बड़ी खबरः पाकिस्तान कहीं ‘नो वाटर जोन‘ में न बदल जाए

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 29-03-2021
पाकिस्तान
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मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली / कराची

साहिबा. बारह-तेरह साल की एक छोटी सी बच्ची. पाकिस्तान के सिंध प्रांत के थार इलाके में अपने मां-बाप के साथ रहती है. वह रोजाना अपने बहन-भाईयों के साथ 4 से 5 किलोमीटर पानी लाने जाती है. थार इलाका रेगिस्तानी है. यहां भारी जल संकट है. साहिबा जैसे बच्चों की रोजना यही दिनचर्या है. वह बताती है,‘‘कुछ दिनों पहले जब अपने अंकल से मिलने पहली बार कराची गई थी, वहां भी पानी के लिए नलों पर मारा-मारी देखकर दंग रह गई.’’ 
 
केवल थार ही नहीं, सिंध सूबे के लगभग हर जिले की यही कहानी है. सभी घोर जल संकट से जूझ रहे है. सिंध की सत्तारूढ़ सरकार द्वारा किए गए तमाम वादों के बावजूद, जल संकट है कि खत्म होने का नाम नहीं ले रहा. पानी की कमी, जल जमाव, पानी चोरी, जल कुप्रबंधन, दूषित जल और जलापूर्ति लाइनों के रख-रखाव में कमी-सब मिलकर एक ऐसा जटिल रूप ले लिर्या है, जिसका हल निकलता नहीं दिख रहा.

कराची जैसे सिंध के कई जिले पानी के टैंकरों और पानी ढोले वाले वाहनों पर पूरी तरह निर्भर हैं. इससे लोग अपनी दैनिक आवश्यकताएं पूरी करते हैं. गरीबों को एक या दो बल्टी से ज्यादा पानी नहीं मिल पाता. उसके लिए भी लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ता है. कभी-कभी लोग खाली हाथ लौट आते हैं. उनकी बारी नहीं आ पाती.
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जल संकट में तीसरे नंबर पर

एक आंकड़े के अनुसार 20 मिलियन से अधिक लोग कराची में रहते है. उनमें से केवल कुछ ही जल संकट से बचे हुए है. पानी के लिए सोशल मीडिया पर अभियान चलाने वाले एक मंच का दावा है कि पाकिस्तान विश्व में जल संकट के मामले में तीसरे पायदान पर है. 50 मिलियन पाकिस्तानी स्वच्छ जल के लिए तरस रहे हैं.
 
जल माफिया की सरकार

बहरहाल, यहां बात हो रही है सिंध के जल संकट की. इस प्रदेश में पानी से जुड़ा एक और बड़ा मामला काबिल-ए-गौर है.आरोप है कि सरकार  जानबूझकर पानी चोरी को बढ़ावा दे रही है. पानी की चोरी उन लोगों द्वारा की जा रही जिनके संबंध सत्ताधारियों या अधिकारियों से हैं. उनकी पनाह में जल माफिया पनत रहे हैं. परिणामस्वरूप वास्तविक उपभोक्ताओं तक पर्याप्त पानी नहीं पहुंच पा रहा है. सामान्य आपूर्ति भी प्रभावित हो रही है. सिंचाई आदि में भी दिक्कत है.
 
पानी की लग रही बोली

सिंध के एक किसान का दावा है कि उसके इलाके में लगभग 10,0000 एकड़ कृषि योग्य भूमि कई वर्षों से सिंचाई की कमी के चलते बदहाल है. उसका आरोप है कि सिंचाई अधिकारी पहले उन जमींदारों को पानी की आपूर्ति करते हैं जिनके नेताओं और मंत्रियों से संबंध हैं. फिर अमीर किसानों को बेच दिया जाता है. इसलिए आम किसान को खेती और सिंचाई के लिए आवश्यक पानी नहीं मिल पाता है. पीने के पानी के लिए भी मशक्कत करनी पड़ती है.
 
