ब्रेक्जिट के बाद भारत और ब्रिटेन बढ़ेंगे मुक्त व्यापार की ओर

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] • 3 Years ago
जी-7 शिखर सम्मलेन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन मिलेंगे, जहां दोनों नेताओं के मध्य एफटीए पर बातचीत हो सकती है.
जी-7 शिखर सम्मलेन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन मिलेंगे, जहां दोनों नेताओं के मध्य एफटीए पर बातचीत हो सकती है.

 

राकेश चौरासिया / नई दिल्ली

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनने वाले थे, लेकिन इंग्लैंड में कोविड-19 की स्थिति विकट हो जाने के कारण उनका दौरा स्थगित हो गया है. जॉनसन का भारत आना ऐसे समय में प्रस्तावित था, जब ब्रिटेन और भारत दोनों ही अलग-अलग झंझावातों से जूझ रहे हैं. इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जॉनसन के बीच वार्ताएं नया ताना-बना बुन सकती थीं. 

ब्रिटेन और भारत के संबंध आजादी के बाद से लगभग सामान्य ही रहे हैं। फिर भी जब शेष विश्व का आर्थिक और सामरिक रूपांतरण तीव्रता से हो रहा है, ऐसे में द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा और उसमें गर्मजोशी लाना अपरिहार्य हो जाता है. जॉनसन के दौरे के समय द्विपक्षीय व्यापार, निवेश, रक्षा-सुरक्षा, हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता, स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन आदि विषयों पर सहमतियों और समझौतों की उम्मीद की जा रही थी. फिलहाल यह टल गया है, लेकिन दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में उत्तरोत्तर विकास जारी रहने की आशा है.

ब्रिटेन के विदेश मंत्री डोमिनिक राब 15 दिसंबर को भारत के दौरे पर आए थे. तब यह खुलासा हुआ था कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री जॉनसन ने भारत का न्योता स्वीकार कर लिया है. जॉनसन को पीएम मोदी ने भारत के 70वें गणतंत्र दिवस के मौके पर आमंत्रित किया था. इससे पहले 1993 में जॉन मेजर गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि बने थे. अब 27 साल बाद जॉनसन इसी अवसर पर आने वाले थे. ये जॉनसन की बतौर प्रधानमंत्री पहली विदेश यात्रा होती. जॉनसन के कार्यालय ने भी कहा था कि जॉनसन भारत यात्रा के दौरान अगले जी-7 शिखर सम्मलेन में भाग लेने का मोदी को न्योता भी देंगे, जिसकी मेजबानी ब्रिटेन करेगा.

दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया के अलावा सम्मलेन में शामिल होने वाला भारत तीसरा अतिथि देश होगा. उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन ने जी-7 शिखर सम्मलेन का निमंत्रण भेजा था, जिसे पीएम मोदी ने स्वीकार कर लिया है. 

ब्रिटेन की चुनौतियां

ब्रिटेन इस समय कोरोना से बुरी तरह जूझ रहा है. वहां दूसरी लहर के तहत इस समय एक दिन में 25-30 हजार से अधिक कोरोना केस आ रहे हैं. वहां सख्त लॉकडाउन के बावजूद अब टायर-4 लॉकडाउन लागू किया गया है.

कोरोना के कारण जहां जनजीवन प्रभावित हुआ है, वहीं उसकी अर्थव्यवस्था पर भी बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. अर्थव्यस्था को पटरी पर लाना जॉनसन के लिए चुनौतीपूर्ण है. जॉनसन यह करिश्मा कैसे करेंगे, इस पर इंग्लिश लोगों की नजर है. इसके अतिरिक्त ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से अलग होने की प्रक्रिया (ब्रेक्जिट) के कारण भी जॉनसन पर भारी दबाव है.

वर्ष 2014 में स्कॉटलैंड में एक जनमत संग्रह हुआ, जिसके बाद वहां के अधिकांश मतदाता चाहते हैं कि ब्रिटेन को ईयू (यूरोपीय यूनियन) का हिस्सा बने रहना चाहिए, जबकि ब्रेक्जिट के पीछे ब्रिटेन की सोच है कि ईयू में फ्रांस और जर्मनी का दबदबा है. ईयू से मुक्त होकर ब्रिटेन फिर एक बार ग्लोबल ग्रेट ब्रिटेन की दिशा में बढ़ सकता है.

