इंडोनेशियाः चीन की रेल परियोजना ने जकार्ता को कर्ज में धकेला

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 20-10-2021
इंडोनेशियाः चीन की रेल परियोजना ने जकार्ता को कर्ज में धकेला
इंडोनेशियाः चीन की रेल परियोजना ने जकार्ता को कर्ज में धकेला

 

जकार्ता. राजधानी जकार्ता में चीन की रेल परियोजना के कारण विश्व के सर्वाधिक मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया पर कर्ज का बोझ बढ़ गया है. चीन द्वारा वित्तपोषित जकार्ता-बांडुंग फास्ट-रेल परियोजना पर लागत में वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है. इंडोनेशिया की सरकार निर्माण और भूमि अधिग्रहण में देरी के कारण वित्तीय परेशानी में घिर गई है.

एशिया टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 143किलोमीटर की रेल लिंक परियोजना की लागत 6.07बिलियन अमरीकी डॉलर से बढ़कर 8बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक हो गई है, जिसकी समाप्ति तिथि अब 2022के अंत में निर्धारित की गई है, जो निर्धारित समय से दो साल पीछे है.

एडडाटा अनुसंधान की एक रिपोर्ट की सूचना है कि यह परियोजना 2015में शुरू की गई थी और यह चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का एक हिस्सा है, जिसने इंडोनेशिया और कई अन्य देशों को अक्सर अप्रतिबंधित ऋण के पहाड़ तले दबा दिया है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन ने आधिकारिक विकास सहायता (ओडीए) या अन्य आधिकारिक प्रवाह (ओओएफ) के रूप में 2000और 2017के बीच इंडोनेशिया को वित्तीय सहायता में 34.9बिलियन अमरीकी डालर से अधिक का भुगतान करने का वादा किया है.

एशिया टाइम्स के अनुसार शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि जकार्ता के पास चीन के लिए 4.95बिलियन अमरीकी डालर का संप्रभु ऋण है और 17.28बिलियन अमरीकी डालर है, जिसे वे ‘छिपा हुआ सार्वजनिक ऋण’ कहते हैं, जो राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों या अन्य सरकारी संस्थाओं द्वारा संप्रभु गारंटी के बिना किया गया है.

इसका मतलब यह भी है कि जकार्ता को बीजिंग का दिया गया 78फीसदी कर्ज सरकारी खातों से बाहर है.

इस बीच, पहले की रिपोर्टों ने यह भी सूचित किया है कि विभिन्न देशों पर चीन का कम से कम 385बिलियन अमरीकी डालर का कर्ज है, जो विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) जैसे अंतरराष्ट्रीय उधारदाताओं की जांच से फिसल गया है.

रेडियो फ्री एशिया एडडाटा द्वारा चार साल के अध्ययन का हवाला देते हुए सूचना दी है कि ‘छिपा हुआ कर्ज’ केंद्रीय बैंकों के माध्यम से सरकारों के बीच सीधे तौर पर नहीं, बल्कि कई तरह के वित्तपोषण संस्थानों के साथ अपारदर्शी व्यवस्था के कारण बढ़ते हुए सौदों के कारण है. इसलिए ‘ऋण बोझ को सार्वजनिक बैलेंस शीट से दूर रखा गया.’