बांग्लादेश ने जनमत-संग्रह संबंधी अध्यादेश जारी किया, विशेषज्ञों ने बताया ‘असंवैधानिक’

Story by  PTI | Published by  [email protected] | Date 14-11-2025
Bangladesh issues referendum ordinance, experts call it 'unconstitutional'
Bangladesh issues referendum ordinance, experts call it 'unconstitutional'

 

ढाका

बांग्लादेश ने गुरुवार देर रात एक अध्यादेश जारी किया है, जिसके तहत अंतरिम सरकार के प्रमुख प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस द्वारा प्रस्तावित राजनीतिक चार्टर पर जनमत-संग्रह कराने का प्रावधान किया गया है। इस कदम की घोषणा होते ही संवैधानिक विशेषज्ञों ने इसे असंवैधानिक करार दिया।

राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने “जुलाई चार्टर कार्यान्वयन आदेश” पर हस्ताक्षर कर दिए, जिसे यूनुस की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय सहमति आयोग ने तैयार किया था। यह मसौदा कई राजनीतिक दलों से बातचीत के बाद बनाया गया, लेकिन अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की भंग की जा चुकी अवामी लीग इसमें शामिल नहीं हुई।

अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में यूनुस ने कहा कि अगले वर्ष फरवरी में होने वाले राष्ट्रीय चुनाव के साथ ही जनमत-संग्रह भी कराया जाएगा, ताकि जनता की राय के आधार पर चार्टर को वैधता दी जा सके।

संवैधानिक विशेषज्ञ और पूर्व कानून प्रोफेसर शाहदीन मलिक का कहना है कि चार्टर के कई सुझाव वर्तमान संविधान से मेल नहीं खाते। चूंकि संविधान अब भी पूरी तरह लागू है, इसलिए राष्ट्रपति कानूनी रूप से ऐसे आदेश पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते। उनका कहना है कि बांग्लादेश के संविधान में जनमत-संग्रह का कोई प्रावधान नहीं है, और अनुच्छेद 93 के तहत किसी भी अध्यादेश के जरिए संविधान में संशोधन या उसे निरस्त नहीं किया जा सकता।

अध्यादेश के मुताबिक, नई संसद को अपनी पहली बैठक के 180 कार्यदिवस के भीतर चार्टर और जनमत-संग्रह के परिणामों के अनुसार संविधान में संशोधन करना होगा। मलिक ने इसे “असंगत” बताया।

उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ वकील मोहम्मद रूहुल कुद्दूस ने भी सवाल उठाया कि जब संविधान में जनमत-संग्रह की व्यवस्था ही नहीं है, तो इसे किस आधार पर कराया जा सकता है।

इसी बीच, पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने आरोप लगाया कि यूनुस ने अपने ही चार्टर का उल्लंघन किया है, क्योंकि मूल दस्तावेज में संवैधानिक सुधार परिषद जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी।

बीएनपी नेता सलाहुद्दीन अहमद ने कहा कि जुलाई चार्टर कार्यान्वयन आदेश में कई नए बिंदु जोड़े गए हैं और कई सहमत बातें हटा दी गई हैं, जिससे प्रस्तावित जनमत-संग्रह की वैधता संदिग्ध हो गई है।