एक जनवरी को ब्रेक्जिट के बाद जॉनसन को इस तरह ब्रेक्जिट विरोधी लोगों का विश्वास अर्जित कर उन्हें साधने का भगीरथ कार्य भी करना है.

भारत की चुनौतियां  

इधर भारत में भी कोविड महामारी के कारण 4-5 महीनों के कठिन लॉकडाउन के दौरान अर्थव्यवस्था घुटनों पर आ चुकी है, जिसे पटरी पर लाने के लिए मोदी सरकार द्वार हर कोशिश की जा रही है.

पश्चिमी सीमा पर बदस्तूर पाकिस्तानी खुराफातों के बीच चीन भी विस्तारवादी दुस्साहस से ग्रस्त होकर सात महीनों से उत्तरी सीमा पर जमा बैठा है. हाल में सरकार नियंत्रित चीनी मीडिया ने दावा किया कि चीन के 10 हजार सैनिक पीछे हटा लिए गए हैं, लेकिन भारत इससे चौकन्ना है और चीन के नए माइंड गेम में नहीं फंसना चाहता है.

विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत अपने सैनिक पूरी तरह मुतमइन होने तक पीछे नहीं हटाएगा. कोरोना काल के साथ-साथ चल रही इस कठिन परिस्थति में हालांकि चीन के होश ठिकाने लग चुके हैं. चीन के इस विस्तारवादी रवैए को पूरे विश्व ने रेखांकित किया.

भारत ने चीन की तगड़ी आर्थिक नाकेबंदी की शुरुआत की, तो अमेरिका सहित पश्चिम देशों ने भी चीन को उसकी औकात पर ला दिया. अब हाल यह है कि कंबोडिया भी चीन को कोरोना वैक्सीन के परीक्षा की अनुमति नहीं दे रहा है, तो इंडोनेशिया भी चीन के जलयान खदेड़ रहा है. चीन को अपने खिलाफ बने भारत, जापान, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन का गठजोड़ सताने लगा है. अब चीन लद्दाख के प्रेत से पिंड छुड़ाने के बहाने ढूंढ रहा है.

स्वास्थ्य की कूटनीति 

ऐसे कठिन समय में भारत और ब्रिटेन को एक-दूसरे की सख्त जरूरत है. दोनों ही देशों के सामने स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं एक जैसी हैं. दोनों को अपनी अर्थव्यवस्था भी गतिमान करनी हैं. हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता के मद्देनजर सामरिक तौर पर नए ढंग से साझा समझ विकसित करनी है.

जहां तक ब्रिटेन की बात है, ब्रिटेन कुछ बिंदुओं को छोड़कर सदा ही भारत का विश्वसनीय मित्र सिद्ध हुआ है. हाल में मोदी सरकार ने राष्ट्र के एकीकरण के लिए कई कानून पारित किए, तब भी ब्रिटिश सरकार ने भारत सरकार की आंतरिक सुरक्षा चिंताओं को वरीयता प्रदान की, वहीं भारत भी ब्रिटेन को सहयोग करने में पीछे नहीं रहा.

स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत ने जो हालिया योगदान दिया, उसकी ब्रिटेन में मुक्तकंठ से प्रशंसा हुई. भारत ने ब्रिटेन को कोरोना महामारी से लड़ने के लिए एक करोड़ फेस मास्क और पैरासिटामोल के 30 लाख पैकेट की आपूर्ति की थी. कोरोनाकाल में भारत की औषधि निर्माण क्षमता का महत्व पूरी दुनिया को पता चला है. अधिकांश कोरोना वैक्सीन निर्माता भारतीय इकाइयों में अपनी वैक्सीन बनवाने के लिए या तो करार कर चुके हैं या फिर कर रहे हैं.

वर्तमान करारों के आकलन के हिसाब से भारतीय औषधि निर्माण उद्योग विश्व को आधे से ज्यादा वैक्सीन की आपूर्ति करने वाला है. ब्रिटेन की ऑक्सफोड-ऐस्ट्राजेनेका वैक्सीन की एक अरब खुराकें भी पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट में बन रही हैं। 10 देशों ने भारत से कोरोना का टीका मांगा है.  

ब्रिटेन-भारत की समान चिंताएं  

विदेश मंत्री रॉब पहले ही इरादा जाहिर कर चुके हैं कि वह भारत के साथ आर्थिक संबंध मजबूत करना चाहते हैं. आतंकवाद और कट्टरवाद के कारण पैदा हुई चुनौतियों पर भी दोनों देश साझा समझ विकसित करना चाहते हैं.

