अफगानिस्तानः तालिबान के गले की हड्डी बनी डिप्लोमेसी

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 06-09-2021
गले की हड्डी बनी डिप्लोमेसी
गले की हड्डी बनी डिप्लोमेसी

 

काबुल. दुनिया ने देखा कि कैसे अमेरिका को वहां से निकलना था और वह निकल गया. कैसे तालिबान ने बिना फायरिंग के काबुल पर कब्जा कर लिया. अब सब कुछ तालिबान के हाथ में है, लेकिन तालिबान के हाथ खाली हैं, जब तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय का साथ नहीं होगा, तब तक कुछ नहीं हो सकता.

तथ्य यह है कि तालिबान के पास एक देश है, एक सरकार है लेकिन अभी तक कोई प्रशासन नहीं है. सब कुछ सुचारू रूप से चल रहा है.

अफगानिस्तान के ऊंट के भविष्य को लेकर दुनिया चिंतित है. यह क्रांति क्या रंग लाएगी? बिना युद्ध के देश पर कब्जा करना आसान था, लेकिन अब शासन करना किसी युद्ध से कम नहीं साबित हो रहा है.

कल तक, तालिबान के लिए दुःस्वप्न प्रतीत होने वाला अफगानिस्तान अब विवाद का विषय है. ... युद्ध आसान लगता है, लेकिन राजनीति और कूटनीति कुटिल लगती है.

अफगान तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ सहयोग के लिए तीन सूत्री एजेंडा पेश किया है. आतंकवाद, अफीम उत्पादन और अफगान शरणार्थी अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए बड़ी चिंता का विषय हैं.

युद्ध में, उन्होंने महान चीनी रणनीतिकार सुन झोउ को साबित कर दिया है कि बिना प्रतिरोध के काबुल पर कब्जा करके युद्ध लड़े बिना जीत हासिल की जा सकती है. लेकिन अब उन्हें युद्ध से बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनसे निपटने के लिए उनके पास न तो वैज्ञानिक या पेशेवर कौशल है और न ही विशेषज्ञ उपलब्ध हैं.

प्रतिभाशाली लोगों को निकालने का कार्य प्रगति पर है और उनमें से अधिकांश विदेश जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. अमेरिकी उपनिवेशवाद और उसके सहयोगियों और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा पिछले 20वर्षों में गठित आधुनिक राज्य और उसके संस्थान ध्वस्त हो गए हैं.

माफी और नौकरी पर लौटने की घोषणा के बावजूद लगभग सभी संस्थान और मंत्रालय खाली हैं. लगभग दस लाख अधिकारी और गैर-सरकारी सामाजिक कार्यकर्ता अपनी नौकरी खो चुके हैं और महीनों से बिना वेतन के हैं. खजाना खाली है और संयुक्त राज्य अमेरिका में 9.6अरब एसबीपी जब्त कर लिया गया है.

दर्जनों बैंक खुले हैं, लेकिन नकदी खत्म हो रही है. हालांकि हवाला के जरिए लेन-देन हो रहे हैं, जिससे हवाला कारोबारी अच्छा खासा पैसा कमा रहे हैं. अनौपचारिक व्यापार और प्रेषण में अफगान किसी से पीछे नहीं हैं, लेकिन वे राज्य का व्यवसाय नहीं चला सकते. पिछले साल, वार्षिक खर्च 11अरब डॉलर था, जो काफी हद तक विदेशी सहायता पर निर्भर था. अफगानिस्तान का निर्यात एक अरब डॉलर से भी कम है और कुछ कच्चे निर्यात के अलावा बेचने के लिए कुछ भी नहीं है.

जबीहुल्लाह मुजाहिद के अनुसार, संयुक्त अरब अमीरात के पास अब दुनिया को बेचने, आतंकवाद के उन्मूलन की भरपाई करने, अफीम की खेती को रोकने के लिए, 3मिलियन आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति और उनकी सुरक्षा व्यवस्था,  विदेशी राजस्व और अफगान शरणार्थियों की बाढ़ को रोकने के लिए स्थानीय रोजगार सृजित करने और इससे अधिक के पुनर्वास के लिए पैसा चाहिए.

एक साल में अरबों डॉलर की जरूरत होती है और वे उन लोगों से आते हैं जिनके खिलाफ उन्होंने 20साल तक लड़ाई लड़ी. अफगानिस्तान भयंकर अकाल से जूझ रहा है. आधी से ज्यादा आबादी के पास खाने को कुछ नहीं है. अस्पतालों में दवा और स्टाफ की कमी है, स्कूल खाली हैं और पूरे राज्य की व्यवस्था चरमरा गई है.

तालिबान अमीरात की बहाली पर जोर देता है, जो 2001में अमेरिकी मिसाइल हमलों से बचने के लिए दूरस्थ गुफाओं में चला गया था. एक पूरी पीढ़ी भले ही लड़ने के लिए तैयार हो, लेकिन कोई सांसारिक शिक्षा या कौशल नहीं है. नई राजनीतिक व्यवस्था की घोषणा होने वाली है, लगभग उसी तर्ज पर, जैसे 1996-2001में हुई थी.

हालांकि, इस बार ऐसा लगता है कि एक ईरानी शैली की प्रतिकृति तैयार की जा रही है, जिसमें अमीर तालिबान मुल्ला हेबतुल्ला सर्वोच्च नेता और सलाहकार परिषद (यानी ईरानी शैली विलायत-ए-फकीह) होंगे. सिराजुल हक हक्कानी और मुल्ला याकूब सहित प्रमुख जिहादी नेताओं को सरकार और प्रमुख विभागों का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया जा रहा है.

आने वाले महीनों में उल्सी जिरगा के आयोजन से पहले एक शूरा प्रणाली स्थापित की जाएगी, जो शरिया पर आधारित होगी. चुनाव, एक आधुनिक न्यायपालिका, एक निर्वाचित विधायिका, एक गैर-राजनीतिक प्रशासन और महिलाओं के अधिकारों सहित मानव अधिकारों जैसे मुद्दों की स्थिति आधुनिक सभ्य समाजों को अलग नहीं करेगी.

ये उपाय सरकार की एक सहभागी राजनीतिक प्रणाली को नकारते प्रतीत होते हैं, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार करना मुश्किल है. तालिबान के दूसरे संस्करण को पिछले संस्करण से बदलने का वैश्विक डर जल्द ही दूर हो जाएगा. अब तालिबान को शरिया के लाभों का आनंद लेने दें या सांसारिक विलासिता से कलंकित हो जाएं, निर्णय कठिन है. परंपरा और आधुनिकता के बीच अंतर्विरोध अब अफगानिस्तान में एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है, जिसमें लोग रूढ़िवाद और परंपरा की ओर लौटेंगे, जबकि आधुनिकतावादी या व्यावहारिक तत्व सांसारिकता का अनुसरण करेंगे.

अफगानिस्तान का भविष्य अब अंतरराष्ट्रीय कानून, बहुराष्ट्रीय निगमों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ उसके संबंधों और ‘विदेशी सहायता’ पर निर्भर करेगा. वर्तमान में दुनिया भर की प्रमुख राजधानियों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में इस पर विचार किया जा रहा है. तालिबान सरकार को एक वैध सरकार को तुरंत मान्यता देने में समय लगेगा.

हालांकि, तालिबान के साथ व्यावहारिक सहयोग की शर्तों पर दोहा में बातचीत चल रही है. दिलचस्प बात यह है कि कतर तालिबान के साथ बातचीत का केंद्र बन गया है और सभी कूटनीतिक गतिविधियां इस्लामाबाद के बजाय दोहा में हो रही हैं.