मलिक असगर हाशमी /नई दिल्ली / इस्लामाबाद
प्रधानमंत्री इमरान खान से पाकिस्तान नहीं संभल रहा है. गल नीतियों और पड़ोसी देशों से दुश्मानी निभाने के चक्कर में देश की अर्थव्यवस्था गर्त में पहुंच गई.
पाकिस्तानी बेकारी, बेरोजगारी और भुखमरी से त्राहिमाम कर रहे हैं. दूसरी तरफ, भारत के लिए आतंकवादियों की फौज तैयार करने वाले पाकिस्तान पर ही दिनों दिन आतंकी अमले बढ़ते जा रहे हैं.
हद यह कि सरकार से बातचीत के बाद भी आतंकवादियों ने अपनी कारगुजारियां तर्क नहीं की हैं. अफगानिस्तान सरकार के पतन के बाद से इन हमलों में और तेजी आई है.
आंकड़ों पर यकीन करें तो पिछले एक वर्ष में पाकिस्तान में 42 प्रतिशत तक आतंकी हमले बढ़े हैं. यानी यह समझ लीजिए कि एक तरह से 50 प्रतिशत पाकिस्तान पर इमरान खान की नहीं आतंकवादियों की हुकूमत है.
रही सही कसर बलूचों ने पूरी कर दी है. अलग देश की मांग जोर पकड़ने से पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में हिंसक कार्रवाईयां बढ़ गई हैं.क्षेत्र में चरमपंथी, सशस्त्र समूहों और सुरक्षा स्थिति की निगरानी करने वाले एक थिंक टैंक पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ पीस स्टडीज के अनुसार, 2021 में पाकिस्तान में 207 आतंकवादी हमले हुए, जिनमें पांच आत्मघाती हमले शामिल थे. इन हमलों में 335 लोगों की जान गई थी.
साल 2020 में पाकिस्तान में हुए आतंकी हमलों की संख्या 146 थी. इन में 220 लोगों की मौत हुई थी.थिंक टैंक की रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में, हमलों में सेना, पुलिस और पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों के 177 कर्मी मारे गए और पिछले साल मारे गए नागरिकों की संख्या 126 थी.
2020 में, आतंकवादी हमलों में पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के 97 सदस्य मारे गए थे.रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले साल आत्मघाती हमलों और सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में 32 आतंकवादी मारे गए थे.
सुरक्षा एजेंसियों पर हमलों में प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, आईएसआईएस खुरासान आदि समूह शामिल थे.आतंकवादी हमलों में वृद्धि की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2021 में पाकिस्तान में सबसे ज्यादा आतंकी घटनाएं और मौतें अफगानिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान के सीमावर्ती प्रांतों में दर्ज की गईं.
पिछले साल खैबर पख्तूनख्वा में 111 आतंकवादी घटनाएं हुईं , जिनमें 169 लोग मारे गए. 122 घायल हुए थे. खैबर पख्तूनख्वा में सबसे ज्यादा 53 आतंकी हमले उत्तर और दक्षिण वजीरिस्तान के कबायली जिलों में हुए.
पाकिस्तान के इस प्रांत में पोलियो विरोधी टीमों या उनके सुरक्षाकर्मियों पर छह हमले किए गए.रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश हमलों में प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान , उसके अन्य सशस्त्र समूह और आईएस खुरासान शामिल थे.
ध्यान देने की बात यह है कि 15 अगस्त, 2021 को अफगानिस्तान में अशरफ गनी सरकार को उखाड़ फेंका गया और तालिबान ने देश पर कब्जा कर लिया.
अफगान तालिबान के नियंत्रण में आने के बाद, अफगानिस्तान में पाकिस्तानी सरकार द्वारा प्रतिबंधित टीटीपी के साथ शांति वार्ता की एक श्रृंखला शुरू की गई.
पाकिस्तानी सरकार और प्रतिबंधित टीटीपी ने 9 नवंबर, 2021 को अफगान तालिबान की मध्यस्थता से बातचीत के कारण एक महीने के युद्धविराम की घोषणा की.
ठीक एक महीने बाद, 9 दिसंबर को, प्रतिबंधित समूह ने युद्ध विराम की समाप्ति की घोषणा की और पाकिस्तानी सरकार पर वार्ता के दौरान किए गए अपने वादों को पूरा नहीं करने का आरोप लगाया.
पाकिस्तानी सरकार ने अभी तक मीडिया या संसद के साथ बातचीत का विवरण साझा नहीं किया है, लेकिन पिछले महीने पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री शेख रशीद ने स्पष्ट किया कि सरकार का प्रतिबंधित टीटीपी से कोई सीधा संपर्क नहीं है. ‘अप्रत्यक्ष संपर्क‘ बनाए रखा जाता है.
रिपोर्ट के अनुसार, बलूचिस्तान 2021 में पाकिस्तान का दूसरा सबसे अधिक प्रभावित प्रांत रहा.रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले साल बलूचिस्तान में 81 आतंकवादी हमलों में 136 लोग मारे गए, जिन्हें धार्मिक उग्रवादियों और बलूच राष्ट्रवादी संगठनों ने अंजाम दिया.
2021 में प्रांत में 81 आतंकवादी हमलों में से 71 प्रतिबंधित राष्ट्रवादी संगठनों जैसे बलूच लिबरेशन आर्मी, बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट, बलूच रिपब्लिकन आर्मी और बलूच रिपब्लिकन गार्ड्स द्वारा किए गए थे.
थिंक टैंक की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रवादी संगठनों के हमलों में 95 लोग मारे गए.इसके अलावा, पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत पंजाब में पांच आतंकवादी घटनाओं में 14 लोग मारे गए और सिंध में छह आतंकवादी घटनाओं में 13 लोग मारे गए.
खैबर पख्तूनख्वा में हुई आतंकी घटनाओं में प्रतिबंधित टीटीपी का हाथ नजर आ रहा है. प्रतिबंधित समूह द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, समूह ने 2021 में 282 हमले किए, जिसमें 509 लोग मारे गए.
प्रतिबंधित टीटीपी के आंकड़े स्वतंत्र रूप से सत्यापित नहीं किए जा सके. खैबर पख्तूनख्वा में सशस्त्र समूहों पर गहरी नजर रखने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार इफ्तिखार फिरदौस ने कहा, ‘‘हम अफगानिस्तान के संदर्भ में खैबर पख्तूनख्वा की स्थिति को देखते हैं.‘‘‘‘अफगान तालिबान के काबुल पर नियंत्रण करने से पहले प्रतिबंधित टीटीपी और पाकिस्तानी सरकार के बीच बातचीत जारी रही.‘‘
उनका कहना है कि 9 नवंबर से पहले हुए सभी आतंकी हमलों के पीछे टीटीपी का मकसद बातचीत से पहले अपनी स्थिति मजबूत करना हो सकता है.