फ्रांस में कट्टरवाद के कारण जैसे हमले हुए थे, वैसी ही कुछ चिंताओं से ब्रिटेन भी जूझ रहा है. दिसंबर, 2019 में हुई लंदन ब्रिज की वारदात के बाद ब्रिटेन के लोगों का गुस्सा सातवां आसमान छू रहा था. जुम्मे के दिन हुई चाकूबाजी की इस घटना में दो लोगों की मौत हो गई थी।

इस घटना के हमलावर पाकिस्तानी नागरिक उस्मान खान को तभी ढेर कर दिया गया था. ब्रिटेन सरकार ने इसे आतंकी हमला करार दिया था. प्रधानमंत्री मोदी वैश्विक मंचों पर कई बार कह चुके हैं कि आतंकवाद के मुद्दे पर भेदभाव खत्म हो और सभी देशों को आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस के तहत कार्यबल गठित करना चाहिए.

जॉनसन ने पिछले दिनों एक बयान जारी किया था कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है और वह ब्रिटेन के लिए एक अत्यावश्यक सहयोगी बनता जा रहा है. दोनों देश रोजगार और विकास को बढ़ाने, सुरक्षा के प्रति साझा खतरों का सामना करने और हमारे घर की रक्षा करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं. इसलिए जॉनसन रक्षा-सुरक्षा के विषय में द्विपक्षीय हितों के मद्देनजर किसी विशेष निर्णय घोषणा कर दें, तो यह हैरत की बात नहीं होगी. 

एफटीए से हैं ये उम्मीदें   

जॉनसन की प्रस्तावित यात्रा में आर्थिक मोर्चे पर भारत और ब्रिटेन के मध्य मुक्त व्यापार करार (एफटीए) पर विशेष चर्चा हो सकती थी, लेकिन अब यह जी-7 के दौरान भारत और ब्रिटेन के संभावित वैश्विक नेता मोदी और जॉनसन शिखर सम्मेलन में इस विषय पर प्रगति की उम्मीद की जा रही है.

दोनों देशों के बीच 2018-19 में द्विपक्षीय व्यापार 16.87 अरब डॉलर था, जो 2019-20 में घटकर 15.5 अरब डॉलर पर आ गया था. मोदी और जॉनसन की शीर्ष वार्ता में एफटीए पर कोई प्रगति होती है, तो द्विपक्षीय व्यापार की वृद्धि के लिए नई प्रोजेक्शन सामने आ सकती हैं. इसके तहत दोनों देश बिंदुवार और उत्पादवार कई रियायतों की घोषणा कर सकते हैं.

मुक्त व्यापार करार के तहत व्यापार में दोनों देश आपसी व्यापार वाले उत्पादों पर आयात शुल्क में अधिकतम कटौती करने पर विचार कर सकते हैं. दोनों देशों में जीव विज्ञान और स्वास्थ्य, आईसीटी तथा खाद्य पर सहयोग की अपार संभावनाएं हैं.

एफटीए पर अब तक जो हुआ  

एफटीए को लेकर होमवर्क पहले ही शुरू हो चुका है. दोनों देशों के बीच 24 जुलाई, 2020 को वीडियो कॉन्फ्रेंस से 14वीं संयुक्त आर्थिक एवं व्यापार समिति (जेईटीसीओ) की बैठक हुई थी, जिसमें भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल तथा ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री एलिजाबेथ ट्रूस ने शिरकत की थी. वाणिज्य मंत्रालय ने तब बयान जारी किया था कि एफटीए के मद्देनजर इस बात पर सहमति बनी है कि वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी और ट्रूस के विभाग के उपमंत्री रानिल जयवर्द्धने के बीच मासिक बैठकें होंगी तथा करार पर बातचीत को तेजी से आगे बढ़ाया जाएगा.

ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन का ईयू से द्विपक्षीय व्यापार में नुकसान की संभावनाए जताईं जा रही हैं. इस दुष्प्रभाव की भरपाई के लिए जॉनसन एफटीए की ओर बढ़ना चाहेंगे, तो मोदी भी अर्थव्यवस्था को थ्रस्ट देने के लिए इस प्रस्ताव पर सकारात्मक कदम बढ़ा सकते हैं.