मकबरों के शिल्प ने हिंदू-मुस्लिम महिलाओं को किया सशक्त

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] • 3 Years ago
एकेटीसी में महिलाओं द्वारा बनाए गए शिल्प दिल्ली हाट जैसे केंद्रों पर भारी मांग रहती है.
एकेटीसी में महिलाओं द्वारा बनाए गए शिल्प दिल्ली हाट जैसे केंद्रों पर भारी मांग रहती है.

 

  • कृष्ण-राधा की सांझी बनी मुस्लिम महिलाओं की आजीविका
  • निजामुद्दीन के मकबरों के शिल्प को हो रहा गिफ्ट्स में पुनर्चित्रांकन
  • लॉकडाउन में हिंदू-मुस्लिम महिलाओं ने बनाए पैसे, जब उनके पति घरों में थे
  • हिंदू-मुस्लिम महिलाओं को रोजगार दे रही एकेटीसी दिल्ली से बाहर निकलने की तैयारी में

 

बैशली अडक / नई दिल्ली

शबनम गर्व से एक ग्रीटिंग कार्ड उठाती हैं, जिसमें लाल शीट के कंस्ट्रास्ट में हरे रंग का एक बारीक काम वाला क्रिसमस ट्री सिल्हूट (छाया चित्र) बना होता है. उस पर बना नक्काशीदार हिमपात पैटर्न भी गजब का है. आपको लगता होगा कि इस तरह की रचनात्मक चीजें केवल आर्चीज जैसे ब्रांडों में ही पाई जा सकती हैं, लेकिन नहीं, ये दक्षिण-पूर्वी दिल्ली की निजामुद्दीन बस्ती में आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर (एकेटीसी) की एक पहल ‘इंशा-ए-नूर’(आईएएन) में काम करने वाली 10 महिलाओं के बनाए हुए नायाब शिल्प हैं.

निजामुद्दीन में ‘मश्क मंजिल’नाम की एक पुरानी बिल्डिंग है, जिसमें मुस्लिम महिलाएं अपनी सहयोगियों के साथ अपनी कल्पनाओं का पंख लगा रही हैं. यहां एकेटीसी ने ‘हिस्टोरिक सिटीज प्रोग्राम’के तहत 2010 में बेरोजगार महिलाओं के लिए कला और शिल्प प्रशिक्षण का केंद्र स्थापित किया था. यहां एकेटीसी ने 60 से अधिक मध्यकालीन युग के इस्लामिक स्मारकों जैसे हुमायूं का मकबरा परिसर, सुंदर नर्सरी टोम्स, मजार-ए-गालिब और सब्ज बुर्ज आदि का संरक्षण किया है. टेलरिंग की कक्षाओं में आने वाली पांच महिलाओं के रूप में जो शुरू हुआ, वह जल्द ही आरी कढ़ाई, सांझी कागज शिल्प और फ्रांसीसी शैली की कसीदाकारी के पांच सक्रिय केंद्रों में पल्लवित हो गया. आज लगभग 100 महिलाएं यहां शिल्प के फैशनेबल नमूने बनाकर अच्छी आय अर्जित करने लगी हैं. 50 साला शबनम शाहीन ने कहा, “जब मैंने 2010 में यहां आना शुरू किया, तो मुझे सांझी के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था. एकेटीसी ने कुछ बहुत अच्छे शिक्षकों को यहां तैनात किया, जिन्होंने हमें सांझी के इतिहास, मथुरा (उत्तर प्रदेश) में इसकी उत्पत्ति और भगवान कृष्ण से इसके लिंक के बारे में बताया. धीरे-धीरे, हमने कैंची चलाना सीख लिया और अपनी सांझी बनाने के लिए मुगल स्मारकों के पैटर्न को अपना लिया. अब, हम इसे प्यार करते हैं.” सांझी का वास्तविक नाम ‘संध्या की देवी’है. सांझी को पहली बार राधा रानी ने कृष्ण के विछोह में सजाया था। सांझी में प्रभु श्रीकृष्ण का चरित्र चित्रण किया जाता है.

