पंकज दास / नई दिल्ली
कहते हैं कि एक अच्छा पड़ोसी वही होता है, जो अपने पड़ोस के हर सुख-दुःख में काम आए. नेपाल में जब-जब किसी आपदा ने दस्तक दी, हर उस वक्त नेपाल के लिए भारत ढाल बनकर खडा रहा. चाहे 2015में आया महाभूकंप हो या वर्तमान कोरोना काल हो. भारत हर समय अपनी जनता से भी अधिक नेपाल की जनता की चिंता करते हुए कंधे से कंधा मिलाकर खडा रहा. जबकि चीन ने नेपाल में अपना एजेंडा पूरा होने से खफा होकर अब वहां आर्थिक नाकेबंदी शुरू कर दी है। चीन के प्रमुख उद्यमियों और व्यापारियों ने अब इस आर्थिक नाकाबंदी को रुकवाने के लिए नेपाल सरकार से कूटनीतिक प्रयास करने का आह्वान किया है।
2015में जब नेपाल में भूकंप आया था, उस समय नेपाल के प्रधानमंत्री से पहले ही भारत के प्रधानमंत्री ने उस आपदा की घडी में न सिर्फ दुःख और संवेदना प्रकट की, बल्कि दो घंटे के भीतर भारतीय वायुसेना का जहाज राहत और चिकित्सक टोली सहित काठमांडू के अंतर्राष्ट्रीय विमानस्थल पर उतर चुका था.
इस समय जब पूरा विश्व कोरोना महामारी की चपेट में जकड़ा हुआ है और पूरी दुनिया कोरोना की वैक्सीन की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है. ऐसे में भारत अपने देश में वैक्सीन का महाभियान की शुरुआत के साथ ही अपने सभी पड़ोसियों के पास भी मुफ्त में वैक्सीन पहुचाने का काम कर रहा है.
और नेपाल इस मामले में भाग्यशाली है कि वह भारत के प्राथमिकता में सबसे ऊपर रहा और भारत में वैक्सीन के पहले चरण में ही नेपाल की जनता को भी यह उपलब्ध हो गया.
भारत के इस सहयोग और सद्भाव के प्रति नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने ट्वीट कर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारत की जनता के प्रति आभार व्यक्त किया है. अपने सन्देश में ओली ने कहा कि भारत सरकार और प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह से नेपाल और नेपाली जनता के प्रति सद्भाव दिखाया है उसके लिए हम उनके आभारी है.
भारत की जनता की पहुंच से बाहर होते हुए भी नेपाली जनता के लिए वैक्सीन उपलब्ध कराना यह दोनों देशों के प्रगाढ़ संबंध को दर्शाता है. नेपाल में भारत का धुर विरोधी मीडिया हो या बुद्धिजीवी, सभी ने भारत की इस पहल और सहयोग के इए आभार व्यक्त किया है. ट्विटर पर नेपाल में #thankyouindia का ट्रेंड चलाया जा रहा है.
पिछले एक साल से नेपाल और भारत के बीच कूटनीतिक और राजनीतिक संबंध जिस स्तर पर पहुच गया था, उसके बावजूद भारत की तरफ से दिखाई गई इस दरियादिली की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है.
वैक्सीन की पहली खेप को स्वीकारते हुए नेपाल के स्वास्थ्य मंत्री ने हृदय से भारत सरकार, भारतीय दूतावास और भारतीय जनता को धन्यवाद कहा. उन्होंने कहा कि तमाम आशंकाओं के बावजूद भारत ने नेपाली जनता के लिए जिस तरह का अपनापन दर्शाया है, उससे पूरी दुनिया में एक संदेश गया है कि कुछ चंद लोगों के स्वार्थ के कारण कुटनीतिक और राजनीतिक संबंध चाहे जैसे हों, जनता से जनता के बीच के संबंध को भारत ने हमेशा ही सर्वोपरि माना है.
नेपाल में अब यह चर्चा आम है कि नेपाल में चाइना के वुहान से निकली कोरोना महामारी का प्रसार हुआ, लेकिन चीन को कोरोना के समय भी नेपाल में सिर्फ व्यापार और मुनाफा दिखा, लेकिन भारत ने उसे वैक्सीन उपलब्ध कराई. कोरोना के समय भारत के साथ सरकार के संबंध अच्छे नहीं होने के बावजूद भारत सरकार की तरफ से किसी भी प्रकार के सहयोग में न तो कोई कटौती की गई और न कोई ही कोई ढिलाई बरती गई.
नेपाल के चौतरफा विकास में भारत हमेशा ही हर प्रकार से मदद करता रहा. लेकिन चीन ने महामारी के समय भी सिर्फ व्यापार किया. कोरोना से बचने के लिए नेपाल को जो सामग्री उपलब्ध कराई गई, उसमें चीनी कंपनी और नेपाली कंपनी ने मिलकर करोड़ों का भ्रष्टाचार किया था, जिसकी सर्वत्र आलोचना हुई थी.
मॉस्क हों या सेनिटैजर, वेंटिलेटर हों या अन्य कोई भी सामग्री, एक तो चीन ने बहुत ही महंगे दामों पर वे सभी सामग्री उपलब्ध कराईं. दूसरे, इस सामान में जो आरटीडी और पीसीआर टेस्ट किट दी गई थीं, वे किसी भी काम की नहीं थीं. नेपाल के चीनी दूतावास का पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार को बचाने और गिराने में ही लगा रहा.
नेपाल में कोरोना से रोजाना सैकड़ों लोगों की मौत हो रही थी, लेकिन चाइनीज राजदूत नेताओं के घर-घर घूमकर कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन को रोकने के लिए राजनीति कर रही थीं.
पिछले 6महीनों से चीन का नेपाल में एकमात्र एजेंडा कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन को रोकना ही रहा है. जब से नेपाल के प्रधानमन्त्री केपी ओली ने भारत के साथ संबंध को सुधारने का प्रयास शुरू किया, तब से चीन और बौखला गया है.
चीन ने नेपाल के कई भूभाग पर धीरे-धीरे कब्जा जमाना शुरू कर दिया. माउंट एवरेस्ट को चीन के भूभाग में होने की बात प्रचारित की.
इससे भी अधिक चीन ने अब नेपाल में अघोषित आर्थिक नाकाबन्दी लगा दी है. चीन ने नेपाल और चीन से जुड़े तातोपानी और रसुवा के नाके को बंद कर दिया है. सैकड़ों की संख्या में नेपाली व्यापारियों का सामान सीमा पर रुका हुआ है.
मामला इतना अधिक बढ़ गया है की नेपाल के उद्योग वाणिज्य मंत्री लेखराज भट्ट को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में यह कहना पड़ा कि यदि चीन ने नेपाल के साथ यही रवैया अपनाना जारी रखा, तो चीन के साथ व्यापारिक संबंधों पर पुनर्विचार करने की नौबत आ सकती है.
नेपाल के जिन व्यापारियों और उद्योगपतियों का सामान फंसा है और जिनको लाखों का घाटा लग रहा है, वो सभी सरकार पर दबाब डाल रहे हैं कि चीन से बात करके नाका को खुलवाया जाए, लेकिन नेपाल सरकार ने अब तक कोई भी कूटनीतिक पहल नहीं की है.