काबुल. अफगानिस्तान में राजनीतिक और सैन्य स्थिति बिगड़ रही है. तालिबान के इस कदम से देश के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं. चाहे वह महिला अधिकार हो या सामाजिक स्वतंत्रता. हर मुद्दे पर सवालिया निशान है. अब काबुल में महिलाएं तालिबानी खौफ से खासी परेशान हैं. देश की राजधानी में गरीबी और बदहाली की बाढ़ आ गई है.
दरअसल, काबुल को आज भी देश का सबसे सुरक्षित शहर माना जाता है. जिसके कारण यह देश में रहने वाली सभी राष्ट्रीयताओं का गढ़ भी है. देश में जब भी हालात बिगड़ते हैं, तो कहीं न कहीं काबुल पर दबाव बढ़ जाता है.
पिछले बीस वर्षों में चीजें काफी हद तक सामान्य हो गई हैं, जिसमें काबुल सभी गतिविधियों का केंद्र रहा है.
अब अचानक अमेरिका की वापसी की खबर ने शहर को घेर लिया है, जिससे लोगों की चिंता बढ़ गई है कि क्या तालिबान काबुल पहुंच सकता है.
काबुल शहर को पहले कभी ऐसी दिक्कत का खास सामना नहीं करना पड़ा. लेकिन युद्ध, आतंकवाद, लक्षित हत्याएं, राज्याभिषेक और अब तालिबान के प्रति लोगों का डर दिन-ब-दिन फिर से बढ़ता जा रहा है.
महिलाओं की स्थिति
जब तालिबान की बात आती है, तो सबसे पहले महिलाओं का मसला सामने आता है. महिलाओं की आजादी और अधिकार सवालों के घेरे में हैं. इसलिए आज भी महिलाएं सबसे ज्यादा डर से प्रभावित हैं.
कथनी-करनी में अंतरर
एक तरफ तालिबान ने वादा किया है कि अगर सरकार बनती है, तो महिलाओं के प्रति कोई नरमी नहीं बरती जाएगी, लेकिन दूसरी तरफ हकीकत यह है कि तालिबान ने अपने आसपास के सभी इलाकों में वही पुराना कानून लागू करना शुरू कर दिया है.
उन्होंने पुरुषों दाढ़ी रखने और महिलाओं के बुर्का पहनने के संकेत दिए हैं. काबुल की महिलाओं की मनोदशा और समस्याएं उनके आसपास की महिलाओं से बहुत अलग हैं.
जाएं तो जाएं कहां
अब समस्या यह है कि महिलाएं कहां जाएं. वह दरबदर के ठोकर खाकर परेशान हो जाती हैं. तालिबान के दौर में इन महिलाओं को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा और अब उनके लिए फिर से पलायन के बारे में सोचना असंभव है.
वर्तमान में काबुल में अनगिनत महिलाएं आत्मनिर्भर हैं. ऐसे में उनके लिए तालिबान का खौफ परेशान कर रहा है. राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार के आने से देश पहले जैसा समृद्ध नहीं रहा.
जिंदगी बदल गई है
पिछले दो दशकों ने महिलाओं के जीवन को बदल दिया है. महिलाएं अब घरों तक ही सीमित नहीं हैं. अनगिनत महिलाओं ने अपने स्वयं के गैर सरकारी संगठन खोले हैं, अपने ब्रांड और बुटीक शुरू किए हैं. सौंदर्य प्रसाधन सड़कों पर खुल गए. अचार, जैम, सॉस बनाया और बेचा जाता है.
महिलाएं छोटे कालीन बुनाई, केसर, रेशम और साबुन कारखानों की मालिक भी बन गईं और सूखे मेवों के कारोबार में शामिल हो गईं.
इस दौरान कई महिलाओं ने पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया और राजनीतिक गतिविधियों में तेजी से शामिल हो गईं. विदेशी सहायता और राष्ट्रीय संरक्षण के परिणामस्वरूप, महिलाओं का खोया हुआ आत्मविश्वास बहाल हुआ. उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ और उसने अच्छे कपड़े पहनना और अच्छा खाना शुरू कर दिया.
महिलाओं ने अपने होटल और रेस्टोरेंट भी खोले. एक एनजीओ में काम करने वाली महिला फरनाज ने बताया कि हामिद करजई के दिनों में, “मैं अपने पैर जमीन पर मारा करती थी और डॉलर निकल आते थे और अब अगर मैं दोनों हाथों से कुआँ खोदूँ, तो पैसे का कोई निशान नहीं मिलता.”
प्रायोजक और निवेशक अब किनारे पर हैं. पिछली सभी परियोजनाएं ठप पड़ी हैं, जबकि नई को मंजूरी नहीं दी जा रही है.
इसी तरह, वाणिज्य मंत्रालय से जुड़ी एक महिला, जो अपना खुद का बुटीक भी चलाती है, ने कहा कि वह वित्तीय समस्याओं से पीड़ित है, जबकि प्रायोजक और दानदाता उसकी मदद करने के लिए तैयार नहीं थे.
महिलाओं में बढ़ रही बेरोजगारी
वर्तमान में महिलाओं में बेरोजगारी दर भी बढ़ रही है. अब महिलाओं का महंगे कपड़े पहनने का चलन भी गायब हो रहा है. ग्राहक कहते हैं कि वे रोटी या कपड़ा खरीदते हैं?
जैसे-जैसे काबुल में गरीबी दर बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे भिखारियों की संख्या में भी पहले से कहीं अधिक महिलाओं की संख्या बढ़ रही है.