दूषित जलापूर्ति से अस्पताल पर कब्जा

पाकिस्तान के जल संसाधन अनुसंधान परिषद ने न्यायिक आयोग के आदेश पर सिंध के विभिन्न हिस्सों से 300 पानी के नमूने लिए थे. जांच में पाया गया कि सिंध के तीन जिलों कराची, हैदराबाद और सुक्कुर में लगभग एक दशक से खराब गुणवत्ता वाला पानी आपूर्ति किया जा रहा है. 2005 से निरंतर निगरानी के बावजूद, 80 से 90 प्रतिशत पानी के नमूनों को असुरक्षित करार दिया गया है.
 
दूषित पानी के सेवन से यहां स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं पैदा हो गई हैं. पाकिस्तान में अस्पतालों के 20 से 40 प्रतिशत बेड पर टाइफाइड, हैजा, पेचिश और हेपेटाइटिस जैसी जल संबंधित बीमारियों से पीड़ित मरीजों का कब्जा है. 

सिंध की जल संकट के लिए संघर्षरत ‘द सिंध नरेटिव’ के दावे के अनुसार, वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर की रिपोर्ट्स में पाकिस्तान के पानी को जोखिम भरा करार दिया गया है. इस संबंध में उसने एक लेख भी प्रकाकिशत किया है.
 
जलस्तर खत्म होने का खतरा बढ़ा

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, पानी की कमी के मामले में पाकिस्तान तीसरा सबसे अधिक प्रभावित देश है. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और पाकिस्तान काउंसिल ऑफ रिसर्च इन वाटर रिसोर्सेज ने पाकिस्तान को 2025 तक पूर्ण रूप से पानी की कमी और सूखे की चेतावनी दी है. 2016 में एक रिपोर्ट में बताया गया था कि पाकिस्तान ने 1990 में ‘‘वाटर स्ट्रेस लाइन‘‘ को छुआ और 2005 में ‘‘पानी की कमी रेखा‘‘ को पार किया था, इसलिए वर्तमान में हम ‘‘नो वाटर‘‘ जोन में पाकिस्तान बदल सकता है.
 
सिंधु पर निर्भर सिंध

सिंध पीने और कृषि उद्देश्यों के लिए बहुद हद तक सिंधु नदी पर निर्भर है. माना जा रहा है कि जल अपवर्जन समझौते 1991 के अनुसार सिंधु बेसिन से 42 प्रतिशत साझा पानी प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन विशेषज्ञों का तर्क है कि यह आंकड़ा संशोधित किया जाना चाहिए. यह सूबे की वर्तमान जनसंख्या और बदले हुए परिदृश्य के हिसाब से पर्याप्त नहीं है.
 
जल प्रबंधन की व्यवस्था नहीं

1991 के बाद से, सिंध की जनसंख्या में वृद्धि हुई है. परिदृश्य भी बदला है. औद्योगीकरण ने विस्तार लिया है. जंगल भी काट दिए गए हैं. सिंध में शरणार्थियों की संख्या बढ़ी है. ऐसे में सभी के लिए पानी उपलब्ध कराना मुमकिन नहीं. इंसान तो इंसान पशु-पक्षियों को भी पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. सिंध ही नहीं पूरे पाकिस्तान में जल प्रबंधन का बुरा हाल है.
 
जल संचय जैसा कोई कार्यक्रम यहां नहीं चलाया जा रहा. ट्रीटमेंट प्लांट की भी पाकिस्तान में भारी कमी है. बरसात में सिंध का बड़ा हिस्सा जल भराव और बाढ़ की समस्या से जूझता रहता है, जब कि थार इलाका बारह महीने सूखाग्रस्त रहता है. इस समस्या बाहर निकलने के लिए पाकिस्तान के पास फिल्हाल कोई ठोस योजना नहीं है.