स्मारकों का पुनर्शिल्पीकरण

‘इंशा-ए-नूर’का अर्थ है ‘प्रकाश का निर्माण’. वर्षों पहले, जब महिलाओं की आजीविका के लिए यह परियोजना स्थापित की जा रही थी, तब एकेटीसी के विशेषज्ञों ने महसूस किया कि उन्हें अपने वस्त्रों और शिल्प के डिजाइन के लिए निजामुद्दीन स्मारकों के पैटर्न उद्धृत करने चाहिए. एकेटीसी की निदेशक ज्योत्सना लाल ने बताया, “इसका उद्देश्य क्षेत्र की संस्कृति और विरासत को आगे ले जाना है. उदाहरण के लिए, जाली इस्लामी वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसलिए, हमने सोचा था कि जब हमारे मास्टर कारीगर मंदिरों में पत्थर की जाली पर काम करते हैं, तो महिलाएं कागज और धागे की जालियां बना सकती हैं. सांझी, आरी और कसीदाकारी की लड़कियां ऐसा ही करती हैं. फिर उन्हें बिक्री के लिए समकालीन उत्पादों जैसे नोटबुक, बुकमार्क, वॉल एक्सेंट, बैग, स्टोल आदि में बदला जा सकता है.”

यहां के शिल्पियों ने निजामुद्दीन के मकबरों पर विभिन्न रूपांकनों को बड़े पैमाने पर उधार लिया है. इंशा स्टार का लोगो खुद आगा खान मकबरे (अकबर के दरबार में एक सलाहकार की कब्र) से प्रेरित है. रहीम के मकबरे (अकबर के कमांडर-इन-चीफ) पर एक फ्लावर पॉट का डिजाइन इंशा-ए-नूर की डायरी पर अंकित होकर लोकप्रिय हो गया, जबकि बी हलीमा (कहा जाता है कि वह हुमायूं की एक नर्स थीं।) नाम के प्रवेश द्वार पर अंकित एक पैटर्न नोटबुक के कवर पर प्रमुखता से उकेरा गया है।

सभी त्योहारों के लिए उपहार

पिछले साल क्रिसमस, दिवाली और राखी उत्पादों को शामिल करते हुए उन्होंने अपनी नई “फेस्टिव रेंज”में कैसे काम किया, इस पर स्वाति बत्रा ने कहा, “2020 में महामारी ने हमारे व्यापार को बुरी तरह प्रभावित किया. वे स्थान, जहां हम अपने उत्पाद बेचते हैं मसलन हुमायूं के मकबरे में एक कियोस्क, दीवाली मेले और दूतावास मेले, वे सभी बंद थे. हमारा टर्नओवर वर्ष 2018 के लगभग 45 लाख रुपये से घटकर केवल कुछ हजारों में रह गया.” स्वाति बत्रा एकेटीसी के निजामुद्दीन शहरी नवीकरण पहल (एनयूआरआई) में कार्यक्रम अधिकारी हैं.

आईईएन केंद्र प्रभारी और कार्यक्रम समन्वयक रत्ना साहनी ने कहा, ”हमें एहसास हुआ कि भले ही लोग अब दिखावा न करें, लेकिन वे निश्चित रूप से त्योहार मनाएंगे और संबंधित सामान खरीदेंगे. इसके अलावा, ई-कॉमर्स फल-फूल रहा है, इसलिए हम इन उत्पादों को बना सकते हैं, उन्हें फेसबुक और इंस्टाग्राम पर विज्ञापित कर सकते हैं, और जहां भी ऑर्डर आते हैं, उन्हें कूरियर कर सकते हैं.”

इसीलिए, सांझी केंद्र ने दीवाली लालटेन और टूयबलाइट होल्डर्स (जो कट-आउट के माध्यम से छाया डिजाइन प्रतिबिंबित करते हैं) और सुंदर क्रिसमस ग्रीटिंग कार्ड बनाने शुरू कर दिए. आरी कढ़ाई वाले केंद्र में दिवाली उपहार बॉक्स और कपड़े भरे हुए क्रिसमस के अलंकरण जैसे घंटियां, गेंद, घोड़े और सितारे बनाने लगा.

