अफगानों को डर है कि तालिबान उनके बच्चों से फिदायीन हमले करवा सकते हैं

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 20-09-2021
बच्चा तालिबान
बच्चा तालिबान

 

काबुल. तालिबान की सत्ता में वापसी ने अफगानों में यह आशंका पैदा कर दी कि वे युवाओं को आतंकी गतिविधियों के लिए तैयार करने के लिए जबरन भर्ती करेंगे.

संयुक्त राष्ट्र इस मुद्दे को पहले ही उठा चुका है. इंटरनेशनल फोरम फॉर राइट एंड सिक्योरिटी (आईएफएफआरएएस) की रिपोर्ट के अनुसार, मानवाधिकारों के लिए उच्चायुक्त मिशेल बाचेलेट ने तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद पहले से लागू किए गए क्रूर शासन पर आशंका जताने के बाद मानवाधिकार परिषद से साहसिक कार्रवाई करने का आग्रह किया है. तालिबान के पिछले शासन के तहत, 18वर्ष से कम आयु के हजारों अफगान आतंकवादी समूहों में नामांकित थे. भर्ती प्रक्रिया मजबूरी थी.

उस समय मानवाधिकार निकायों ने रिपोर्ट किया, “उनका पहले ‘ब्रेन वॉश’ किया गया, फिर हथियारों से निपटने का प्रशिक्षण दिया गया और अंत में युद्ध के लिए भेजा गया. कुछ बच्चों की बमुश्किल 6साल की उम्र थी, उन बच्चों को आत्मघाती हमलावरों के रूप में भी इस्तेमाल किया गया था.”

संयुक्त राष्ट्र ने 1994में बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की पुष्टि करके जवाबी कार्रवाई करने की कोशिश की, जिसने इस तरह की भर्ती को अवैध बना दिया.

तालिबान ने कभी भी सम्मेलन का सम्मान करने की जहमत नहीं उठाई. और आज देश में डर इस बात का है कि कहीं तालिबान एक बार फिर बच्चों को जबरन भर्ती न कर ले.

आईएफएफआरएएस ने लिखा, इस्लामी आतंकवादी समूहों के साथ अपने संबंधों को देखते हुए, सामान्य अफगान बच्चों को उन सभी द्वारा साझा किए जाने की संभावना से इंकार नहीं करते हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट है कि तालिबान ने 2015में बच्चों को अपने रैंक में मजबूर करना शुरू कर दिया था. उन्होंने बच्चों को उनके घरों से जबरन उठा लिया, उन्हें सैन्य-शैली के शिविरों में पाला, उन्हें संचालन में प्रशिक्षित किया और सशस्त्र हमलों सहित विभिन्न अभ्यासों के लिए उनका इस्तेमाल किया. ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां बच्चों को इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) लगाने या आत्मघाती हमलावरों के रूप में इस्तेमाल करने के लिए इस्तेमाल किया गया था.

एचआरडब्ल्यू अध्ययन ने 2016में जमीन से मिली जानकारी के आधार पर बताया, “कुंदुज प्रांत में, तालिबान ने 13से 17वर्ष की आयु के बच्चों को सैन्य प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए मदरसों, या इस्लामी धार्मिक स्कूलों का तेजी से उपयोग किया है, जिनमें से कई जिन्हें युद्ध में तैनात किया गया है.”

रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान ‘उम्र-विशिष्ट चरणों में बच्चों की भर्ती और प्रशिक्षण’ देता है. पहला चरण तब शुरू होता है, जब लड़के छह साल के होते हैं. उनका उपदेश ‘तालिबान शिक्षकों के तहत सात साल तक के धार्मिक विषयों के अध्ययन’ के साथ शुरू होता है. अगले चरण में, जब लड़के लगभग 13वर्ष के होते हैं, ‘तालिबान-शिक्षित बच्चों को आग्नेयास्त्रों के उपयोग, आईईडी के उत्पादन और तैनाती सहित सैन्य कौशल सिखाया गया है.’ अंतिम चरण में, ‘तालिबान शिक्षक फिर उन प्रशिक्षित बाल सैनिकों को विशिष्ट तालिबान समूहों से मिलवाते हैं.’

तालिबान ने 2015में अपने आधार और संचालन का विस्तार करना शुरू किया, उसे और अधिक सैनिकों की भर्ती करने की आवश्यकता महसूस हुई. तभी बड़ी संख्या में बच्चों की भर्ती शुरू हुई. उन्होंने बच्चों को निशाना बनाया, क्योंकि उन्हें ‘जिहाद की धार्मिकता’ के बारे में समझाना आसान था, चाहे वे इसे समझें या नहीं.

आईएफएफआरएएस ने बताया कि ऐसा कहा जाता है कि बच्चों के लिए तालिबान प्रशिक्षण शिविर या मदरसे ज्यादातर कुंदुज प्रांत में स्थित थे, खासकर चाहरदरा और दश्त-ए-अर्ची जिलों में.