नई सुरक्षा नीति: पाकिस्तान का भारत के साथ शांति कायम करने पर जोर

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 18-01-2022
नई सुरक्षा नीति: पाकिस्तान का भारत के साथ शांति कायम करने पर जोर
नई सुरक्षा नीति: पाकिस्तान का भारत के साथ शांति कायम करने पर जोर

 

नई दिल्ली.  पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने 14 जनवरी को देश की पहली राष्ट्रीय सुरक्षा नीति (एनएसपी) का अनावरण किया, जो कथित तौर पर अपने नागरिकों की सुरक्षा पर केंद्रित है.


इसका उद्देश्य भारत के साथ संबंधों सहित 2022 और 2026 के बीच देश की सुरक्षा प्राथमिकताओं को परिभाषित करना है.

 

सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभाग द्वारा तैयार किया गया, एनएसपी का मूल 100-पृष्ठ का संस्करण (वर्जन) एक वगीर्कृत दस्तावेज (क्लासीफाइड डॉक्यूमेंट) बना हुआ है. लेकिन एक छोटा सार्वजनिक संस्करण - 62-पृष्ठ का दस्तावेज - मानव सुरक्षा, भू-अर्थशास्त्र, क्षेत्रीय संपर्क, समृद्धि, व्यापार और निवेश पर जोर देता है.

 

इसमें कई ऐसी चीजें शामिल हैं जो कि पाकिस्तानी प्रतिष्ठान की ओर से नई सोच का आभास देती हैं. तथ्य की बात की जाए तो, नीति मार्च 2021 में इस्लामाबाद सुरक्षा संवाद में सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा के भाषण का एक विस्तारित रूप प्रतीत होता है, जहां उन्होंने इसी तरह के विषयों पर अपने विचार प्रकट किए थे.

 

भारत के साथ शांति कायम करने पर एनएसपी का जोर विशेष महत्व रखता है. इसमें उल्लेख है कि पाकिस्तान, देश और विदेश में शांति की अपनी नीति के तहत, भारत के साथ अपने संबंधों को सुधारना चाहता है.

 

यह वास्तव में दोनों देशों के बीच शांति की वकालत करने वालों के कानों के लिए एक संगीत की तरह है, क्योंकि यह भू-राजनीति पर भू-अर्थशास्त्र को प्राथमिकता देने पर पाकिस्तान के बार-बार जोर देने के मद्देनजर आमने आया है.

 

हालांकि, भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा के ²ष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या भारत के साथ शांति की इच्छा रखने और भू-अर्थशास्त्र पर ध्यान केंद्रित करने की यह बयानबाजी पाकिस्तान की सोच में वास्तविक परिवर्तन का संकेत देती है या यह सिर्फ धोखे की कवायद है?

 

इस संबंध में, नीति कोई स्पष्ट रोडमैप या कदम नहीं देती है जिसे पाकिस्तान भारत के साथ शांति की अपनी कथित इच्छा को साकार करने के लिए आगे बढ़ाना चाहता है. शायद, इस्लामाबाद सोचता है कि उसकी शांति की अभिव्यक्ति एक कदम आगे बढ़कर नई दिल्ली के संबंध में कूटनीतिक तौर पर फायदा देगी.

 

लेकिन पिछली शांति पहलों (दोनों राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच नवीनतम दौर की बातचीत सहित) के कोई स्थायी परिणाम नहीं होने से, भारत का झुकाव स्वाभाविक रूप से होगा.

 

इसके अलावा, यह कहता है कि जम्मू-कश्मीर का एक न्यायसंगत और शांतिपूर्ण समाधान द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक मुख्य मुद्दा बना हुआ है. एनएसपी ने भारत पर पाकिस्तान के पूर्व की ओर संपर्क को रोकने के लिए प्रतिगामी ²ष्टिकोण अपनाने का भी आरोप लगाया है. जाहिर है, अगर पाकिस्तानी सत्ता अपने रुख को फिर से बदलना चाहती है, तो उसे भारत के बारे में इन गंभीर गलतफहमियों को दूर करना होगा.

 

भारत के साथ शांति को लेकर पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान कितना गंभीर है? इस बात का क्या प्रमाण है कि जमीनी स्तर पर चीजें बेहतर के लिए बदली हैं?

 

दुर्भाग्य से, इसमें ज्यादा बदलाव नजर तो नहीं आता है.

 

जम्मू और कश्मीर में, फरवरी 2021 के युद्धविराम समझौते के कुछ महीनों के बाद, पीओके स्थित आतंकवादी समूहों ने हाल ही में नियंत्रण रेखा के पार लॉन्च पैड पर इकट्ठा होकर घाटी में घुसपैठ करने का प्रयास करके अपनी गतिविधियों को तेज कर दिया है.

 

इसके अलावा, घाटी के भीतर द रेसिस्टेंस फ्रंट जैसे नव-निर्मित समूहों ने पाकिस्तानी सेना के सहयोग से कश्मीर के उग्रवाद के लिए एक स्थानीय चेहरा पेश करने और नागरिकों और धार्मिक अल्पसंख्यकों को लक्षित करके सुरक्षा स्थिति को बाधित करने की मांग की है.

 

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एनएसपी का दावा है कि भारत के तत्कालीन राज्य जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के कदम को इस क्षेत्र के लोगों द्वारा कथित तौर पर अस्वीकार कर दिया गया है.

 

पाकिस्तान के भीतर, लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) जैसे भारत विरोधी आतंकवादी समूहों ने अधिकारियों की कोई जवाबी कार्रवाई के बिना अपनी गहरी उपस्थिति बनाए रखी है.

 

यहां तक कि अमेरिकी विदेश विभाग ने भी अपनी वार्षिक कंट्री रिपोर्ट्स ऑन टेररिज्म में स्वीकार किया है कि जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर और लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर और 2008 के मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड साजिद मीर पाकिस्तान में खुलेआम काम कर रहा है. अगस्त 2021 में तालिबान द्वारा काबुल के अधिग्रहण के साथ, ये समूह अब अपनी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए तैयार हैं.

 

कथित तौर पर, मसूद अजहर ने कश्मीर घाटी में संचालन के लिए कथित मदद लेने के लिए मुल्ला अब्दुल गनी बरादर सहित तालिबान नेताओं से मुलाकात की थी.

 

ये घटनाक्रम आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के निरंतर दोहरेपन को दिखाते हैं.

 

इसके अलावा पाकिस्तानी सेना के भारत विरोधी रवैये में कोई बदलाव नहीं देखा गया है. इसलिए, भारत के साथ बेहतर संबंध बनाने के एनएसपी के दावे खोखले लगते हैं.

 

यदि पाकिस्तान भारत के साथ संबंध सुधारने को लेकर गंभीर नहीं है, तो इस पर एनएसपी के दृष्टिकोण की क्या व्याख्या है?

 

स्पष्ट रूप से, एनएसपी और इसकी सामग्री या कंटेंट को अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों के लिए तैयार किया गया है, ताकि यह आभास हो सके कि पाकिस्तान बदल रहा है. इसकी अर्थव्यवस्था घटते विदेशी मुद्रा भंडार, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के कारण लगातार नीचे की ओर जा रही है.