जानिए, इमरान खान अपनी घोषणाओं और वादों को पूरा करने में कितने रहे सफल ?

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
इमरान खान
इमरान खान

 

आवाज द वॉयस / इस्लामाबाद
 
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष इमरान खान ने बदलाव और भ्रष्टाचार के उन्मूलन के नारे पर 2018 का चुनाव जीता था. इस तरह दो-पक्षीय राजनीति के दशकों के बाद पाकिस्तान के इतिहास में एक तीसरी ताकत सत्ता में आई थी.
 
सत्ता में आने के बाद, पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने इन दोनों मामलों में कुछ प्रगति की, बावजूद इसके क्या वह पाकिस्तान में बदलाव लाने और भ्रष्टाचार को खत्म करने में सफल रहे? आइए, इसकी पड़ताल करते हैं.
 
18 अगस्त 2018 को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद, इमरान खान ने पुलिस, स्वास्थ्य, शिक्षा और शासन में सुधार के लिए 100 दिन की योजना दी थी. इन 100 दिनों के बाद, यह दावा किया गया कि योजना के अनुसार काम पूरा हो गया है, लेकिन व्यवहार में कोई बड़ा बदलाव नहीं देखा.
 
नीतियों में निरंतरता की कमी के लिए आलोचना किए जाने पर, प्रधानमंत्री को कहना पड़ा, ‘‘परिस्थितियों के अनुसार, जो व्यक्ति यू-टर्न नहीं लेता वह कभी भी सफल नेता नहीं होता.‘‘  बदलाव का आकर्षक नारा शब्द परिवर्तन इमरान खान की चुनावी राजनीति से इतना निकटता से जुड़ा था और उन्होंने अक्सर इसका उल्लेख किया कि उनके घटक और लोग आश्वस्त थे कि उनकी सरकार आते ही देश अचानक बदल जाएगा.
 
यही वजह थी कि उनके भरोसेमंद सहयोगी और मंत्रियों के बीच प्रदर्शन पुरस्कार पाने वाले पहले व्यक्ति मुराद सईद ने तो यहां तक ​​कह दिया था कि इमरान खान के सत्ता में आने के दूसरे दिन देश-विदेश में 200 अरब डॉलर खर्च किए जाएंगे.  हालांकि, ऐसा नहीं हुआ, लेकिन कुछ क्षेत्रों में कुछ बदलाव देखने को मिले हैं.
 
अपनी हालिया बैठकों में इमरान खान ने दावा किया कि साढ़े तीन साल में उनसे बेहतर किसी और सरकार ने प्रदर्शन नहीं किया. जब प्रदर्शन की बात आती है, तो वह एहसास कल्याण कार्यक्रम को श्रेय देते हैं. इसके तहत युवाओं को ऋण प्रदान किया गया. एक समान पाठ्यक्रम शुरू किया गया और स्वास्थ्य कार्ड के माध्यम से गरीबों को मुफ्त इलाज प्रदान करने की कोशिश की गई.
 
विशेषज्ञ कुछ खामियों के बावजूद स्वास्थ्य कार्ड योजना की सराहना करते हैं. आसान गृह ऋण और वसूली कार्यक्रम की भी काफी सराहना की जाती है.हालांकि, इमरान खान और उनकी सरकार ने पुलिस व्यवस्था और अन्य संस्थागत सुधारों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सफलता हासिल नहीं की.
 
इसी तरह भ्रष्टाचार के खात्मे में भी कोई खास बदलाव नहीं आया. इमरान खान ने हाल के एक इंटरव्यू में खुद स्वीकार किया कि वह इन मोर्चों पर ज्यादा कुछ नहीं कर सके जिसे उन्होंने अपने काम में बाधा, कमजोर सरकार और ब्लैकमेलिंग करार दिया.
 
सिस्टम में कितना आया बदलाव ?

परिवर्तन के नारे में सबसे बड़ा आकर्षण व्यवस्था का परिवर्तन है जिसमें आम आदमी की गरिमा को बढ़ाना, वैध अधिकार प्रदान करना और उसके सामने आने वाली समस्याओं को दूर करना शामिल है. इसके लिए, पुलिस, शिक्षा, स्वास्थ्य और राजस्व जैसे प्रमुख सरकारी विभागों में सुधारों की आवश्यकता है.
 
हालांकि, विशेषज्ञों के अनुसार, इमरान खान को जो व्यवस्था मिली और जो वह छोड़ रहे हैं, उसमें कोई खास अंतर नहीं है.यदि कोई परिवर्तन हुआ तो वह मंत्रिमंडल और अन्य विभागों में बार-बार होने वाले परिवर्तनों ने नीतियों की निरंतरता को कमजोर किया.
 
टीम निर्माण में विशेषज्ञ होने का दावा करने वाले इमरान खान ने अगस्त 2018 में सरकार संभालने के बाद से छह बार से अधिक बार अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया.
 आधे से अधिक कैबिनेट मंत्रियों के क्षेत्र में कम से कम एक बार बदलाव हुआ है.
 
संस्थागत सुधार के लिए प्रधानमंत्री ने एसबीपी के पूर्व गवर्नर डॉ इशरत हुसैन को अपना सलाहकार नियुक्त किया, जिन्होंने पिछले साल इस्तीफा दे दिया.उनके अनुसार, संस्थागत सुधारों के लिए 10 से 12 साल की आवश्यकता होती है.
 
 इशरत हुसैन के मुताबिक, उनके कार्यकाल में संघीय सरकार की सहायक कंपनियों की संख्या 441 से घटकर 307 हो गई है. इसी तरह सरकारी एजेंसियों के प्रमुखों की नियुक्ति की प्रक्रिया में भी बदलाव किया गया.
 
