पाकिस्तानः मस्जिद गिराने के आदेश पर कानून और धार्मिक नेतृत्व में झड़प शुरू

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 30-12-2021
पाकिस्तानः मस्जिद गिराने के आदेश पर कानून और धार्मिक नेतृत्व में झड़प शुरू
पाकिस्तानः मस्जिद गिराने के आदेश पर कानून और धार्मिक नेतृत्व में झड़प शुरू

 

कराची/इस्लामाबाद. पाकिस्तान में नया भूकंप आ गया है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कराची में तारिक रोड पर मदीना मस्जिद स्थल पर एक सप्ताह के भीतर पार्क को बहाल करने का आदेश दिया. हालात ऐसे हो गए हैं कि कानून और धर्म नेतृत्व एक दूसरे का सामना कर रहे हैं. अदालत के फैसले को अवैध घोषित कर दिया गया है. राजनीति भी शुरू हो गई है. एक नया टकराव शुरू हो गया है. धार्मिक संगठन काफी गुस्से में नजर आ रहे हैं. धार्मिक समूहों ने चेतावनी दी है कि अगर इस फैसले को लागू किया गया, तो देश में रक्तपात हो सकता है.

जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के नेता डॉ राशिद महमूद सूमरो का एक वीडियो संबोधन सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहा है, जिसमें वह इस फैसले का पुरजोर विरोध कर रहे हैं. इस्लामाबाद में लाल मस्जिद से जुड़ी शहीद फाउंडेशन ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अवैध बताते हुए खारिज कर दिया है. जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम का कहना है कि यह समस्या सिर्फ धार्मिक वर्ग की ही नहीं, बल्कि 22 करोड़ लोगों की भी है और अगर इस फैसले को लागू किया गया, तो देश में खून खौल जाएगा.

पार्टी परिषद के सदस्य मुहम्मद जलालुद्दीन एडवोकेट ने डीडब्ल्यू से कहा, ‘हम इस फैसले का कड़ा विरोध करेंगे. देश में पार्क पोर्नोग्राफी का अड्डा बन गए हैं. इन्हें बनाया जा रहा है और मस्जिदों को गिराने की बात हो रही है. गिराना है, तो इस्लामाबाद के बड़े-बड़े अवैध प्लाजा को गिराओ, जिन्हें फिर से स्थापित किया गया है. अगर मस्जिदों को गिराने की कोशिश की गई, तो पूरे देश में विरोध की आंधी चलेगी, जिसे कोई नहीं रोक पाएगा.’

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है?

मुख्य न्यायाधीश गुलजार अहमद की अध्यक्षता वाली कराची रजिस्ट्री में मस्जिद निर्माण से जुड़े एक मामले की सुनवाई हुई, जिसमें आयुक्त कराची इकबाल मेमन और प्रशासक कराची मुर्तजा वहाब और अन्य अधिकारी अदालत के समक्ष पेश हुए. मुख्य न्यायाधीश ने वहाब से पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया. इस ‘अवैध मस्जिद’ के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई? जिस पर वहाब ने जवाब दिया कि अगर कोर्ट आदेश देगा, तो कार्रवाई की जाएगी.

न्यायमूर्ति अहमद ने जवाब दिया, ‘मैं आपको (इस तरह का व्यवहार) देखकर हैरान हूं. यह आपका काम है. आप अभी भी हमारे (अदालत के) आदेश की प्रतीक्षा कर रहे हैं.’ उन्होंने टिप्पणी की कि ऐसी मस्जिदें ‘पूजा स्थल’ नहीं बल्कि ‘निवास’ हैं. उन्होंने आगे कहा कि बिजली और गैस के बिल नहीं भरे हैं और मामला अदालत के संज्ञान में लाया गया है. अवैध निर्माण हैं, जिन पर किसी को आपत्ति नहीं होगी.

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद कराची की मस्जिद पर नई जंग शुरू हो गई है, क्योंकि अब मस्जिद प्रशासन ने कहा है कि मस्जिद को गिरा दिया जाए.

किसकी पूंछ है?

जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ) ने कहा है कि वह कराची में तारिक रोड पर मदीना मस्जिद को किसी भी हाल में गिराने नहीं देंगे. जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम सिंध के महासचिव मौलाना राशिद महमूद सूमरो ने व्हाट्सएप पर एक वीडियो संदेश में कहा कि अगर किसी में हिम्मत है, तो वह मस्जिद को गिराए. अगर मस्जिद सुरक्षित नहीं होगी, तो आपका कार्यालय भी सुरक्षित नहीं रहेगा.

कोर्ट ने सरकार को पार्क का जीर्णोद्धार कर एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया.

जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के केंद्रीय नेता और कराची के केमारी जिले के अमीर कारी मुहम्मद उस्मान ने कहा है कि मदीना मस्जिद तारिक रोड का हर हाल में बचाव किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए.

काजी अमीन-उल-हक आजाद, सूचना सचिव, जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम, केमारी जिला, कराची द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, कारी मुहम्मद उस्मान, मौलाना मुहम्मद घियास के साथ, जेयूआई के प्रांतीय नाजिम -एफ व अन्य नेता बुधवार को मदीना मस्जिद पहुंचे. उपासना करने वालों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह मस्जिद पिछले 41 साल से स्थापित है.

बयान के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘जब अवैध जगहों पर बने भवनों को नियमित किया जा सकता है, तो मस्जिद क्यों नहीं. मोहल्ले के लोगों ने मदीना मस्जिद का निर्माण शुरू किया और जामिया उलूम-उल-इस्लामिया अल्लामा बनुरी टाउन में शामिल हो गए. सभी उपयोगिता बिलों आदि का भुगतान किया जाता है और हर साल एक पंजीकृत कंपनी द्वारा आय और व्यय विवरण का ऑडिट किया जाता है.

कारी मुहम्मद उस्मान ने कहा कि अगर पूरे देश में निजी संपत्तियों को नियमित किया जा रहा है, तो मस्जिदों में क्या समस्या है. कृपया इस देश को अराजकता की ओर न धकेलें.

इस्लामिक आइडियोलॉजिकल काउंसिल का बयान

इस्लामिक आइडियोलॉजिकल काउंसिल ने भी इस मुद्दे पर शोध शुरू कर दिया है. परिषद के अध्यक्ष डॉ कबिला अयाज ने कहा कि इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर बहुत शोर था. लोग सवाल भी भेज रहे हैं, इसलिए मैंने परिषद के अनुसंधान विभाग से इस मामले की जांच करने को कहा है. उन्होंने आगे कहा कि उनकी राय में, ‘इस फैसले को लागू करना बहुत मुश्किल होगा. इसका कड़ा विरोध होगा और धार्मिक संगठन इसका कड़ा विरोध करेंगे.’ डॉ. कबिला ने कहा कि कराची में जिस मस्जिद का जिक्र किया जा रहा है, राष्ट्रपति भी इसी मस्जिद में नमाज पढ़ते हैं. तो सवाल ये उठता है कि निर्माण की अनुमति किसने दी. बिजली और अन्य सुविधाएं किसने प्रदान की? तो आइए ऐसे ही सभी सवालों के बारे में बात करते हैं.