तालिबान से भी बड़ा खतरा इस्लामिक स्टेट-खुरासान

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 27-08-2021
तालिबान से भी अधिक बड़ा खतरा है इस्लामिक स्टटे- खुरासान
तालिबान से भी अधिक बड़ा खतरा है इस्लामिक स्टटे- खुरासान

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

अफगानिस्तान के काबुल एयरपोर्ट पर धमाके में 103 लोगों के मारे जाने की खबर है जिनमें 13 अमेरिकी सैनिक भी मारे गए हैं और 15 सैनिक घायल हैं. इस हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट खुरासान (आइएस-के) ने ली है.

आइएसआइएस की आतंकी गतिविधियों की जानकारी तो लोगों को मिलती रही है लेकिन आइएस-के क्या है, इसे लेकर ज्यादा बात नहीं हुई. असल में, खुरासान एक ऐतिहासिक जगह रही है और मध्य काल में इसका इलाका जहां था, उसे आज के ईरान, मध्य एशिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के कुछ हिस्से के रूप में नक्शे पर देखा जा सकता है.

इस्लामिक स्टेट ने 2015 में (कई रिपोर्ट्स में 2014) में अपनी एक शाखा स्वतंत्र रूप से इस इलाके में स्थापित की थी और इस्लामिक स्टेट ने 2015 में खुरासान क्षेत्र में अपने विस्तार की घोषणा की थी.

विश्वेषकों और सरकारी अधिकारियों को इस समूह की गतिविधियों के बारे में संदेह रहा है लेकिन इस समूह ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान में 100 से अधिक हमले नागरिकों पर अंजाम दिए हैं. इसके साथ ही, जनवरी 2017 के बाद से अमेरिकी, अफगान और पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के साथ इसकी 250 से अधिक झड़पें हुईं. हालांकि, अभी तक अमेरिकी मुख्यभूमि पर आइएस-के ने सीधा हमला नहीं किया है लेकिन यह दक्षिण और मध्य एशिया में अमेरिका  और इसके सहयोगियों के लिए बड़े खतरे के तौर पर उभरा है.

साल 2014 में, पाकिस्तानी नागरिक हाफिज सईद खान को आइएस-के के पहले अमीर के तौर पर इसके अगुआई के लिए चुना गया था. सईद तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का कमांडर था और उसके साथ अन्य टीटीपी सदस्य भी इस आतंकी संगठन में लाए गए—इसमें समूह के प्रवक्ता शेख मकबूल और कई इलाकाई सरदार शामिल थे. शुरुआती दौर में सईद ने अक्तूबर, 2014 में अल बगदादी के साथ काम करने का रास्ता चुना. इनमें से कई लोगों को पहली खुरासान शूरा या प्रतिनिधि परिषद में भी रखा गया.

खुरासान

आइएस-के शुरुआती सदस्या में पाकिस्तानी आतंकवादियों के समूह शामिल हुए थे जो अफगानिस्तान नंगरहार प्रांत में 2010 में उभरे थे. यह इलाका पाकिस्तान के संघ प्रशासित कबीलाई इलाके (फेडरली एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरियाज- एफएटीए) का इलाका है. इनमें से कई आतंकवादी टीटीपी और लश्कर-ए-इस्लाम के भाड़े के सदस्य थे, जो सुरक्षा बलों से मिल रही चुनौती की वजह से पाकिस्तान से भाग निकले थे. सईद की आइएस-के के पहले अमीर के तौर पर नियुक्ति और तालिबान के पूर्व कमांडर अब्दुल रऊफ खादिम के उसके नायब (डिप्टी) बनाए जाने के बाद इस समूह की काफी बढ़ोतरी हुई, क्योंकि सईद का आतंकवादियों की नियुक्त करने का नेटवर्क अफगानिस्तान और पाकिस्तान में काफी बड़ा था.

2017 तक, वेस्ट पॉइन्ट के कॉम्बैटिंग टेररिज्म सेंटर के मुताबिक, लश्कर-ए-तैबा, जमात-उद-दावा, हक्कानी नेटवर्क और इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान (आइएमयू) के कुछ सदस्य भी आइएस-के में शामिल हो गए थे.

