भारत की आशंका सच निकलीः अमेरिकी पूर्व सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन बोले-अफगानिस्तान बना आईएसआईएस, अल-कायदा का गढ़

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 17-09-2022
अमेरिका के पूर्व सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन
अमेरिका के पूर्व सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन

 

आवाज द वॉयस /काबुल 

तालिबानियों जब से काबुल पर कब्जा किया है भारत आशंका जताता रहा है कि अफगानिस्तान की सरजमीं आतंकवादी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल की जा सकती हैं.
 
अब भारत की आशंका को अमेरिकी राष्ट्रीय निकाय ने पुष्टि कर दी है. कहा है कि अफगानिस्तान में आईएसआईएस और अल-कायदा नेटवर्क के तेजी से विकास ने न केवल अफगानिस्तान बल्कि बाकी दुनिया को गंभीर खतरे में डाल दिया है.
 
पूर्व सलाहकार यूएस नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल जॉन बोल्टन ने वॉयस ऑफ अमेरिका के साथ एक साक्षात्कार में यह खुलासा किया है.वीओए के साक्षात्कार में बोल्टन ने कहा कि अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की बढ़ती आमद से दुनिया में हर किसी को चिंतित होना चाहिए.
 
अमेरिकी खुफिया निष्कर्षों से पता चलता है कि आईएसआईएस और अल-कायदा आतंकवादी समूह अफगानिस्तान में पुनर्गठन कर रहे हैं. इसके अलावा, पूर्व अधिकारी ने अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी समूहों के साथ उसकी सांठगांठ के लिए तालिबान की भी आलोचना की. 
 
बता दें कि इसी बीच भारत का मोस्ट वांटेड आतंकवादी मसूद अजहर के भी अफगानिस्तान मंे छुपे होने की बात सामने आई है. बोल्टन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि तालिबान पिछले अगस्त में काबुल के अधिग्रहण के बाद से आतंकवाद से लड़ने के लिए दोहा समझौते के प्रावधानों का पालन करने में विफल रहा है.
 
बोल्टन ने कहा, तालिबान ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उनके शब्द यकीन के लायक नहीं हैं. उन्होंने न केवल अफगानिस्तान में, बल्कि दुनिया भर में खतरा पैदा कर दिया है.
 
खामा प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अल-कायदा नेता, अयमान अल-जवाहिरी के अमेरिकी ड्रोन हमले की पृष्ठभूमि में, पूर्व शीर्ष अधिकारी ने कहा कि तालिबान ने दोहा समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं किया. खासकर अफगानिस्तान में जवाहिरी के प्रवास को लेकर.
 
तालिबान के राष्ट्रीय नियंत्रण पर कब्जा करने के बाद के महीनों में, इस्लामिक स्टेट-खोरासन अफगानिस्तान के लगभग सभी प्रांतों में अपनी पहुंच बढ़ाने में कामयाब रहा है. यह बात यूएन ने भी कही है. 
 
आईएसआईएस-के ने आत्मघाती बम विस्फोट, घात हमले और हत्याएं करते हुए अपने हमलों की गति तेज कर दी है. इसने 2015 से अफगानिस्तान में काम करना शुरू कर दिया था.
 
इसकी शुरुआत पाकिस्तानी नागरिक हाफिज सईद खान ने की थी, जिसने 2014 में तत्कालीन इस्लामिक स्टेट नेता अबू बक्र अल-बगदादी के प्रति निष्ठा का वादा किया था.
 
मूल रूप से ज्यादातर पाकिस्तानी आतंकवादी शामिल थे और बड़े पैमाने पर पूर्वी अफगान प्रांत नंगहार में स्थित थे, इसने तालिबान और अन्य चरमपंथी समूहों से कुछ रंगरूटों को आकर्षित किया.
 
इस्लामिक स्टेट सुन्नी इस्लाम में एक अति-रूढ़िवादी आंदोलन, सलाफिज्म के एक संस्करण का अनुसरण करता है.अफगानिस्तान में आईएसआईएस शिया और हजारा सहित अल्पसंख्यकांे पर लगातार हमले कर रहा है.
 
तालिबान का इस्लामिक स्टेट के प्रतिद्वंद्वी अल-कायदा के साथ घनिष्ठ संबंधों का इतिहास रहा है. हालांकि तालिबान नेताओं ने अफगानिस्तान को आतंकवादी समूहों के लिए पनाहगाह बनने से रोकने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ 2020 के समझौते में प्रतिज्ञा की थी.
 
पिछले महीने काबुल में अमेरिकी ड्रोन हमले में अल-कायदा नेता अयमान अल-जवाहिरी की मौत के बीच चल रहे संबंधों का संकेत लग रहा है.