कसीदाकारी अनुभाग ने राखी का उत्पादन शुरू किया. कसीदाकारी शाखा की प्रमुख 40 वर्षीय सीमा अली ने कहा, “मैंने खुद लगभग 300 राखियां बनाई हैं, सभी अलग-अलग रंगों, फूलों और मोतियों के डिजाइनों में. कुल मिलाकर, मुझे लगता है कि इंशा-ए-नूर ने 7,000 कसीदा राखियां बेचीं और यह हमारे लिए उस समय आय का एक बड़ा स्रोत था, जब हमारे पति घरों में बैठे हुए थे. दिलचस्प बात यह है कि मैंने हिंदू संस्कृति के बारे में कुछ नया सीखा है, जैसे कि ‘भाभी राखी’या ‘राखी लटकन’भी होती हैं.“

आरी शाखा की 24 वर्षीय परवीन ने कहा कि ये उत्पाद ‘निजामुद्दीन के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार’को भी दर्शाते हैं. उन्होंने कहा, “इस क्षेत्र के बहुसंख्यक मुसलमान और अल्पसंख्यक ईसाई और हिंदू, सूफी संत हजरत निजामुद्दीन की निगरानी में शांति से रहते हैं. वास्तव में, सभी विश्वास की महिलाएं हमारे इंशा-ए-नूर केंद्र में काम करती हैं. हमने एक साथ दोपहर का भोजन करते हैं और यहां तक कि एक दूसरे के घर पर इकट्ठा हुए, जब कोई बड़ा ऑर्डर पूरा होने को था.” ‘फेस्टिव रेंज’के अलावा इंसा समूह ने लगभग 15,000 फेस मास्क बनाए। इन महिलाओं में से कुछ तलाकशुदा हैं या चिकित्सा समस्याओं से पीड़ित हैं, इंशा-ए-नूर उनकी आय का एकमात्र स्रोत है. दूसरी महिलाओं के लिए, यह बाहरी दुनिया के लिए उनकी एकमात्र खिड़की है.

नई स्वतंत्रता मिली

23 वर्षीय हुमैरा खान का बचपन में ही स्कूल छूट गया. हुमैरा कहती हैं, “इससे पहले, मुझे घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी. मैंने कभी भोगल (निजामुद्दीन क्षेत्र की एक पड़ोसी कॉलोनी) भी नहीं देखी. शुरू में एकेटीसी केंद्र में शामिल होने के लिए पारिवारिक आपत्तियां भी आई थीं, लेकिन अब मैं और मेरे सहयोगी कच्चे माल और विपणन के लिए दूर-दूर के स्थानों की यात्रा करते हैं.“

उसी उम्र की उनकी सहकर्मी शबाना अब्बासी को आंखों में परेशानी हैं, वह इंसा केंद्र में पैसे कमाकर अपने लिए चश्मे और दवाइयां खरीदती हैं. उसने कहा, ”हम बस अल्लाह से दुआ मांगते रहते हैं कि हमें हर तरह का काम मिलता रहना चाहिए.” 10 सालों के अस्तित्व के बाद, इंशा-ए-नूर को 2019 में एक निजी लिमिटेड कंपनी के रूप में पंजीकृत करवाया गया. एकेटीसी को शेयरधारकों के रूप में पंजीकृत 100 में से 30 सदस्य और 11 निदेशक मिले हैं. यह एकेटीसी के दिल्ली से बाहर निकलने की तैयारी है, क्योंकि निजामुद्दीन शहरी नवीकरण पहल परियोजना लगभग पूरी हो चुकी है.

एकेटीसी में डिजाइन और आउटरीच की वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी अर्चना साद अख्तर ने कहा, “हम भविष्य के लिए आईएएन समूह को 100 प्रतिशत आत्म निर्भर बनाने की कोशिश कर रहे हैं. हमारे पास पहले से ही फैब इंडिया, इंडिजेन और रंगसूत्र जैसे बड़े ब्रांड हैं, जो हमारे ग्राहक हैं. हमें अपने लिए आरएंडडी, मार्केटिंग, विज्ञापन और एकाउंट्स का प्रबंधन स्वयं करने में सक्षम होना चाहिए. हमें इस तथ्य पर गर्व है कि वे अब केवल श्रमिक नहीं हैं, बल्कि अपनी कंपनी के मालिक हैं.”