आइएस-के को अपनी 2015 में स्थापना के बाद से इस्लामिक स्टेट के मुख्य नेतृत्व, जो इराक और सीरिया में है, से लगातार समर्थन हासिल होता रहा. जैसे-जैसे इस्लामिक स्टेट अपनी जमीन खोता गया इसने अफगानिस्तान को अपने वैश्विक खिलाफत (खलीफाई) के लिए आधार शिविर के तौर पर बदलना शुरू कर दिया. आइएस-के का आधिकारिक मकसद इस्लामिक स्टेट के वैश्विक उम्मा में है, इस्लामिक स्टेट के इराक और सीरिया के विलायतों (प्रांत) ने इस मूवमेंट के मध्य एशिया में विस्तार के कदम का स्वागत किया था. आइएस ने खुरासान प्रांत में अपने वित्तीय मदद भी झोंक दी—और यह राशि करोड़ो डॉलर के रूप में थी—ताकि मध्य एशिया में अपने नेटवर्क और संगठन को मजबूत कर सके.

आइएस- खुरासान

आइएस- खुरासान के आतंकवादी (फोटोः ट्विटर)

अफगानिस्तान इस इलाके के आतंकवादियों की पनाहगाह बना हुआ है. आइएस-के को सारी ताकत इन्हीं से हासिल होती है. पुष्ट खबरें हैं कि अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में अबू उमर अल-शिशानी के ट्रेनिंग कैंप में आइएस-के के आतंकियों को ट्रेनिंग दी गई थी.

आइएस-के का संस्थापक अमीर हाफिज सईद खान अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत में 26 जुलाई, 2016 को अमेरिकी हवाई हमले में मारा गया. खान के ढेर होने के बाद, आइएस-के के एक के बाद एक तीन अमीर बने, और इनको अमेरिकी फौज ने एक एक करके लक्षित हमलों के जरिए मार गिराया. अप्रैल 2017 में अब्दुल हसीब मार गिराया गया, अबू सैयद 11 जुलाई 2017 को सबसे हाल में अबू साद ओरकज़ई 25 अगस्त 2018 को ढेर कर दिया गया. इन लड़ाकों को आइएस-के में शामिल होने से पहले स्थानीय आतंकवादी कारस्तानियों का, जो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उज्बेकिस्तान में सक्रिय थे, का अनुभव हासिल था.

आइएस-के के विस्तारित रणनीतियों में स्थानीय ही नहीं वैश्विक स्तर के मकसद छिपे हैं. 2015 में जारी एक वीडियो सीरीज में, आइएस-के के मीडिया ऑफिस ने साफ कर दिया कि, “इसमें कोई शक नहीं कि अल्लाह ने हमें खुरासान में बहुत पहले ही जेहाद बख्शा है, और अल्लाह की दुआ से हम खुरासान में आने वाली हर ताकत से मुकाबला करते रहे हैं. यह सब शरिया स्थापित करने के लिए है.”

आइएस-खुरासान का पहला मुखिया

आइएस-खुरासान का पहला मुखिया हाफिज सईद खान, (बीच में) जो पहले पाकिस्तानी तालिबान का कमांडर था और जो 2016 में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया

इसमें आगे कहा गया था, “यह समझ लें कि इस्लामी खिलाफत (खलीफा से जुड़ा) सिर्फ किसी खास देश तक सीमित नहीं है. ये नौजवान हर काफिर के खिलाफ लड़ेंगे चाहे वह पश्चिम, पूर्व, दक्षिण या उत्तर हो.”

इराक और सीरिया में मौजूद इस्लामिक स्टेट के नेतृत्व की ही तरह, आइएस-के दक्षिण और मध्य एशिया में खिलाफत (खलीफाई राज्य व्यवस्था) की स्थापना करना चाहता है जो शरिया के कानूनों से चलेगा और जो पहले इस पूरे इलाके के मुस्लिमों तक और फिर पूरी दुनिया में कायम होगा. आइएस-के के लिए अंतरराष्ट्रीय सरहदें बेमानी हैं और इसका दायरा अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे देशों की सीमाओं से परे हैं.