सुधारों के परिणामस्वरूप, अब संघीय मंत्रालयों में ई-ऑफिस का उपयोग किया जा रहा है.उन्होंने कहा कि पीआईए समेत विभिन्न संस्थानों का पुनर्गठन किया गया है.लेकिन आलोचकों का कहना है कि सुधारों में ज्यादा बदलाव नहीं आया है. पुलिस विभाग से लोगों की शिकायतें दूर नहीं हुई हैं. अकेले पंजाब प्रांत में साढ़े तीन साल में सात आईजी बदले हैं लेकिन पुलिस का रवैया नहीं बदला.
 
इसी तरह पंजाब में भी पांच मुख्य सचिवों को बदला गया लेकिन नौकरशाही नहीं सुधरी.दूसरी ओर, पीआईए अभी भी घाटे में है जबकि स्टील मिल को बिक्री के लिए रखा गया है.
 
भ्रष्टाचार खत्म करने पर बयान
 
बदलाव के बाद इमरान खान के भाषणों और घोषणापत्र में जो शब्द सबसे ज्यादा सामने आया वह था भ्रष्टाचार. उन्होंने पनामा मामले में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की अक्षमता को उनके बयानबाजी की जीत करार दिया और सत्ता में आने और देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करने का वादा किया.
 
इमरान खान ने हमेशा कहा है कि अगर उनकी सरकार चली जाती है तो भी वह जवाबदेही से समझौता नहीं करेंगे.इसी सिलसिले में उन्होंने सत्ता में आकर कुछ कदम उठाए.
 
विपक्ष की जवाबदेही
 
जानकारों के मुताबिक जवाबदेही प्रक्रिया का पूरा जोर विपक्षी राजनीतिक नेताओं पर था, जिसने न सिर्फ इस प्रक्रिया को विवादास्पद बना दिया बल्कि उनकी बयानबाजी को भी नुकसान पहुंचाया.
 
सत्ता में आते ही उन्होंने विपक्षी नेता शाहबाज शरीफ के खिलाफ एक अभियान शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें जेल में डाल दिया गया.इसके अलावा, उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी, पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और पूर्व राष्ट्रपति सहित कई विपक्षी नेताओं को जेल भेज दिया. गृह मंत्री अहसान इकबाल जेल गए. हालांकि, उनके खिलाफ मामले साबित नहीं होने के कारण वे सभी जेलों से बाहर आ गए.
 
पूर्व डीजी एफआई बशीर मेमन ने यह भी आरोप लगाया है कि उन्हें प्रधानमंत्री के राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ अनुचित मामले बनाने के लिए कहा गया. उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो उन्हें जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई.इसी तरह सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों ने भी जवाबदेही प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाया है.
 
इस साल की शुरुआत में, गृह मामलों और जवाबदेही पर प्रधानमंत्री के एक शक्तिशाली सलाहकार शहजाद अकबर ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन स्थानीय मीडिया ने बताया कि प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने प्रदर्शन से खुश नहीं थे.
 
रिपोर्ट्स के मुताबिक, शहजाद अकबर चोरी के पैसे की बरामदगी और कथित मनी लॉन्ड्रिंग के लिए शरीफ परिवार और जरदारी परिवार को जिम्मेदार ठहराने के लिए जस्टिस काजी फैज इस्सा के खिलाफ मामला दर्ज करने से लेकर हर मामले में तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचने में नाकाम रहे.
 
एक ही समय में तीन पदों पर आसीन रहे शहजाद अकबर को पूर्व प्रधानमंत्री की कैबिनेट के सबसे शक्तिशाली सदस्यों में से एक माना जाता था.सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री ने उन्हें लूटे गए धन को वापस लाने और भ्रष्ट नेताओं को दंडित करने की जिम्मेदारी दी थी. हालांकि, लूटा गया धन बरामद नहीं किया जा सका और किसी भी कथित भ्रष्ट राजनेता को दंडित नहीं किया जा सका.
 
सत्ता में आने के एक महीने के भीतर, पीटीआई सरकार ने भ्रष्टाचार के माध्यम से विदेशों से भेजे गए सभी धन  वापस लाने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया.टास्क फोर्स का नेतृत्व शहजाद अकबर कर रहे थे और उसे पाकिस्तान से कथित तौर पर लूटे गए  200 बिलियन की वसूली का काम सौंपा गया था.
 
हालांकि, तीन साल से अधिक समय के बाद, न तो शहजाद अकबर की अध्यक्षता वाली एसेट रिकवरी यूनिट (एआरयू) और न ही कोई अन्य सरकारी एजेंसी धन वापस करने में सक्षम रही.
मनी लॉन्ड्रिंग मामले में शहजाद अकबर की जवाबदेही टीम किसी भी आरोपी को सजा दिलाने में नाकाम रही.
 
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल रिपोर्ट
 
भ्रष्टाचार पर वैश्विक निगरानी रखने वाले ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार, पाकिस्तान में भ्रष्टाचार बढ़ा है.इस साल की शुरुआत में, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने 180 देशों का भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में 16 स्थान ऊपर आ गया है.
 
रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान की रैंकिंग तीन अंक गिरकर 124 से 140 पर आ गई है.यह पिछले 11 साल में पाकिस्तान की सबसे खराब रैंकिंग रही है.हालांकि, कल रात रिपोर्ट जारी होने के बाद, राजनीतिक मामलों के प्रधानमंत्री के विशेष सहायक शाहबाज गिल ने ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की आलोचना की और कहा कि इसे शरीफ परिवार की रिपोर्ट के रूप में माना जाना चाहिए.