ चलती है.‘‘ वह कहते हैं, “इस प्रांत में बेरोजगारी दर सर्वाधिक है. हमारे मौलिक अधिकार हमें नहीं दिए जा रहे हैं. सिंध के लोगों को साफ पानी भी मयस्सर नहीं.
इस प्रांत के लोगों को प्रत्येक वर्ष अकाल के कारण भूखरी झेलनी पड़ती है. हमारी महिलाएं और बच्चे बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं. अगर राज्य कुछ देता है, तो सामंतों को इससे लाभ होता है. फिर वे हमारा शोषण- दमन करते हैं.‘‘
भील ने यह भी शिकायत की कि जनरल मुशर्रफ के संयुक्त वोट लाने से पहले वे अपने प्रतिनिधियों को नामित करने में सक्षम थे. उनका कहना है कि यह एक बेहतर सौदा था. आज नेशनल असेंबली में कोई प्रतिनिधि नहीं है जो अनुसूचित जातियों के लिए बोल सके.
एकः कहानी डॉक्टर के अत्याचार की
24 मई, 2022 को, नगरपारकर निवासी और पांच साल की मां, 35 वर्षीय जेनी मेघवार ने क्षेत्र के एक प्रभावशाली डॉक्टर द्वारा अपने परिवार पर आर्थिक और सामाजिक दबाव का सामना नहीं कर पान के कारण फांसी लगा ली थी.
डॉक्टर जेनी के पति को उस पर बकाया कर्ज (500,000 रुपये) वापस देने के लिए धमका रहा था. इस राशि का इस्तेमाल उसके पति ने जूते की दुकान स्थापित करने के लिए बतौर कर्ज ली थी, लेकिन लॉकडाउन के कारण दुकान बंद करनी पड़ी.
इसके बाद, उन्होंने कुछ ऋण वापस कर दिए, लेकिन 300,000 रुपये अभी भी बाया हैं. इसपर डॉक्टर ने उन्हें धमकाना शुरू किया. अपने प्रभाव का उपयोग करके 400 परिवारों के उसके गांव को जेनी और उसके पति का सामाजिक बहिष्कार करने को राजी कर लिया.
कोई उनसे बात नहीं करता था. जेनी के बच्चों को स्कूल में पढ़ाया नहीं जाता था. यहां तक कि स्थानीय सब्जी विक्रेता को भी प्रभावशाली डॉक्टर ने परिवार को कुछ नहीं बेचने को राजी कर लिया था. इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि जेनी के परिवार को भूखे मरने की नौबत आ गई. बच्चे अक्सर भूखे सो जाते थे.
जेनी के भाई सुरेश मेघवार कहते हैं, ‘‘डॉक्टर कहता था कि वह उसके बहन के पति को मार देगा. ‘‘उन्होंने बच्चों को उठाने भी धमकी दी थी. वह बताते हैं कि ऋण वापसी के बहाने डॉक्टर व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने लगा. ‘‘उन्होंने बताया कि यह तब शुरू हुआ जब डॉक्टर की बेटी और जेनी के साले एक साथ भाग गए थे. उन्होंने जेनी के घर की जलापूर्ति लाइन काट दी थी.
धीरे-धीरे जेनी पर डॉक्टर के अत्याचार का भय सवार हो गया और 24 मई को उसने तीन बेटियों और दो बेटों को पीछे छोड़ते हुए फांसी लगा ली.दुख की बात है कि जिन महिलाओं की जान चली गई उनमें से कुछ के पास उनके जीवित रहने के समय की कोई तस्वीर भी नहीं है.
एक सामाजिक कार्यकर्ता नारायण दास भील बताते हैं, ‘‘यहां की संस्कृति या माहौल ऐसा नहीं है कि महिलाओं की तस्वीरें खींची जाएं.‘‘ यहां तक कि अगर परिवारों के पास तस्वीरें हैं, तो वे उन्हें साझा करने को तैयार नहीं होते.‘‘
दो: किस्सा मायूसी में मौत को गले लगाने का
सिंध के प्रीतम महाराज भ्रमित और व्यथित महसूस कर रहे हैं. उन्होंने अपने भाई छोटे भाई रवि के लटकते शरीर को अपने हाथों से नीचे उतारा था. महाराज जाति से ताल्लुक रखने वाले और अमरकोट जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाले प्रीतम कहते हैं, ‘‘आखिरी बार मैंने उसे देखा कि वह चाय पी रहा है. फिर अपने कमरे में चला गया.‘‘
इस साल की शुरुआत में फांसी लगाकर खुदकुशी करने वाले रवि महाराज पहले व्यक्ति हैं.अगली सुबह जब रवि अपने कमरे से नहीं निकला तो प्रीतम अपने छोटे भाई को बाहर बुलाने चला गया. इस दौरान अपने भाई को रहस्यमय तरीक से पेड़ से लटका पाया.
यह नजारा देखते ही वह अंदर तक हिल गया. उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। वह चिल्लाते हुए पीछे हट गया.प्रीतम कहते हैं, ‘‘मैं आज भी सदमे और निराशा में हूं. मेरी 80 वर्षीय मां के साथ रवि की पत्नी और दो बच्चों की तुलना में यह कुछ भी नहीं है.‘‘
उसका भाई लंबे समय से बेरोजगार था. इससे पहले वह कराची की एक फैक्ट्री में काम करता था, पर नौकरी से निकाल दिया गया. तब से उसे कोई काम नहीं मिला.एक पारिवारिक मित्र, अनिल कहते हैं, ‘‘खर्च बहुत अधिक है और बेरोजगारी की दर बहुत ज्यादा. ‘‘हम अब हर समय चिंतित और दुखी रहते हैं.
हम में से कुछ इस तनाव का सामना नहीं कर सकते हैं.‘‘ प्रीतम और अनिल दोनों बताते हैं कि आत्महत्या के अधिकांश अन्य मामले भी तीव्र गरीबी के कारण हो रहे हैं. अनुसूचित जातियां गरीबों में भी सबसे गरीब हैं.
रवि अपने परिवार का इकलौता कमाने वाला था. मैं एक दर्जी का काम करता हूं. बड़े भाई कहते हैं कि वह इतना नहीं कमा पाता कि उसके परिवार का भरण पोषण कर सके.लेकिन हम उनके साथ खाना साझा करते हैं. मैं और क्या कर सकता हंू? मेरे पास देखभाल करने के लिए मेरा अपना परिवार है.‘‘
इस कारण, रवि की विधवा और उसकी दो बेटियों को दिन में एक बार भी मुश्किल से खाने को मिल पाता है.वैसे खुदकुशी के सभी मामले सीधे तौर पर गरीबी से प्रेरित नहीं हैं, लेकिन इसके लिए मजबूर करने वाले अन्य कारणों में आर्थिक दुर्दशा जरूर है. चिंताजनक यह है कि आत्महत्या की प्रवृत्ति पुरुष और महिला में समान रूप से देखा जा रही है.