यही नहीं, इसकी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं में, “अल-उक़ाब का परचम जेरूसलेम और व्हाइट हाउस तक फहराने की”है. इसमें इज्राएल और अमेरिका दोनों को हराने का भाव शामिल है. आइएस-के की विचार धारा अपने इलाके को विदेशी ‘क्रूसेडरों’(जिहादियों) से छुटकारा पाने की है जो मुस्लिमों को ‘फुसलाते’हैं और उन लोगों को दंडित करने की हैं जिन्होंने धर्म छोड़ दिया है जिसमें सुन्नी अफगान नेशनल आर्मी के फौजियों से लेकर हजारा शिया तक शामिल हैं. हालांकि इस बात के सुबूत नहीं है कि इस्लामिक खुरासान ने अमेरिकी की मुख्य भूमि के खिलाफ कोई साजिश अभी अमल में लाई हो, लेकिन इसने अपने आधिकारिक मीडिया चैनलों पर अमेरिका की खिल्ली उड़ाई है और पश्चिम में अकेले दम हमलों का आह्वान किया है.

आइएस-के अपनी वैश्विक रणनीति को विभिन्न परिस्थितियों में स्थानीयता के हिसाब से तैयार करता है. मसलन, कश्मीर में, इसकी रणनीति अलग है. इसे यह समूह अपनी रणनीति के लिहाज से मुफीद मान रहा है. अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आइएस-के की रणनीति सत्ता में बैठी सरकार को हटाने की रही है और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में आम लोगों की आस्था कम करने की है. उसका मकसद, राष्ट्रों में अस्थिरता पैदा करना है. हाल ही में, 2018 में अफगानिस्तान में संसदीय चुनावों में, आइएस-के ने नंगरहार प्रांत में नागरिकों को धमकाया था, “हम प्रांत के मुसलमानों को चुनाव केंद्रों के पास जाने से सावधान करते हैं, और हमारी सिफारिश है कि वे उनसे दूर रहें ताकि उनकी जान की रक्षा हो सके, क्योंकि ये हमारे निशाने पर हैं.”

आइएस-के ने बहुलतावाद की प्रक्रिया को रोकने और उसमें बाधा पहुंचाने की अपनी चेतावनी के बाद अफगान संसदीय चुनाव के दौरान मतदान केंद्रों और सुरक्षा बलों पर कई सारे हमलों का दावा किया.

ऑपरेशन और रणनीति

सीएसआइएस की सलाफी-जिहादी समूहों पर ट्रांस-नेशनल थ्रेट प्रोजेक्ट की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, आइएस-के के पास अक्तूबर 2018 में 600 से 800 के बीच आतंकवादियों की फौज थी. रिपोर्ट के मुताबिक, यह संख्या 2016 के उत्थान के मुताबिक थोड़ी कम थी जब इसके आतंकी लड़ाकों की संख्या 3000 से 4000 के बीच थी. लड़ाकों की संख्या में कमी के बावजूद, आइएस-के अपनी योजनाओं और अफगानिस्तान और पाकिस्तान में बड़े पैमाने के हमलों में जुटा रहा साथ ही इसने अपनी हिंसक विचाराधारा के बीज पश्चिम में भी भेजना जारी रखा. मिसाल के तौर पर, 2016 में जब इस्लामिक स्टेट ने ऑर्लेंडो, फ्लोरिडा और मैगननविले, फ्रांस में हमले किए तो आइएस-के ने इसकी तारीफ के वीडियो रिलीज किए थे.

2017 की जनवरी से आइएस-के ने अफगानिस्तान में नागरिकों पर 84 हमले किए और पाकिस्तान में 11 हमलों को अंजाम दिया.अफगानिस्तान में इसके हमलों में 15 प्रांतों में 819 नागरिक मारे गए.

