पाकिस्तानः एक बार फिर कश्मीर पर दुष्प्रचार की कोशिश

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 03-06-2021
पाकिस्तान
पाकिस्तान

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली / इस्लामाबाद

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने से पाकिस्तान की ‘कश्मीर सियासत’ को इतना गहरा झटका लगा है कि अब तक इससे उबर नहीं पाया है. अपने इस ‘दर्द’ पर मरहम रखने के लिए मौका मिलते ही कश्मीर राग अलापना शुरू कर देता है.अलग बात है कि उसे हर जगह से निराशा ही हाथ लगती है.
 
अनुच्छेद 370 हटने के बाद से पाकिस्तान की लगातार यह कोशिश रही है कि इस मुददे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक से अधिक उठाया जाए. यह मसला यूनएनओ और इस्लामिक देशों के संगठन तक पहुंचा चुका है, पर अब तक उसे कोई खास सफता नहीं मिली है.
 
यहां तक कि मुस्लिम देश भी इस मुददे पर उसके साथ नहीं हैं. कश्मीर के मसले पर पाकिस्तान के विदेश मंत्री के अनर्गल बयान पर सउदी अरब तो ऐतराज भी जता चुका है. बावजूद इसके प्रधानमंत्री इमरान खान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं. अब उन्हांेने ताजिकिस्तान के साथ व्यापार, रक्षा, पर्यावरण प्रदूषण, शिक्षा, संस्कृति सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के मुददे पर हुए समझौते के क्रम में भी कश्मीर अलाप छेड़ दिया.
 
दोनों देशों में क्षेत्र के विकास, शांति और व्यापार के अवसरों पर चर्चा के दौरान इमरान खान ने  अफगानिस्तान में शांतिपूर्ण राजनीतिक समाधान को लेकर चल रहे प्रयासों में भारत का एंगल भी घुसेड़ने की कोशिश की. जब कि सबको पता है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज हटी तो पाकिस्तान और तालिबानी आतंकियों के पैर पसारने से भारत को भारी नुक्सान उठाना पड़ सकता है.
 
पाकिस्तान और ताजिकिस्तान के बीच समझौते के क्रम में संयुक्त रूप से पर्यावरण प्रदूषण और इस्लामोफोबिया के खिलाफ आवाज बुलंद पर चर्चा हुई. 
 
इसके साथ प्रधानमंत्री इमरान खान ने कश्मीर पर भी बात की. उन्होंने अपनी थोथी लदील से अनुच्छे 370 हटने से इलाके की शांति और विकास को खतरा बताने का प्रयास किया. दूसरी तरफ जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद से इलाके से विकास की अनेक योजनाओं पर अमल शुरू होने की खबरें आ रही हैं.
 
इमरान खान का कहना है कि अफगानिस्तान में शांति और क्षेत्र में भारत के रवैये पर पाकिस्तान, अपनी रणनीतिक स्थिति के मामले में, पूरे क्षेत्र को एकजुट करने की स्थिति में है, लेकिन यह तब तक नहीं होगा जब तक कि कब्जे वाले कश्मीर के प्रति भारत का रवैया नहीं बदलता. 
 
बुधवार को ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमोमाली रखमोन के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में इमरान खान ने कहा कि यह  संयोग है कि उनकी और ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति की जन्मतिथि एक है. ताजिकिस्तान भी ग्वादर का पूरा उपयोग कर सकता था.
 
संयुक्त बयान में कहा गया कि पाकिस्तान और ताजिकिस्तान को डर है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी के बाद स्थिति वैसी नहीं होगी जैसी रूस के जाने के बाद थी. उन्होंने कहा, ‘‘अगर अफगान समस्या का राजनीतिक समाधान नहीं मिला तो हम भी प्रभावित होंगे.‘‘
 
हमारे क्षेत्र के साथ व्यापार प्रभावित होगा और आतंकवाद बढ़ेगा. अफगानिस्तान से भागने वाले आतंकियों की संख्या भी बढ़ेगी. इसलिए, दोनों देश अफगानिस्तान में एक राजनीतिक सरकार चाहते हैं.  प्रधानमंत्री इमरान खान इस दौरान यह दोहराना नहीं भूले कि अनुच्छेद 370 की वापसी तक पाकिस्तान, भारत के साथ व्यापार संबंध स्थापित नहीं होंगे. वे कश्मीरियों के साथ विश्वासघात नहीं कर सकते. भारत का व्यवहार पूरे क्षेत्र के विकास को प्रभावित कर रहा है. 
 
अलग बात है कि पुलवामा में आतंकवादी हमले के बाद भारत ने ही पाकिस्तान से एक तरह से संबंध विच्छेद कर रखा है. हाल में उसकी ओर से व्यापार को शुरू करने की पहल की गई थी. इस मसले पर जब सरकार में दरार पड़ने लगी तो कश्मीर राग का सहारा लेकर पाकिस्तान भारत के साथ चीनी, कपास, सूत का व्यापार करने से पीछे हट गया. भारत बारबार दोहराता रहा है कि आतंकवादी गतिविधियां और शांति वार्ता एक साथ नहीं चल सकते.