अक्तूबर 2018 में अफगानिस्तान में संसदीय चुनावों के दौरान आइएस-के का पूरा ध्यान काबुल और मुख्य प्रांतीय राजधानियों पर केंद्रित रहा और ऐसा अंदेशा है कि आने वाले वक्त में भी ऐसा ही पैटर्न जारी रहेगा.

जनवरी 2017 के बाद से आइएस-के ने 338 नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया और मोटे तौर पर यह सरकारी संस्थानों और चुनावी संस्थानों पर हमले से हुआ. यानी, मकसद साफ है आइएस-के स्थानीय रणनीति अपनाता है और राज्य व्यवस्था को बेमानी बनाने के लक्ष्य की दिशा में काम करता है ताकि लोकतंत्र में लोगों की आस्था कमजोर हो जाए.

खुरासान में आतंकवादी समूहों का आपसी संघर्ष

आइएस-के के विस्तार ने उस इलाके में मौजूद और पहले से गतिविधियां संचालित कर रहे आतंकवादी समूहों में संघर्ष तेज हो गया. खासतौर पर अफगान तालिबान से इनका संघर्ष काफी तेज हो गया.

आर्म्ड कॉन्फ्लिक्ट लोकेशन ऐंड इवेंट डाटा प्रोजेक्ट (एसीएलईडी) ने जनवरी 2017 के बाद से,  आइएस-के और अफगान तालिबान के बीत 207 संघर्ष की घटनाएं दर्ज की गई हैं. संघर्ष की यह घटनाएं अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से 14 में घटीं. लेकिन अधिकतर घटनाएं, नंगरहार, जोवजान और कूनार प्रांतों में हुई. विभिन्न एजेंसियों का अनुमान है कि अब नंगरहार और कूनार प्रांतों में संघर्ष की घटनाएं बढ़ेंगी क्योंकि इनकी सरहद पाकिस्तान से लगती है और यही प्रांत आइएस-के की स्थापना के बाद से इसके ऑपरेशन के आधार बने हुए हैं. हालांकि, रिपोर्ट्स के मुताबिक, जोवज्जान प्रांत में हिंसा पूर्व तालिबान और आइएमयू कमांडर कारी हिकमतुल्लाह के छोड़ने से पैदा हुई हैं, जो 2016 में आइएस-के में शामिल हो गया. जोवज्जान में हिकमतुल्लाह के नेटवर्क ने इस प्रांत में मार्च 2018 के बाद से इस्लामिक स्टेट के विस्तार में मदद की है. लेकिन अमेरिकी हवाई हमले में हिकमतुल्लाह के अप्रैल 2018 में ढेर होने के बाद, तालिबान का वहां फिर से उभार हो गया.

हाल के महीनों में, इस प्रांत में तालिबान ने आइएस-के को कई बार यहां पर मात दी है.

अमेरिका के विदेश विभाग ने 14 जनवरी, 2016 को ही विदेशी आतंकवादी संगठन करार दिया था और अमेरिकी केंद्रीय कमांड ने इस समूह के खिलाफ 2016 से ही हवाई हमले करने शुरू कर दिए थे.

एसीएलईडी के एकत्र आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका और नाटो ने आइएस-के के खिलाफ हवाई हमलों की संख्या जनवरी 2017 के बाद से 300 बार से अधिक रही. हालांकि, अफगानिस्तान में इस समूह की मौजूदगी बढ़ रही है, लेकिन अमेरिकी हवाई हमले नंगरहाल और कूनार प्रांतों में ही हुए हैं. जनवरी 2017 से हवाई हमलों का 96 फीसद इन्हीं दो प्रांतों में हुआ है.

अब जबकि इस्लामिक स्टेट-खुरासान ने अपनी मौजदूगी काबुल एयरपोर्ट पर हमले के जरिए करके दर्ज करा दी है, तालिबान के लिए वहां शासन  

(इस रिपोर्ट में इस्तेमाल किए गए आंकड़े क्लेटन शार्ब के अध्ययन और सीएसआइएस आइडियाज लैब के आतंकवाद पर शोध से लिए गए हैं)